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किरण १-२]
गिरिनगरकी चन्द्रगुफा
। अतएव यह अनुमान किया जा सकता है कि शिलालेखपर विचार करते हैं तो अनुमान होता है उक्तलेखमें चष्टनके प्रपौत्र और जयदामनके पोत्रसे कि सम्भवतः झूनागढ़की ये ही 'बाबा प्यारा मठ' के रुद्रदामनके पुत्र दामदजश्री या रुद्रसिंहका ही अभिप्राय पासकी प्राचीन जैन गुफाएँ धरसेनाचार्यका निवासहोगा। चटनका उल्लेख यूनानी लेखक टालमीने अपने स्थल रही हैं । क्षेत्र वही है, फाल भी वही पड़ता है। ग्रंथमें किया है। यह ग्रन्थ सन १३० ईस्वी (शक५२)के धरसेनकी गुफाका नाम चन्द्रगुफा था । यहाँकी एक लगभग लिखा गया था । रुद्रदामनके समयके सुप्रसिद्ध गुफाफा पिछला हिस्सा-चैत्यस्थान-चन्द्राकार है।
समें शक ७२ (मन १५०) का उल्लेख है । रुद्रसिंहक आश्चर्य नहीं जो इमी कारण वही गुफा चन्द्रगुफा शिलालेख व सिक्कोंपर शक १०२ से ११० व ११३ कहलाती रही हो। आश्चर्य नही जो उपयुक्त शिलामे ११८-११९ तकके उल्लेख मिले हैं । शक संवत् लेख उन्ही धरमेनाचार्यकी स्मृतिमेहीअंकित कियागया १०३ का लेख अनेक बातोंमें प्रस्तुत लेखक समान हो। लेखमे ज्ञानका उल्लेख ध्यान देने योग्य है। यदि होनस हमारे लिये बहुत उपयोगी है। जीवदामनके यह लेग्य पूरा मिल गया होता तो जैन इतिहासकी शक ११६ से १०० तकक सिके मिले है । क्षत्रप एक बड़ी भारी घटनापर अच्छा प्रकाश पड़ जाता। गजाअोके राज्यकालकी सीमाएँ अभी भी बहुत कुछ इस शिलालेखकी दुर्दशा इस बातका प्रमाण है कि गड़बड़ोम हैं। इन राजाश्राम यह भी प्रथा थी कि हमारे प्राचीन इतिहासकी सामग्री किस प्रकार आज राज्यपरम्परा एक भाईके पश्चात् उससे छोटे भाईकी भी नष्ट-भ्रष्ट हो रही है। ओर चलती थी और जब सब जीवित भाइयोका यह लेख सर्वप्रथम सन् १८७६ में डा० बुल्हर राज्य समाप्त हो जाय तवनई पीढ़ीकी ओर जाती थी। द्वारा सम्पादित किया गया था और फोटोग्राफ तथा इससे भी कमनिश्चयमे कुछ कठिनाई पड़ती है। अग्रजी अनुवाद महित Archaeologleal Survey नयापि पूक्ति निश्चित उल्लेखो परम हम प्रस्तुतो- of Western India Vol. II में पृष्ठ १४० पयोगी इतनी बात ता विदित हो ही जाती है कि उक्त आदि पर छपा था । यही फिर कुछ साधारण सुधारोके लेख दामदजश्री या रुद्रसिंहके समयका है भार इनका साथ सन् १८६५ में स्याहीक ठप्पेकी प्रतिलिपि व समय शक ७२ से शक ११६ अर्थात् सन् १५० में अनुवाद सहित 'भावनगरकं प्राकृत और संस्कृतके १६७ ईस्वी तकक ४७ वर्षोंक भीतर ही पड़ता है। शिलालेख' के पृ०१७ श्रादिपर छपा। रैपसन साहबने रुमिहक शक १०३ के गुड नामक स्थानसे प्राप्त लेख अपने Catalogue of cons of the को देखनसे अनुमान होता है कि प्रस्तुत लेख भी Andhra Dynasty etc,P.LXI, No. 40 उन्हीक ममयका र उक्तवपके आसपासका हो तो मे इस लेखका संक्षिप्त परिचय कराया है तथा प्रो. आश्चर्य नहीं। अतः प्रत्तत लेखका काल लगभग शक लडर्सने अपनी List of Brahmi Inscri१०३ (मन १८१) अनुमान किया जा सकता है। ptions में नं०६६६ पर इस लेग्बका मंक्षिप्त परिक्षय
हम पखंडागमके प्रथम भागकी प्रस्तावनामें दिया है। यह लिस्ट एपीग्राफीश्रा इंडिका, भाग १० पटूखंडागमक विपयके ज्ञाता धरमनाचार्यक विषयमे सन् १९१२ क परिशिष्टमं प्रकाशित हुई है। इस लेख वता आये है कि उन्होने गिरिनगरकी चद्रगुफामे रहते का अन्तिम सम्पादन व अनुवादादि राखलदास हुए पुष्पदन्त र भूतबलिको सिद्धान्त पढ़ाया था। बनर्जी और विष्णु एस० सुखतंकरने किया है जो जैन पट्टावलियो आदि परसे उनके कालका भी विचार एपीग्राफिया इंडिका भाग १६, के पृ. २३६ आदिपर करके हम इस निर्णयपर पहुंचे थे कि उक्त ग्रन्थकी छपा है और इसीक आधारसे हमने उसका पाठ लिखा रचना शक : (सन् ८७) के पश्चात् हुई थी । अब है। उक्त गुफाओंका मर्वप्रथम वर्णन बर्जेज साहबने हम जब गिरिनगरकी उक्त गुफाओं बार वहाँके उक्त किया है, जो उनकी Antiquities of Kutchh