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________________ Registered No. A-701, ( हि. से माम) होतीबी और पबमें मानन्दकी नहरेंगा जातीची गा. और महावीरप्रभुकी प्रथम देखनाको रस दिन १५०० वर्ष बोटेखानीने उस दिन ..-... कंगनाको भोजन हो जानेकी पावगारमें बाबोसावजी बस कलकत्ता कराया। और फिर रात्रिको वीरशासन 'जयन्तीका वार्षिक में एक कीर्ति-स्मकी स्थापना बिवामीर की थी असा हुआ जिसमें समापतिका भासन स्यागमति पंडिता और उसपर उचमसंगमर्मरपर बने एकप स्पति-पाक बाबाईजीको प्रदान किया गया। बा. बोटेलालजीके (memorial tablet) की स्थापना करनी थी। इस हृदय-प्रावक स्वागत भाषण और चन्दाबाईजीके हदयस्कृति-पाककी स्थापनाका श्रेय मुके प्रदान किया गया, स्पर्शी भाषणले अनन्तर अनेक विद्वानों महत्वपूर्ख भाषण जिसके लिये मैंबाबोदेबाबजीकागतीमामारी हुए जिनमें वीरमगवानकी खोकसेवामों और उनके शासन जिस महान ऐतिहासिक घटनाकी वादगार कायम करने पर प्रकाश डाला गया तथा वीरमासन-जयन्ती-पर्वके महत्व विधेयरपतिपटक स्थापित किया गया उसके सम्बन्ध की घोषणा की गई। उसी समय एक प्रस्ताव पास किया मैं उसी समय और स्थानपर उपस्थित सजन मिसे ग्यारह गया जिसमें सायसहस्राब्दि-महोत्सबके अवसरपर विद्वानोंने संक्षेपमें अपने जोहार्दिक उद्गार व्यक्त किये साहित्य-प्रकाशन कतिस्तम्म-स्थापन और साहित्य-सम्मेबेबीमार्मिक थे, उन्हें सुनकर ब्वय गद्गद् हुमा समादिक प्रायोजनपर जोर दिया गया। अगले दिन ८ जाता था-उमा पता था-और वीरभगवानकी उस जुखाईको सुबह 6 बजेके करीब जो.जल्ला हुमा उसमें भी प्रथम देशनाके समयका साक्षात चित्रमा अंकित हो रहा प्रस्ताव पास किये गये। बेसब प्रस्ताव जैनमित्रादि पत्रों था।मैचो प्रगल करनेपर भी अपने माँसुमोको रोक नहीं मैंप चुके हैं। पेपरके मार्टिनेस-वश होने वाले स्थानासका। इस समय चारों ओर जो प्रभाव ज्यात या और मावके कारण इस समय यहाँ नहीं दिये जारहे है। जैसा कुछ भानन्दकापा हुभा था उसे शब्दोंमें अंकित इस उत्सबके प्रायोजन, मातिथ्य-सत्कार और सर्चका करनेकी भुममें शक्ति मही-वह तो उस समय वहाँ उप. सब भार बाबु छोटेलालजी जैन रईस कलकत्ता, सभापति स्थित जनताकी अनुमतिकाही विषय था। ऐसा मालूम वीरसेवामन्दिरने उठाया है, इसके लिये पापको जितना होता था कि कमश्च शक्तिवही काम कर रही और __ मी धन्यवाद दिया जाय वह सब थोता है। वह सबकेशरयोंको प्रेरणा दे रही है। उस समयके भाषण जुगलकिशोर मुख्तार कर्ता विद्वानों उल्लेखनीय नाम (प्रमश:) इस प्रकार है(२)पंडिता पदाबाईजी,(604.कैलाशचन्दजीमाथी (1) पं. फूलचन्दजी सिवानवशासी, (५)न्यापं. वरारीलाल जी कोठिया, (६)पं.परमानन्दजी शासी (०)वा०शतीशचंदजी शीख (बंगाली), (क)बाबचमीचंदजी एम० ए०, (३) बाबोसावजी, (..) बा. सोशलप्रसादजी, (१)वा. अशोककुमारजी (बंगाली)। भाषणानन्धर उस स्थानसे उठनेको किसीकाजी नहीं 'चाहता था। भाकिर मनको मारकर दूसरा प्रोग्राम पूरा करनेके लिये पक्षमा पारसके बाद पहाब पर उपस्थित सारीवाकोपा.कोठेशाबानी कक्षाकचाकी भोरसे शुख मिटाचादिप प्रीतिमोज दिया गया और वह बजे भानन्दकेसाब सम्पन्न हुषा। पर्वतपरसे स्वर मन्दिरों दर्शन और भोजन कर ोनेपर भी पर्वतपरके उसमपूर्वबकी बार बार स्मृति मुबक,प्रकाशक.परमानवशासी वीरसेवामंदिर सरसावा खिये श्यामसुंदरखान श्रीवास्तव द्वाराशीवास्तबग्रेस साहारनपुरम मुंद्रित al If not delivered please return to : VEER SEWA MANDIR, SARSAWA, (SAHARANPUR)" 2.
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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