SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 422
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * ॐ महम् VARTIN विश्वतत्व-प्रकाशा वार्षिक मूल्य ४) एक किरणका 1) इस किरणका मूल्य ।) सूचना-सरकारी आर्डिनेंसके वश कम पृष्ठ दिये जा रहे हैं, अधिक पृष्ठोंके लिये प्रयत्न हो रहा है। नीतिक्रोिषध्वंसी लोकव्यवहारवर्तक-सम्पा। परमागमस्यबीज भुवनैकगुरुर्जयत्यनेकान्तः। वर्ष ६ किरण १२ सम्पादक-जुगलकिशोर मुख्तार वीरसेवामन्दिर (समन्तभदाश्रम) सरसावा जिला सहारनपुर श्रावणशुक्ल, वीरनिर्वाण संवत् २५७०, विक्रम सं० २००१ जुलाई १६४५ विपुलाचलपर वीरशासन-जयन्तीका अपूर्व दृश्य [सम्पादकीय ] जबसे वीरसेवामन्दिरने यह प्रस्ताव पास किया था कि की और उसके द्वारा यह निर्णय कियाकि उत्सवकोदोभागामें वीरशासन-जयन्तीका भागामी उत्सव राजगृहमें उस स्थान बाँटा जाय--एकवीरशासन-जयन्तीका साधारण वार्षिकोत्सव पर ही मनाया जाये जहाँसे वी शासमकी 'सर्वोदय-तीर्थधारा' और दूसरा सार्धद्वयसहस्राब्दि-महोत्सव । पहला नियत प्रवाहित हुईथी तबसे लोकहदय उस पुनीत उत्सवको तिथि श्रावया-कृप्या-प्रतिपदाको और दूसरा कार्तिकमें दीपादेखने के लिये लालायित हो रहा था और ज्यों-ज्यों समय वलिके करीब रहे और दोनों राजगृहमें ही मनाये जाने। बीतता जाता था त्यों-त्यों उत्सवकी महानताका विचारकर उत्सवके करीव दिनों में इस समाचारको पाकर उत्सुक जमता लोगोंकी उत्कण्ठा उसके प्रति बढ़ती जाती थी, और वे केहदयपर पानी पर गया--उसका उत्साह ठंडा हो बार बार पूछते थे कि उत्सबकी क्या कुछ योजनाएँ तथा गपा--भीर अधिकांशको अपना बंधा-बंधाया विस्तरा तरबारियाँ हो रही है। खोल कर यही निर्णय करना पड़ा कि बड़े उत्सव के समय इधर विहार और बंगालके कुछ नेताओंने, जिन्हें उत्सव आडोंमें ही राजगृह चलेगे। परन्तु किनकेयमि वीरशासन के स्वागतादि-विषयक भारको उठाना था, राजगृहकी वर्षा के अवतारकी पुण्यवेलाका महत्व पर किये हुए था, जो कालीन स्थिति प्रादिके कारण जनताके कष्टोंकाकुछ विचारकर उसी समय विपुलाचखपर पहुंचकर वीरशासनके अवतार और अपनेको ऐसे समयमें उन कष्टोंके समाप उत्सवका समयकी कुछ अनुभूति करना चाहते थे और वीरशासनकी प्रबन्ध करनेके लिये असमर्थ पाकर कलकत्तामें एक मीटिंग उसके उत्पत्ति समय तथा स्थान पर ही पूजा करने के इछुक
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy