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________________ * जैन-जगती* . अनेकान्तको सहायता विलम्बके लिये क्षमा-प्रार्थना हाल में भनेकान्तको बहसी निम्न सम्मनोंकी ओरसे कुछ खास कारण वश, जिनमें कामजी दुपाति १००) की सहायता माईत या पक्षालाबजी जैन अना और प्रेसकी कुछ गडबडी भी कारण है, अनेकान्तकी इस बालके प्राप्त हुई है, जिसके लिये दातार महाशय धन्यवाद संयुक्त किरणके प्रकाशनमें भाशातीत विलम्ब हो गया है। के पात्र हैं। इस सहायताका प्रधान श्रेय लादलीपसिंहजी इस कारण पाठकोंको जो प्रतीक्षा-जन्य कष्ट उठाना पड़ा। रतनलालजी कागजी देहबीको, उन्हींके खुदके त्यागभाव उसके लिये हम उनसे समाकी प्रार्थना करते हैं। और सम्पयनसे सहायताका यह सब कार्य सम्पस हुमा है। प्रकाशक 'अनेकान्त' भाप पहले भी ५०) ह. की सहायता दे-दिखा चुके हैं, kakkakka अतः भाप इसके लिये विशेष धन्यवादके पात्र हैं: छपकर तैयार है ३०)ला. सिद्धोमल एण्ड सन्स कागजी, चावडी बाजार, देहली (भाप पहले भी २० रु० की सहायता देचुके हैं)। ३०)लान्धमीमल धर्मदासजी कागजी, चावडी बाजार, देहली (ले० कुं० दौलतसिंह लोदा 'भरविंद') (आप भी पहले २० रु. की सहायता दे चुके है)। १५) ला०पी०एल० वरचूमलजी कागजी, चा. बा. देहली। हजार सरल एवं सुष्टु पद्योंमें:१५) ला०दलीपसिंह रतनलालजी कागजी चा.बा.देहली। 'चोट है और स्वर उष्म है। यह जैनोंमें मेल १०) गुप्तदान (दातार महाशयने नामकी प्राज्ञा नहीं दी)। चाहती है। अत: पढ़ी जायगी तो उन्हें सजीव समाज व्यवस्थापक 'अनेकान्त के रूप में मरनेसे बचने में मदद देगी।' -जिनेन्द्रकुमार, देहली। महाधवलकी प्राप्ति 'समाजको जागृत करनेका, उसको नवचैतन्योअनेकान्तके पाठकोंको यह सूचित करते हुए पी दयका नवसन्देश देनेका और जीवन के नये भावोंकी प्रसन्नता होती है कि 'महाधवल' नामका ओ शास्त्र मूड. प्रेरणा देनेका लेखकका ध्येय उर है। यह युवकोंको विद्रीके भण्गरमें सुना जाता था उसकी मकल पं०सुमेरचंद माह्वान और रूढ़ियों तथा प्रशानको चेतावनी है। . जी दिखाकर बी०ए० सिवनीको मूडविद्री पंचों तथा -भंवरलाल सिंघवी, कलकत्ता। भट्टारकजीके सदनुग्रहसे प्राप्त हो गई है। इसके लिये "जैनसमाजका यह त्रिकालदर्शी दर्पण, रूदी दिवाकरजीको कितनी ही असुविधामों का सामना करना पड़ा चुस्त साधुनों और श्रावकोंको चौकाने वाली, जागृतिके तथा भारी परिश्रम उठाना पड़ा, जिसके फलस्वरूप ही उन्हें लिए संजीवन-वटी, भाडम्बर और पाखंडके लिए बम्ब साफल्यश्रीकी प्राप्ति हुई। अत: भाप अपनी इस सफ का गोला है।' लताके लिये धन्यवाद के पात्र हैं और इसके लिये जनसमाज -श्रीनाथ मोदी, जोधपुर । आपका चिरकृतज्ञ रहेगा । यह और भी प्रसन्नताकी बात है कि दिवाकरजीने इसके एक भागका हिन्दी अनुवाद भी विद्यार्थियों, युवकों, समाज-चिन्तकों, साधुओं तय्यार कर लिया है और आप इसे जल्दी ही प्रकाशित सभीके लिये उपयोगी करना चाहते हैं परन्तु कागजका भारी दाम चढ़ जानेसे वे २७५ पृष्ठकी पुस्तक छपाई आकर्षक प्रकाशनके कामको स्थगित कर रहे हैं। मेरी रायमें यह मूल्य १) रु० पोस्टेज अलग कार्य गित नहीं होना चाहिये धनिकोंको इसमें सहयोग पता:देना चाहिये और यह जैसे तैये प्रकाशित ही होजाना (१) ज्ञानभंडार, जोधपुर चाहिये। देशकी वर्तमान परिस्थिकिको देखते हुए ऐसे (२) श्रीजैन गुरुकुल बागरा, (मारवाड़) सत्कार्यों में विलम्बका होना किसी तरह भी बॉछनीय नहीं कहा जा सकता। -सम्पादक
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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