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________________ अभिनन्दन-पत्र म . सेवा में श्रीमान् पं0 जुगल किशोरजी मुख्तार महोदय अधिष्ठाता वीरसेवा-मन्दिर, सरसावा. (सहारनपुर) यू०पी० हे श्रम-माधक! पापकी ६० वीं वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में प्रायोजित इस सम्मान-महोसवमें उपस्थित हम आपका हार्दिक अभिनन्दन करते हैं। जैनसाहित्य, इतिहास और पुरातस्तकी उलझी हुई गुत्थियोंको सुलझाने में आपने अपनी जीवनव्यापी गम्भीर साधना के द्वारा जो श्रम किया है और उससे जिन रत्नोंकी सृष्टि हुई है, वे हमारी इस पीढ़ी की बहुमूल्य सम्पत्ति हैं और हमारा विश्वास है कि पाने वाली पीढ़ी एक बहुमूल्य धरोहरके रूप में उन्हें पा गौरवान्वित होगी। हे आदर्श प्रणेता! स्वार्थ के मायाजाल में फंसे, धर्मभावनासे विमुख, राष्ट्रीय उतरदायित्वोंसे परामुख, जब अधिकांश मनुष्य धनसम्पदाकी चिन्तामें रात-दिन ग्रस्त हुए घूमते हैं, तब आपने अपना सारा जीवन साहित्य और इतिहासके अनुसंधान में लगाया और अपनी ५१...हजार रुपयोंकी सम्पत्ति भी उसी कार्य के लिये उत्सर्ग करती। हम मानते हैं कि इस रूपमें देशके प्रतिभाशाली, साधन सम्पन्न और उद्योगी युवकोंके सामने आपने एक सजीव प्रादर्शकी स्थापना की। हम एक आदर्श प्रोताके रूप में आपका हार्दिक अभिनन्दन करते हैं। हे अमर प्रतिभाके पुत्र! असत्य अपनी सहचरी अन्धश्रद्धाका बल पा, सदैव सत्यका भावरण बनने में सयत्न रहा है। हमारे साहित्य में भी संस्कृत-भक्ति एवं प्राचार्य-श्रद्धाको छायामें इस प्रकारके अनेक प्रावरण इतने सुरूप एवं सुरद थे कि उन्हें सत्य म मानना, सत्यको चैलेंज समझा जाता था, इस दशामें अनर्थक शक्ति और अपार साहसके साथ उन श्रावरणोंको भेद कर सत्यकेमालोकका प्रकाशन प्रापकी ही प्रतिभाका कार्य था। हे अमर प्रतिभाके पुत्र! हम पापका अभिनन्दन करते हैं। हे भव्य-भावनाओंके भण्डार ! भापकी प्रखर भावनात्रीने जहां धर्म-साहित्य में परीक्षा प्रधानताकी सृष्टि की, स्वामी समन्तभद्रके मूल इतिहासका अनुसन्धान किया, भगवान महावीरके काल निर्णयकी गुत्थियां सुलझाई, पूज्य तीथंकरों एवं जैनाचार्योंके शासनभेदोंकी खोज की, सामाजिक परम्पराओंके मूलकी बानबीन कर क्रम-विकासका प्रदर्शन किया, 'अनेकान्त' के द्वारा निरन्तर जीवन साहित्यकी रसवर्षा की और बीर शासनकी पुण्य तिथिका अनुसन्धान किया। वहाँ भापकी कोमल भावनाघोंने हमें मेरी भावना का उपहार दिया। जिसने जाने कितने प्रशान्त हृदयोंकोशांति दी, हतोत्साहितॊमें नव प्रेरणा दी, सरसताका संचार किमा। हे भग्य-भावनामोंके भण्डार, हम भापका अभिनन्दन करते हैं। हे वृद्ध-युवक युगवीर! इस बुढ़ापेमें भी प्रापमै युवकों सा उत्साह एवं स्फुरणा है और रात-दिन भाप अपने अनुसन्धानमें लगे रहते हैं। हे वृद्धत्व और यौवनके दिव्य संगम ! इस शुभाशाके साय कि भापका यह अध्यवसाय निविप्न दशाब्दियों तक चलता रहे, हम भापका अभिनन्दन करते हैं। हम है अापके अपने हीसहारनपुर सदस्यगण, ५ दिसम्बर ४३ श्री जुगलकिशोर मुख्तार सम्मान समिति
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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