________________
पयूषण पर्व और हमारा कर्तव्य
(ल-० वा० माणिकचन्द जैन बी०ए०)
प्रतिवर्ष पर्युषण पर्व पाता है और चला जाता है। अथवा यो कहिये कि हमारे समाजकी सामाजिक और इस वर्ष भी वह हमें कर्तव्यका पाठ पढ़ाने आ गया है। धार्मिक विचार-धाग पर कृत्रिमता और बाह्य आडंबरका यह पर्व जनमात्र के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इसके उप- अातंक छाया हुआ है। यही कारण है कि समाजमें धर्म लक्ष्य में हम दश धौंका चिन्नन और मनन करते हैं। के नामपर और सामाजिक रीति-रिवाजों के नामपर आयेदिन दश धर्म -उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, झगड़े होते रहते हैं; जिमका नतीजा हम स्वयं देख रहे हैं संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य और ब्रह्मचर्य । ये ही हमारे कि हमारा समाज छोटा-मोटा कितनी ही टुकडियों में विभाधर्मका मर्म और सार हैं तथा जैनियोंके सारे विधि-विधान जित होगया है, अशान्ति और कलहका पुजारी बना हुश्रा प्राइन्हीं पर अवलम्बित हैं। यद्यपि अहिमा जैनधर्मका है। क्या विश्वप्रेम और अदिमा इसी का नाम है? मूल सिद्धान्त है अथवा यो कहिये कि अहिंसा जैनाचारकी इन्किलाब (परिवर्तन) उन्नतिका परिचायक है, पर जान है परन्तु वह सब इन दश धीमें बड़ी सुन्दर रीतिसे हमारे समाजके इन्किलाबने समाजको आगे न बढ़ाकर विभक्त है। इम अहिंसाको अपने प्राचार-व्यवहारमें कहाँ रूढ़ियोंका अनुगामी बना दिया है। रूड़यों और कुप्रथाओं तक ले रहे हैं? अथवा इन दश धर्मोकी हमारे जीवन में का श्राधिक्य यदि किसीको कहीं देखना हो तो वह जैन कितनी व्यापकना हे? यह एक विचारणीय प्रश्न है। समाजपर विहङ्गम दृष्टि डाले । इससे उस व्यक्ति के समक्ष इन
वर्तमानमें हमारा समाज एक विचित्र वातावरण में रह रूढियों और कुप्रथाका एक हू-बहू चित्र अङ्कित हो कर अपना जीवन व्यतीन कर रहा है। हम प्रगतिशील व जायगा । वह कहने लगेगा कि जैन समाज अपने ढंगका महान परिवर्तनके युगमें रह रहे है। ऐसी हालतमें हमारे एक निराला ही समाज है, जो इस परिवर्तनके युगमें भी समाजके दृष्टिकोण और विचार-घाग पर वर्तमान समयका अपनी ऐसी निराली राग अलाप रहा है। यह है इस समाज असर होना अनिवार्य है। इस समय विश्वमै रणचण्डीको की वर्तमान दशाका चित्र! प्रचण्ड ज्वाला धधक रही है, प्रत्येक राष्ट्र अाना अभ्युदय सच पूछिये तो श्रान दिन समाजकी अत्यन्त दयनीय देखने के लिए लालायित है और अपने देशका समुत्थान अयस्था है। इस अवस्थाका वर्णन करते समय दिल दहल चाहनेवाले दूसरे देशके अधिकारों पर कुठाराघान करनेके जाता है, हृदय काँप उठता है। गरीबों अनाथो और विधलिये अातुर है। यही हाल अाज अहिंसा के प्रतिपालक जैन वाओंकी चिन्ता-अमिन अवस्था तथा दारुण व्यथाको देव समाजका है। समाजमें अहिंसा और सत्यका नाम तो है, कर तो अांखोंके आगे अंधेरा छा जाता है ! दूसरोंको विश्वपर वास्तविकताका अभाव है। हम कहनेमात्रको जैन रह प्रेमका पाठ पढ़ानेवाला समाज आज अपने ही भाइयों और गये है पर जैनत्व हमारे पास फटकता तक नहीं। अनेकान्त, बहिनोंपर दया तथा सहानुभूनिका व्यवहार नहीं कर रहा है अहिंसा और विश्व-प्रेम ये जैनत्वके मुख्य चिन्ह हैं पर उन्हींको प्यार नहीं कर रहा है। जिम समाजमें इतनी भी हमारे जीवन में इनका पता तक नहीं। इसीसे हम देख रहे उदारता नहीं वहाँ विश्वप्रेम कैसा ? अपने ही समाजकी हैं कि अहिंसा-पालक-नहीं नहीं, अहिंसागलनका दम टीका-टिप्पणी करना शायद अनुचित कहा जायगा । भरनेशन्ना समाज अाज ईर्ष्या, रेप, छल, कपट, पाखंड और पर हकीकतको छिपाना भी महा पार है । उससे उत्तरोत्तर भ्रातृद्रोहका शिकार बन रहा है। श्राहम्बर और ढोगने पापको वृद्धि होती है और सुधार होने में नहीं आता। उसकी धार्मिक प्रवृत्तियोंपर अपना अधिकार जमा लिया है पयूषण पर्व निकट ही आगया है, यह बड़ी प्रसन्नता