SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 324
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किरण ] गोत्र-विचार २८९ कर गोत्रका सामान्य लक्षण कह दिया। उल्लेखों यह प्रतीत होता है कि अन्तर्वीपज और कर्मयहां इतना खुलासा करना और आवश्यक है किवीर- भूमिज म्लेच्छोंको छोर कर शेष सब मनुष्य भार्य है। इन सेन स्वामीने प्रकृति अनुयोगद्वारमें जो उरच और नीच टीका ग्रन्यास तथा मूल तत्वार्थसूत्रसे यह ध्वनित नहीं गोत्रका स्वरूप निर्देश किया है वह उपलक्षाकी मुख्यता होता कि भरत क्षेत्रके जोछह भेद हैं उनमें पांच म्लेच्छ से किया है। खण्ड और मध्यका एक मार्यखण्ड है। इस प्रकार तत्वार्य(२) मनुष्योंकेमैदोर उसका माघार सत्र और उनकी टीकाचौक-माधारसे जो व्यवस्था फक्षित स्वार्थसबमें मनुष्योंकि मार्य भीर म्लेच्छ ये दो भेद होती वह निम्न प्रकार हैबताये हैं। पर कौन मार्य हैं और कौन म्लेच्छ यह इससे देवकुरु, उत्तरकुरु, हैमवत हरिवर्ष, रम्यक, हरण्यवत प्रकट नहीं होता । इसकी टीका सर्वार्थसिद्धिमें इसका और अन्तींप ये भोगभूमियां हैं। इनमेसे अन्तद्वीपोंक खुलासा किया है। वहां लिखा है कि जो गुणों और गुण- मनुष्य म्लेच्छ हैं और शेष भोगभूमियों के मनुष्य मार्य हैं वानोंके द्वारा माने जाते हैं वे भार्य हैं। इनके ऋद्धि प्राप्त भरत, ऐरावत और देवकुरु तथा उत्तरकुरुसे रहित विदेह और अनृद्धि प्राप्त ऐम दो भेद हैं। तथा म्लेच्छ मनुष्य दो ये कर्मभूमियां हैं। इनमें जो शक, यवन माविक मनुष्य प्रकारके है-मन्तदीपज और कर्मभूमिज । लवणादि रहते हैं वे म्लेच्छ है। तथा शेष कर्मभूमिज मनुष्य मार्य हैं। समुद्र में १६ अन्तींप हैं। जिनमें एक पल्यकी भायु वाले ऊपर जो लिखा है वह तत्वार्थसूत्र और उसकी मनुष्य रहते है। ये अलीपज म्लेच्छ हैं। तथा पांच टीकात्रोंके आधारसे लिखा है। अब मागे त्रिलोकप्रज्ञप्ति भरत, पाँच ऐरावत और देवकुरु तथा उत्तरकुरुको छोद यादि ग्रन्थोंके आधारसे लिखते हैंकर पांच विदेह ये पन्द्रह कर्मभूमियां हैं। इनमें रहने वाले त्रिलोक-प्रज्ञप्तिमें भरत, ऐगवत और विवेहक्षेत्रके वह मनुष्यों में मात नरक में लेजाने वाले पापके और सर्वार्थ खगडॉमसे पकार्यखण्ड और पांच ग्लेस खराब बतलाये मिद्धिम लेजाने वाले पुण्यके उपार्जन करनेकी योग्यता है। हैं। म्लेच्छ खगोंमें म्लेच्छ मनुष्य रहते हैं उनमें एक नथा पात्रदानादिके साथ कृषि यादि छह प्रकारकी व्यवस्था । मिथ्यात्व गुणस्थान ही होता है तथा छयानवे अन्तपिमें का प्रारम्भ यहीं पर होता है अत: ये कर्मभूमियां कहलाती कुभोग भूमियां मनुष्य रहते हैं। यथाहैं। इन पन्द्रह कर्मभूमियों में जो शक, यवन, शबर और उत्तरदक्खिरणभरहे खंडाणि तिणि होंति पक्कं । पुलिंद भादिक मनुष्य रहते हैं वे भी म्लेच्छ हैं। दक्खिातियखंडेसुंअब्जाखंगे त्ति मज्झिम्मो ॥४-२६७ सर्वार्थ सिद्धिके इस अभिप्रायसे तत्वार्थ राजवार्तिकके संसा वि पंच खंडाणामेणं होंति मेन्द्र खंडं ति। अभिप्रायमें कोई अन्तर नहीं है। रलोकवार्तिकके कथनमें उत्तरतियखंडेसुं माझमखंडस्स बहुमज्झे ।। ४-२६८ थोडा अन्तर है। वह केवल अन्तर्वीपोंके विभागस सम्बन्ध सव्वमिलिच्छम्मि मिच्छत्तं । ४-२६३७ रखता है। वहाँ लिखा है कि जो अन्तर्वीप भोगभूमियोंके वेधणुमहस्सतुंगा मंदकसाया पियंगुसामलया। समीप हैं उनमें रहने वाले मनुष्योंकी भायु प्रादि भोग- सब्वे ते पल्लाऊ कुभोगभूमीए चेट्ठति ।। २५१३१४॥ भूमिज मनुष्योंके समान है तथा जो अन्तद्वीप कर्मभूमिके इससे इतना जाना जाता है कि पांच म्लेच्छसमीप हैं उनमें रहने वाले मनुष्यों की मायु मादि कर्मभूमि खण्डोंके मनुष्य म्लेच्छ ही होते हैं। अतः इसके अनुसार मनुष्यों के समान है। यथा यह व्यवस्था फलित होती हैभोगभूम्यायुरुत्सेधवृत्तयोभौगभूमिभिः। म्लेच्छ मनुष्य तीन प्रकार होते हैं--म्लेच्छ खण्डमें समप्रणिधयः कर्मभूमिवत्कर्मभूमिभिः ॥ ७॥ उत्पन्न हुए, अन्तर्वीपज और प्रार्यखण्डमें रहने वाले शक, श्लो०वा०३-३७ यवनादिका तथा इनसे अतिरिक्त शेष सब मनुष्य मार्य है। पर श्लोकवार्तिकके इस कथनकी पुष्टि त्रिलोकप्रशप्तिकी भागेके सभी ग्रंथोम मुख्यरूपसे इसा व्यवस्थाका कथन पुष्टि त्रिलोकमज्ञप्ति प्रादिसे नही होगी। इन तीनों प्रन्योंके किया है। हमारे इस कथनकी पुष्टि अमृतचन्द्र के तत्वार्थ
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy