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________________ किरण १०-११] भिचमवाल - बसीका हैि । पुरुष प्राकृतिके सिरपर मुट तथा एक बर्धमबडपके दक्षिक स्तंभपर पुरानी तामिव भाषामें कानमें प रम तथा दूसरे कानमें मकर कुंडन है। - शताब्दीका एक । .. शायद पहास गुफाके निर्माता महाराजा महेन्द्रवर्मनका. अब हम खौटते है।पहासीक दक्षिणी हिस्सेके पूर्जी चिक। इनके पीछेका श्री चित्र महारानीका है जो कि बरकके मैदान में भापको एक श्मशान दिखाई देगा। बहुत कुछ स्पष्ट हो गया है। इनके सामने बोले अन्तर यह भी बगभग २...वर्ष पूर्वका।समें मुर्दै गाई पर एक और चित्रीजनके किसी सेवकका मालूम पड़ता जाते थे। इनके गायनेका दंग (Gyst burrial)। . है। अर्थमयख्य बाहिर बतके निकले हुये मागसे कमल कहलाता है। जमीनमें एक गाहा खोवा इसमें चारों पुष्पों बदो सुंदरबडे बडे हंसक चित्र हैं। तरफ पत्थर लगाकर उसमें मुबेको बैठा दिया जाता था। मन्दिरके बाहर पास ही एक चट्टानपर एक पायसीको प्रदर्शित करनेके लिये जमीन पर गोब प्राकार शिक्षा जिससे ज्ञात होता है कि पहिले इस मन्दिर में पत्थर रख दिये जाते थे। इनमेंसे कुखको महोबाई के सामने एक मुलमण्डप भी था । इसके ममावशेष मी साजिस डिपार्टमेंटने खोलाहै। उनमें कुछ बोडके भासपाल पर माजका स्टेटकी तरफसे उसी का सामान मिले। के अन्यत्र प्रास स्वंमसे एक मुखमएसप बनवा दिया गया केवलज्ञानकी विषय-मर्यादा [लेखक-न्यायाचार्य पं. माणिकचन्द कौन्देय) [गत किरण ..से भागे] - यहाँ शंका हो सकती है कि जब प्रमाणताकी छाप के समान भगवान् द्वादशांग-वाणीद्वारा उपदेश देते हैं। लगानेवाले केबलशानी महाराज उन कसित धापेक्षिक नाम, स्थापना, द्रव्यभाव अनुसार हमारे तुम्हारे व्यवहारोमें स्वभाषों या स्याद्वावाकान्त और शब्बयोजित वक्तव्य भागों मारहे ऐसे संकेतस्य सहजयोग्यता वाले शब्दोंको द्दद्द को नहीं जानते हैं तो इनके जानने बाले शानश विद्वान् कर पुन: उस प्रतिपाद्य प्रमेयसे जोड़कर समयसरया में भाषण झूठे हो जायंगे? स्याद्वादसिद्धान्त प्रमाझ हो जायगा? दे देते है। बौद्धों और मीमांसकोंके सिद्धान्तोका निराकरण मयचक्रका चकचलना बन्द पड़ जायगा। इस कटाक्ष करते हुये श्री विद्यानन्दस्वामीने कोकवार्तिकमें शब्दोंकी समाधानपर यह कर देना उचित है कि- वाच्यार्थप्रणालीको अधिक विस्तारसे पुष्ट किया है। बताके पमें धमेऽन्य पवाथों धर्मियोऽनन्तधर्मिणः। शब्द किस ढंगसे श्रोताको अर्थप्रनिपत्ति करा देते है। इस अनित्वेऽन्यनमान्तस्य शेषान्तामा तदङ्गता॥ के लिये उन प्रकरणोंको पदिये । श्रच्छा तो आपके पास शब्द-भंडार बहुत थोड़ा है। अत: बहुभाग निर्विक(भी समन्तभद्रस्वावी) प्रमेयकी वे विशालकाय द्वादशांग-बागी में भी नही - "अनेकाः सप्तभंग्यः" । "अनन्ताः स्वभावमेदाः"। कर पाते हैं। उन्हें इसकी कोई परवाह भी नहीं है। तभी इत्यादि बम्भीर बारमयद्वारा उन क्मों या स्वभावोंको : तो "पएमणिबा भावा अशंतभागो दुमणमिलप्पा । वस्तुपर शाद शिया-गया बताया है। तब तो उनका जान : परावणिकनाशं पुण्य प्रांतभागो सुदहिवरों" (गोमहसार) लेना समान ही यही तो कहना है। वास्तविक द्रव्य, कहना पड़ा। गिद् गिटर गिट् शब्दोंके-संकेत अनुसार गुल्या पर्याय और धर्म स्वभावो, सापेचिक, नेय, विवेभ्य तारबाबूजेसे प्रापको भाषामें शब्द रचना कर देता है या 'इन संपूर्णपदम्योको भव्य जीवों के प्रतिपावना भाषणयाभित्र संक्षिप्त लेखक स्वयं संकेतानुसार याख्यान लिल बेसारे
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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