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________________ १०० अनेकान्त [ वर्ष ६ घेताम्बर भागों में एकेन्द्रिय जीवोंमें केवल एक मिथ्यारष्टि सासायणं पडुश्च तस्मापज्जत्तयस्स दाणाणा लब्भंति ।" गुणस्थान ही माना गया है। किन्तु द्वीन्द्रियादिके उपरके अर्थात-- 'दीन्द्रिय जीवके दो ज्ञान किस प्रकार पाये सब जीवनिकायों में सासादन गुणस्थान माना गया है। जा स:ते हैं । इसका उत्तर कहते है कि सासादन सम्ययह बात भगवती शतक ८, उद्देश २ सूत्र ३१७ के प्रमो- क्त्वकी अपेक्षा द्वीन्द्रिय अपक्षक जीवके दो ज्ञान पाये सरोंसे स्पष्ट हो जाती है। वह प्रकरया इस प्रकार है-- जाते हैं।" "पुढविक्काइया रणं भंते कि नाणी प्रमाणी ? अभयदेवीया वृत्तिमें भी कहा गया है किगोयमा ! नो नाणी, अन्नाणी । जे अन्नाणी ते नियमा "वीन्द्रियाः केचित् ज्ञानिनोऽपि सास्वादनसम्यदुअन्नाणी-मइअन्नाणी य सुयअन्नाणी य। एवं जाव ग्दर्शनभावनापर्याप्तकावस्थायां भवन्तीत्यत उच्यते वणस्सइकाइया । बेइंदियाणं भंते किं नाणी किं 'नाणी वि अन्नाणी वि' त्ति ।" अन्नाणी? गोयमा! पाणी वि अन्नाणी वि । जे जीवाभिगम सूत्रमें भी इसी प्रकार कथन पाया जाता नाणी ते नियमा दुनाणी । तं जहा-आभिणिबोहिय- है। इनसे स्पष्ट है कि श्वेताम्बर भागमकार सासादन नाणी य सुयनाणी य। जे अन्नाणी ते नियमा दुश्र- सम्यक्स्वी जीवका एकेन्द्रियों में उत्पन्न होना नहीं मानते, नाणी। तं जहा-आभिणिबोहिय अन्नाणी सुयश्र- किन्तु विकलेन्द्रियों में उत्पन्न होना मानते हैं और उनकी माणि । एवं तेइंदिय-चरिदिया वि।" इत्यादि। अपर्याप्त दशामें सासादन गुणस्थान पाया भी जाना है। राजगृहमें भगवान् महावीरसे गौतमगणधरने प्रभ इसीसे उनके दो ज्ञान होना भी माना गया है, जिसका किया-भगवन् पृथिवीकायिक जीव ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी? विचार आगे चलकर करेंगे। उत्तर-हे गौतम पृथिवीकायिक जीव ज्ञानी नहीं श्वेताम्बर कर्मग्रन्थ होते अज्ञानी ही होते हैं। और जो अज्ञानी होते हैं वे किन्नु श्वेताम्बर कर्मग्रन्थों में प्रागमके विरुद्ध एकेन्द्रियों नियमसे दो अज्ञानों वाले होते हैं-मति-अज्ञानी और में भी सासादन गुणस्थान माना गया है। चौथे कर्मग्रन्थकी श्रुत-अज्ञानी। तीसरी गाथा है___ इसी प्रकार अप्कायिक मादि वनस्पतिकायिक पयंत 'बायर-असंनि-विगले अपजि पढमवियनि अपज्जत्ते। जीवोंके सम्बन्धमें प्रश्नोत्तरी समझना चाहिये। फिर प्रश्न अजयजुअ संनि पज्जे सव्यगुणा मिच्छ रूससु॥ होता है-- अर्थात-"अपर्याप्त बादर एकेन्द्रिय, अपर्याप्त संशिप्रश्न-भगवन् द्वीन्द्रिय जीव ज्ञानी होते हैं या पंचेन्द्रिय और अपर्याप्त विकलेन्द्रियमें पहला और दूसरा अज्ञानी! ये दो गुणास्थान पाये जाते हैं। अपर्याप्त संज्ञिपंचेन्द्रियमें उत्तर-हे गौतम, दीन्द्रिय जीव ज्ञानी भी होते हैं पहला, दूसरा और चौथा, ये तीन गुणस्थान हो सकते हैं। और अज्ञामी भी होते हैं। जो ज्ञानी होते हैं वे नियमसे पर्याप्त संज्ञिपंचेन्द्रियमें सब गुणस्थानोंका होना संभव है। दो शानों वाले होते हैं-भाभिनियोधिक ज्ञानी और श्रुत- शेष सात जीव स्थानों में, अर्थात अपर्याप्त तथा पर्याप्त सूक्ष्म ज्ञानी । जो अज्ञानी होते हैं वे नियमसे दो अज्ञानों वाले एकेन्द्रिय, पर्याप्त बादर एकेन्द्रिय, पर्याप्त असंज्ञि पंचेन्द्रिय होते हैं-आमिनिबोधिक अज्ञानी और अतमज्ञानी। और पर्याप्त विकलेन्द्रिय त्रयमें पहला ही गुणस्थान होता है।" इसी प्रकार श्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवोंके सम्बन्ध यही बात उसी कर्मग्रंथकी ५५ वी गाथा में भी में प्रश्नोत्तरी समझना चाहिये।" इत्यादि सूचित की गयी है जहां कहा गया है किद्वीन्द्रियादिक जीवोंको दो ज्ञानों वाले किस अपेक्षासे "सब्ब जियठाण मिच्छे सग साणि पण अपज्ज कहा यह टोकानों में बतलाया गया है । प्रज्ञापना-टीकामें सन्निदुर्ग।" . अर्थात्-मिथ्यात्व गुणस्यानमें सब जीव स्थान होते "बेइंदियस्स दो पाया कहं लम्भंति ? भएगाइ, है। सासादनमें पांच अपर्याप्त-बादर एकेन्द्रिय, वीन्द्रिय,
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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