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________________ किरण] पं० टोडरमलजी और उनकी रचनाएँ २६५ - - पंक्तियोंसे प्रकट है: "तुम्हारे चिदानन्द घनके अनुभवसे सहजानन्दकी "कोऊ कहेगा सम्यग्दृष्टि भी तो बुग जानि पर द्रव्यको वृद्धि चाहिये।" त्यागे है। ताका समाधान-सभ्यग्दृष्टि परद्रव्यनिका बुग न गोम्मटसार जरकाण्ड, कर्मकाण्ड, लब्धिमार-क्षपणाजाने है। आप सगगभावकों छोरे, तातै ताकाका कारण सार और त्रिलोकसार इन ग्रन्थोंके प्रधाननया मूलका का भी त्याग हो है। वस्तुविचारें कोई परद्रव्यतौ भला प्राचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती है। गोम्मटसार बुरा है नहीं। कोऊ कहेगा, निमित्तमात्र तो है। तका ग्रन्थपर अनेक टीकाएँ रची गई है, किन्तु वर्तमानमें उपउत्तर-पर द्रव्य जोरावरी ती क्योंई विगारता नाहीं। अपने लब्ध सभी टीकात्रों में प्राचीन टीका मन्दप्रबोधिका है भाव विगरें तब वह भी बास्यनिमित्त है । बहुरि बाका जिसके कर्ता अभयचन्द्र हैं+ । इस टीकाके आधारसे ही निमित्त बिना भी भाव विगरें हैं । तात नियमरूप निमित्त ही ज्ञववान शक संवत् १२८१ में 'जीवतत्व प्रदीपिका' भी नाही। ऐसे परद्रव्यका तो दोष देवना मिथ्याभाव है। नामक टीका कनडी भाषामें लिखी है। जो कोल्हापुरके गगादिक भाव ही बुरे है सो याकै ऐसी समझ नाहीं। यह शास्त्रमण्डारमं सुरक्षित है। मन्दप्रबोधिका और केशवपद्रव्यानिका दोष देखि निन विष द्वेषरूप उदासीनता कर वोंकी उक्त कनही टीकाका श्राश्रय लेकर भट्टारक है। सांची उदामीनता नौ वाका नाम है, जो कोई भी नेमिचन्द्रने अपनी संस्कृत टीका बनाई हैx जो 'जीवतत्वपरद्रव्यका गुण वा दोष न भासे, ताने काहूकों भला बुग प्रदीपिका नामसे ख्यात है। इस संस्कृत टीकाके अाधारसे न जानै। श्रापको श्राप जानै, परकौं पर जानै, परनैं किछ ही०टोडरमल्लीने अपनी हिन्दी टीका बनाई है, जिस भी प्रयोजन मेग नाही, ऐमा मानि साक्षीभृन रहे, सो ऐमी का नाम मम्यग्ज्ञानचन्द्रिका है, जो संस्कृत टीकाका अनुउदासीनना शानी ही होय ।" (पृ. ३४३-४) वाद होते हए भी उसके प्रेमयका स्पष्ट विवेचन करती। रचनाएँ और रचनाकाल इसमें उन्होंने अपनी श्रोरसे कषायवश कुछ भी नहीं लिखा है:श्रापकी कुल नौ रचनाएँ हैं जिनमें ६ तो टीकापन्य “आज्ञा अनुसारी भए अर्थ लिखे या मांहि । है, एक रहस्यपूर्ण चिही है और दो रचनाएँ उनकी टीका- धरि कषाय करि कल्पना हम कछु कीनी नांहि।"३३। ग्रन्थों तथा अन्य ग्रन्थोंका अनुभव या मार लेकर रची गई है। उनके सब नाम इस प्रकार हैं:-१ गोम्मटसार जीव *बहुत सूत्रक करनते नेमिचन्द्र गुनधार । काण्ड टीका, २ गोम्मटसार कर्मकण्ड टीका, ३ लन्धिमार मुख्यपने यो ग्रन्थके कहिये है करतार ॥ १२ ॥ क्षपणासार टीका, ४ त्रिलोकसार टीका, ५ श्रात्मानुशामन कनकनन्दि पुनि माघवचन्द्र । प्रमुख भये मुनि बहुगुणवृन्द। टीका, पुरुषार्थसिड्युपाय टीका, रहस्यपूर्ण चिट्ठी, अर्थ- तिनहू की है यामें सीर । सूत्र कितेक किये गम्भीर १३ मंदृष्टि अधिकार और ६ मोक्षमार्गप्रकाशक | -लब्धिसार टी. प्रशस्ति इनमें आपकी सबसे पुरानी रचना उक्त चिही है जो + अभयचन्द्रने गोम्मटसार जीवकाण्डकी ८३ नं. को वि० सं० १८११ की फाल्गुण वदी पंचमीको मुननानके गाथाकी टीकामें एक पंचिका' टीकाका और भी उल्लेग्न अध्यात्मरसके रोचक खानचंदजी, गंगाधरजी, श्रीगलजी किया है:-"अथवा सम्मूच्र्छन गर्भोपपात्तामाश्रित्य जन्म सिद्धारथ जी श्रादि अन्य साधर्मी भाइयों को उनके प्रश्नांक भवतीति गोम्मटसारपंचिकाकारादीनामभिप्रायः ।" इस उत्तररूपमें लिखी गई थी। यह पत्र अध्यात्म रसके अनु- उल्लेवसे स्पष्ट है कि मन्दप्रबोधिकासे पूर्व गोम्मटसारपर भवसे श्रोन-प्रोत है और इसमें आध्यात्मिक प्रश्नोंका उत्तर 'पंचिका' नामकी कोई टीका और थी, परन्तु उसका कर्ता कितने सरल एवं स्पष्ट शब्दों में विनयके साथ दिया गया है कौन था, यह अभी अनिश्चित है । हो सकता है कि यह चिट्ठीको देखते ही बनता है। चिट्ठीगत शिष्टाचारसूचक चामुण्डरायकी देशी टीका ही यह पंचिका हो। निम्न वाक्य तो खास तौरसे पंडितजीकी श्रान्तरिक भद्रता x देखो, डा. ए. एन. उपाध्ये एम० ए० का गो. तथा वात्सल्यताका द्योतक है: की जीवतत्वप्रदीपिका' वाला लेख 'अनेकान्त' वर्ष ४ कि.१
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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