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________________ २२८ अनेकान्त और विशेषामें प्रकट होनेसे पहले उन्हें अन्यत्र कहीं भी प्रकाशित न करना चाहिये । सब लेख कागजके एक तरफ हाशिया छोड़कर सुवाच्य अक्षरोंमें लिखे जाने चाहिये; अन्यथा सम्पादन तथा प्रेसको प्रूफ भेजने में बड़ी दिक्कत होती है, कभी-कभी ऐसे लेख छपनेसे रह जाते हैं। (६) जो लेख सचित्र हों उनके लिये चित्रोंका प्रबन्ध प्राय: लेखकोंको स्वयं करना चाहिये। खास-खास अवस्थामें ही किसी चित्र विशेषकी जिम्मेदारीको सम्पादक मण्डल अथवा प्रकाशन विभाग अपने ऊपर ले सकेगा । (७) सम्पादकमण्डलको दृष्टिमें जो लेख श्रसाधारण महत्व के समझे जायेंगे उनके लिये पारितोषिक अथवा पुरस्कारकी भी योजना उस फण्डसे की जायगी जो इस कामके लिये अलग रक्खा जायगा । AM [ वर्ष ६ (८) कागज आदिकी भारी महँगाईके कारण इस विशाल विशेषाङ्ककी कापिय परिमित संख्या में ही छपाई जायेंगी अतः जिन्हें जितनी कापियोंकी अपने तथा दूसरोंके लिये जरूरत हो वे पहले से ही १५ मार्च तक भार्डर भेजकर उन्हें अपने लिये रिजर्व करा लेवे, अन्यथा बादको फिर इच्छानुसार कापियोंका मिलना कठिन हो जायगा। क्योंकि विशेषाङ्ककी छपाई मार्च में ही शुरू हो जावेगी, तब कहीं जून मास के श्राखीर तक वह छप सकेगा । बरसों से मुख्तारजी के साथ मेरा परिचय है और उनके निकट सम्पर्क में रहकर मेरे मन पर सदा यह प्रभाव पड़ा है कि वे एक सच्चे तपस्वी हैं। उनके व्यक्तित्वकी एक बात मुझे बहुत पसन्द है कि वे अत्यन्त निर्भीक हैं और सत्य को प्रकट करनेमें वे कभी नहीं चूकते, पर इसके साथ ही वे अत्यन्त नम्र हैं और अपने विरोधको केवल सिद्धान्त तक ही रखते हैं- उसे कभी व्यक्तिगत नहीं बनाते । बाहर कड़वे, भीतर मधुर ( श्री पन्नालालजी अग्रवाल, देहली ) बहुत दिनों की बात है कि ला ० जौहरीमलजी सर्राफने अंतर्जातीय विवाह पर लिखे हुए शिक्षाप्रद शास्त्रीय उदाहस्थ' नामक मुक्तारजीके एक लेखको पुस्तक रूपमें प्रकाशित किया था। समाजमें उससे खलबली मच गई। पं० मक्खनलालजी प्रचारकने उसका जवाब लिख और पं० महबूब विशेषाङ्क सम्बन्धी लेख, चित्र, ब्लाक्स, जरूरी सुझाव (Suggestion), सूचनाएँ और पत्रादिक सब नीचे लिखे पते पर भेजे जाने चाहियें: जुगलकिशोर मुख्तार (प्रधान सम्पादक ) वीरसंवामन्दिर, सरसावा जि० सहारनपुर सिंहजीने इस बारेमें मुझे शास्त्रार्थंका चैलेंज किया और मुख्तार साहबको मुकदमेकी धमकी दी गई। मुख्तारसाहबने उत्तरमे 'विवाह क्षेत्र प्रकाश' के नामसे एक नई पुस्तक इसी विषय में लिखी, जिसमें अन्तर्जातीय विवाहका और भी जोरदार समर्थन था । इतने संघर्ष के बाद भी मुख्तारसाहबके व्यवहार में कोई अन्तर न पड़ा। आज भी पं० महबूबसिंहजी के साथ प्राप का प्रेम सम्बन्ध है। उनके छोटे भाई वीरसेवामन्दिरके सदस्य हैं और श्रीमक्खनलालजीको भी एक बार आप अपने बीरसेवामन्दिर में होने वाले वीरशासन जयन्तीउत्सवका सभापति बनाकर सम्मानित कर चुके हैं।
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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