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________________ * ॐ पहम् . नातक विस्था वार्षिक मूल्य ४) ० एक किरण का मूल्य ।) E नीतिविरोधणसालोकव्यवहारवर्तक सम्पद। परमागमस्यबीज भुवनेकगुरुर्जयत्यनेकान्तः। . फर्वरी वर्ष ६,किरण बीरसेवामन्दिर (समन्तभद्राश्रम) सरमावा जिला सहारनपुर काल्गुण, वीरनिर्वाण संवत् २४.०, विक्रम सं. २०.. ११४५ समन्तभद्र-भारतीके कुछ नमूने [ १८ । श्रीभर-जिन-स्तोत्र गुणस्तोकं सदुल्लध्य तहहुस्व-कथा स्तुतिः । भानन्त्यासे गुणा वक्तुमशक्यास्त्वयि सा कथम् ॥ १॥ 'विद्यमान गुणोंकी अल्पताको उल्लंघन करके जो उनके बहुत्वकी कथा की जाती है-उन्हे बदाचढ़ा कर कहा जाता है-उसे लोकमें 'स्तुति' कहते हैं। वह स्तुति (हे पर जिन!) आपमें कैस बन सकती है ? क्योंकि आपके गुण अनन्त होनेसे पूरे तौर पर कहे ही नहीं जा सकते-बढ़ा-चढ़ा कर कहनकी तो फिर बात ही दूर है। तथाऽपि ते मुनीन्द्रस्य यतो नामाऽपि कोर्तितम् ।। पुनाति पुण्यकीर्तेस्ततो याम किश्चन ॥ २॥ (यद्यपि अापके गुणोंका कथन करना अशक्य है) फिर भी आप पुण्यकीर्ति* मुनीन्द्रका चूँकि नामकीर्ति' शब्द वाणी, ख्याति और स्तुति नीन अथोंमें प्रयुक्त होता है और 'पुण्य' शब्द पवित्रता तथा प्रशस्तनाका द्योतक है। अत: जिनकी वाणी पवित्र-प्रशस्त है, ख्याति पवित्र-प्रशस्त और स्तुति पुण्याल्पादक-पवित्रतासम्पादक है उन्हें 'पुण्यकीर्ति' कहते हैं।
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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