SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 419
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साहित्यपरिचय और समालोचन धन्यवादके पात्र है। योग्य है। नाटक) कसायपादुड-(सचूणि-सूत्र, जयधवला टीका कर्म और कषाय, कसायपाहटका संक्षिप्त परिचय, हिन्दी अनुवाद सहित) मूल लेखक आचार्य गुणधर मंगलवाद, ज्ञानस्वरूप, कवलाहारवाद, नयनिक्षेपादि चर्णिकार, प्राचार्य यतिवृषभ और टीकाकार वीर- विचार और नयोंके निरूपण इन ७ उपशीर्षकों द्वारा सेनाचार्य । सम्पादक, पं० फूलचन्दजी सिद्धान्तशास्त्री, विषय का संक्षिप्त एवं स्पष्ट विवेचन किया गया है। पं० महेन्द्रकुमारजी न्यायाचार्य और पं० कैलाशचन्द्र ग्रंथके अंतमें आठ परिशिष्ट दिये हुये हैं, जिनसे जी सिद्धान्तशास्त्री। प्रकाशक, भा० दि. जैनसंघ ग्रंथ की अधिक उपयोगिता बढ़गई है, सम्पादन, चौरासी मथुरा। पृष्ठ संख्या, सब मिला कर ५५००) प्रकाशन और गेट अप वगैरह सभी सुन्दर मूल्य, सजिल्द प्रतिका १० रुपया, और शास्त्राकार आकर्षक हैं। यह ग्रंथ भा० दि. जैन संघ ग्रंथमाला का १२) रुपया। का प्रथम पुष्प है। सम्पादक त्रयने इसे इसरूप में ग्रंथका नाम कषाय-प्रामृत है। यह ज्ञानप्रवाद प्रस्तुत करने में अच्छा परिश्रम किया है इसके लिये नामके पांचवें पूर्वको दशमी वस्तुमें पेज्जपाहुड़से वे धन्यवादके पात्र हैं। ग्रंथ प्रत्येक जैन मन्दिर तथा कषायप्राभृत निष्पन्न हुआ है। यह मंथ पेज-दोस- लायब्रेरीमें संग्रह करने योग्य है। क्ति स्थिति-विभक्ति आदि पंद्रह अधिकारों में २ सन्यासी या देशकी आवाज-(नाटक)विभाजित है। इनमें कषायोंकी बन्ध, जदय और लेखक भगवतस्वरूप जैन भगवत् प्रकाशक, भगवसत्वादि विविध अवस्थाओंका व्याख्यान किया गया भवन ऐत्मादपुर (आगरा) पृष्ठसंख्या ६६ । मूल्य, है। दशवें ग्यारहवें अधिकारों में दर्शन मोहकी 'उप बिना जिल्दका दश माना। शयना' विधान है और चौदह, पंद्रहवें अधिकारमें भगवत्स्वरुपजी उदीयमान लेखक और कवि हैं। चरित्रमोहकी उपशमना और उसकी क्षपणाका आपकी रचनाएं अच्छी और शिक्षाप्रद होती हैं। विस्तृत वर्णन दिया हुआ है। इन अधिकारोंमेंसे प्रस्तुत नाटक वीर-रस-प्रधान है और राष्ट्रीय नाटकके प्रस्तुत ग्रंथ 'पेज्जदोस विहत्ती' नामके प्रथम अधिकार रूपमें लिखा गया है। पढ़नेसे हृदयमें वीर-रसका को लिये हुए है। इस अधिकारको विषय-सूचीका संचार होता है साथमें करुणा, अनाथरक्षा तथा अवलोकन करनेसे इसकी प्रमेय-बहुलताका स्पष्ट बोध देशभक्तिके पाठकी शिक्षा भी मिलती है। पुस्तक हो जाता है। स्वाध्याय प्रेमियों के लिये ज्ञातव्य सामग्री अच्छी और परिश्रमसे लिखी गई है। छपाई सफाई अच्छी है। का खूब संकलन है। सूत्र-गाथाओंके कथनको चूर्णि ३घरवाली-यह भी उक्त भगवतजीरचना की है सूत्रों और जयधवला टीकाके साथ साथ कितने ही और भगवतभवन ऐत्मादपुरसे ही प्रकाशित हुई है। विशेषाओं द्वारा उसके ममको खोलनेका प्रयत्न किया जिसमें ५ पचोंमें घरवालीके प्रति विश्वास और गया है। अनुवाद सुन्दर और रुचिकर हुया है और प्रेमके सिवाय उसके साथ किये जाने वाले अन्यायउसे पाठकोंको सरल भाषामें रखनेका प्रयत्न किया है। अत्याचारोंका दिग्दर्शन भी कराया गया है। पढ़नेसे ___ ग्रंथके आदिमें ११२ पृष्टकी विस्तृत प्रस्तावना अच्छा मनोरंजन होता है। हृदय-मन्दिरमें उठने दी हुई है जिसमें ग्रंथ ग्रंथकार, चूर्णिसूत्र, और उसके बाले अनेक तरहके विचारोंको इसमें संकलित किण कर्ता, टीका और टीकाके समयादि विषयमें अच्छा गया है। इस छोटीसी पुस्तकका मूल्य चार आना है। प्रकाश डाला गया है विषय परिचय' शीर्षकके नीचे, परमानन्द शास्त्री साथ साथ कितना गया हया द्वारा उसके मम
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy