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________________ ४१२ अनेकान्त । वर्ष ५ इस 'बंधसामितविचय' प्रकरण में प्रादेशकी अपेक्षा णाशावरणीयगां णियमा बंधगो। एवमेक्कमेक्कस्स बंधगो।" चौदहमार्गणाओं में बंधव्युच्छित्ति आदिका वर्णन है, किन्तु परस्थान-संन्निकर्षका वर्णन इस प्रकार किया गया भागे ताडपत्र नं. २८ गायब होजानेसे यह प्रकरण अधूरा है-तत्थ भोघेण भाभिणिबोधियणाणावरणं बंधतो चदुरह गया। साथ ही अगले कालभंगवित्रय' का भी पूर्वाश- दंसणा० पंचंत णियमा बंधगो। पंचदंस० मिच्छत्त सोलनष्ट हो गया है। सक भयदुर्ग चदुवायु श्राहारदु. तेजाक० वरण. ४ अगु. कालभंगविचयकी प्रतिपादनाका नमूना इस प्रकार है:- ४ श्रादाउजो० णिमिण तित्ययरं सिया बंधगो, सिया "तित्थयरं पढमाए जहरणेण चदुरासीदिवस्ससह- प्रबंधगो । सादं पिया बं०, सिया अबं०, प्रसाद सिया स्माणि; उक० सागरो० देसू० विदियाए जह० सागरोवम० ब०, सिया अबं०, दोए पगदीणं एक्कदरं बंधगो । ण सादिरेयायिा, उक. तिमिण सागरो० देसू० तदियाए जह. चेव श्रबं.। .." तिरिया सागरो. सादिरेयाणि, उक्क० तिण्णि सागरो. पागे भागाभागानुगमका वर्णन ५० पृष्ठोंमें इस प्रकार सादिरेयाशि" .......। है--यहाँ असंही मार्गणाकी अपेक्षा कहते हैं कि--"असइसमे प्रेसकापीके २० पेज लगे हैं । अंतरानुगममें एणी धुविगाणं बंधगा सव्वजी. केव० ? अशंता भागा; २४ पेज लगे हैं। उसका वर्णन इस प्रकार है प्रबंधगा सत्थि । सेसाणं णादीणं तिरिक्खोघं सरिणमण"अतराणुगमे दुविहो णिदेसो, श्रोघेण श्रादेसेण य।" जोगिभगो।" "तत्व मोघेण पंचणाणावरण-छदंसहावरण-सादासाद- भागे १० पेजोंमें परिमाणानुगम है जो इस प्रकार चढसंजलणपुरिसवेद-हस्सरदि-अरदि-सोग-भयदुर्गुच्छा- है-- ... "सादधगाबंधगा केव.? अणंता। प्रसादपंचिदिय-तेजाकम्मइय-समचदुरससंठाण-वण्णा० ४ - अ. बंधगाबंधगा केव.? अयंता दोग वेदणीयाणं बंधगा: गुरु. ४ - पसथविहायगदि तस० ४ - थिरादि दोरिण बंधगा अणंता । एवं सत्तोणक० पंचजादि छास्संठाणं छ युगल-सुभग-सुस्सर-प्रादेज-णिमिण-तित्थयर-पंचतरा- संघ० दोविहाय. तसथावरादिदमयुगलं दोगोदं च ।" टोविटाय इगाणं बंधतरं केवचिरं कालादो होदि ? जहरणे एग श्रागे ५ पेजोंमे क्षेत्रानुगमका वर्णन है यथा-- समझो। उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं; एवरि णिहा पचला जह- "सादासाद-बंधगा प्रबंधगा केवडि खेत्ते ? सबलोगे। एणुक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ।" दोरणं वेदणीयाणं बंधगा केवडि खेत्ते ? सव्वलोगे। प्रबं. भागे 'संरिणयासं'-संन्निकर्ष प्रकरणके स्वस्थान तथा पर- धगा केवडि खेत्ते । लोगस्म असंखेजदिभागे। एवं सेस्थानसे दो भेद हैं। इसमें ३८ पेज लगे हैं। 'मत्थाणस- साणं पत्तेगेण वेदगीयभंगो।" रिणयासे पगदं दुविधो गिद्देसो पोषेण श्रादेपेण य । स्पर्शानुगममें ४० पृष्ठ हैं। यथा--तस्थ अोघेण सत्य श्रोघेण प्राभिणिबोधियणाणावरणीयं बंधतो चदुगह पंचणा छदसणा० अटक. भयदु० तेजाक. वगण. ४ अथवा वनादिकी प्राप्ति करना-वृद्धि करना प्रतिबोध हे, अगु० उप० णिमि पंचंतराइगाणं बंधगेहि केवडिय खेतं उमका भाव प्रतिबोधनता है। क्षणलवोंकी प्रतिबोधनताको फोसिदं ? सव्वलोगो। प्रबंधगा लोगस्स असंखेजदिभागो क्षणलवप्रतिबोधनता कहते हैं। असंवेजा वा भागा वा सम्बलोगो वा।" धवलाटीकामे बताया है, कि एक भावनास भी तीर्थकर भागे कालानुगम के वर्णनमें ११ पृष्ठ लगे हैं। उस प्रकृतिका बंध होता है, किन्तु उस एक भावनाम अन्य का नमूना इस प्रकार है-- पन्द्रह भावनाएँ समाविष्ट रहती हैं। पन्द्रह भावनाअोको - "तथ पोषेण पंचा० णवदंम मिच्छत्त० सोलसक. छोड़कर एक भावना सागोपाग जीवित नहीं रह मकती। भयदु० नेजाक० श्राहारदुर्ग वरण. ४ अगु० ४ श्रादाउजो. इन भावनाओके विषयमे धवलाटीकामे जो सुन्दरतया णिमिणतिन्थर पंचतराइगाणं बंधगा अबधगा केवचिरं अपूर्व प्रकाश डाला है यह स्वतन्त्र लेखका विषय है। कालादो होति ? सव्वद्धा। सादासादाणं बंधा बंधाग.
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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