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________________ सम्पादकीय १ अनेकान्तकी वर्ष समाति- थोड़ा बहुत प्रयत्न किया है वे सब भी धन्यवाद के पात्र है। इस किरणके साथ 'अनेकान्तका' चौथा वर्ष समाप्त इसके सिवाय, जिन लेखकोंने महत्वके लेलोद्वारा अनेहो रहा है। वर्ष में अनेकालने प्ररने पाठकोकी कितनी काम्तकी सेवा की और उसे इतना उन्नत, उपादेय तथा सेवा की, कितने नये उपयोगी साहित्यकी सष्टि की, कितनी स्पृहणीय बनाने में मेरा हाथ बटाया तथा जिनके सहयोग नई खोजें उपस्थित की, क्या कुछ विचार-जागृति उत्पन्न की के A के बिना मैं प्राय: कुछ भी नहीं कर सकता था, उन सबको और व्यर्थ के मामाजिक झगड़े-रंटोसे यह कितना अगल रह धन्यवाद दिये बिना भी मैं नहीं रह सकता। इन सजनोंमें कर ठोस सेवा कार्य करता रहा, इन मब बातोंको बतलानेकी पं. नाथूरामजी प्रमी, कपमालालजी साहित्याचार्य.बा. जरूरत नहीं-विश पाठकोंसे ये छिपी नहीं है। यहाँपर मैं जयभगवानजी वकील, बा० अजिनप्रसादजी एश्योकेट, बा. सिर्फ इतना ही बतलाना चाहता हूँ कि कुछ वर्षोंके अम्त- अगरचंदजी नाइटा, भी भगवत्स्वरूपजी, 'भगवत', बा. राल के बाद अनेकाम्तके दूसरे वर्षका प्रारम्भ करते हए. कामताप्रसादजी, श्रीदौलतरामजी 'मित्र',4. सुमेरचंदजी मैंने यह संकल्प किया था कि अब इसे कमसे कम तीन वर्ष दिवाकर, पं० परमानंदजी शास्त्री, पं. रामप्रसादजी शास्त्री, तो लगातार जरूर चलाया जाय; मेरा वा संकल्प पं.चंद्रशेखरजीशास्त्री, मुनि श्रीकांतिसागरजी, पं.काशीराम अाज पूरी हो रहा है, इससे मुझे बही प्रसन्नता।साथ जी शर्मा 'प्रफुल्लित', . धरणीधरजी शास्त्री. न्यायाचार्य ही, या देख कर और भी प्रसन्नताकि अनेकाम्त जनता महेन्द्रकुमारजी.पं. व्यायाचार्य पं.दरबारीलालजी कोठिया. के हृदय में अपना अच्छा स्थान बनाता हया, पूर्ण उत्साह पं० फूलचंदजी शास्त्री, पं.दीपचंदजी पांड्या और विनी के साथ पाँचवें वर्ष में कदम बढ़ानेके लिये कतनिधय और ललिताकुमारी पाटणीके नाम खास तौरसे उल्लेखनीय है। बद्धपरिकर है। इसका सारा श्रेय अनेकान्तके सहायको, इनमें भी कवि श्रीभगवत्स्वरूपजी 'भगवत्' का बासतौरसे सुलेखकों और प्रेमी पाठकोंको है। तृतीय वर्षकी १२वीं आभारी हूँ, जिन्होंने बिला नागा अनेकान्तकी प्रत्येक किरण किरण (पृ. ६६६) में प्रकाशित 'मेरी प्रान्तरिक इच्छा' में अपनी शिक्षाप्रद कहानी और कविता मेजकर उसे भूषित और चतुर्थ वर्षके नववर्षात (पृ. ३६) में दिये हुए मेरे किया है और जिनकी कहानियाँ तथा कविताएँ पाठकोंको 'श्रावश्यक निवेदन पर ध्यान देते हुए जिन मन्जनोंने अच्छी रुचिकर जान पड़ी हैं। प्राशा ये सब सजन अनेकांतके सहायक बनकर तथा महायना मेजकर मुझे मागेको और भी अधिक तत्परताके माथ अनेकान्तको प्रोत्साहित किया है उन सबका मैं हृदयसे प्राभाग है। अपना पूर्ण सहयोग प्रदान करने में सावधान रोगे, और यहाँ उन सहायक महानुभावोंके नाम देनेकी जरूरत नहीं दूसरे सुलेखक भी प्रापका अनुकरण करते हुए उसे अपनी जिनके नाम प्रत्येक किरणमें प्रकाशित हो रहे है अथवा बहुमूल्य सेवाएँ अर्पण करेंगे। समय समयपर उनकी प्रार्थिक सहायताके साथ प्रकाशित इस वर्षके मम्यादन-कार्यमें मुझसे जी भूले हुने होते रहे हैं। यहाँ पर तो उन महानुभावोंके नाम बास तौर अथवा सम्पादकीय-कर्तब्यके अनुरोध-परा किये गये मेरे से उल्लेखनीय है जिन्होंने अनेकान्तके नये ग्राहक ही नहीं किसी भी कार्य-व्यवहारसे या टीका-टिप्पणीमे किली भाको किन्तु महायक तक बनानेका स्तुत्य प्रयत्न किया है, और कुछ कष्ट पहुँचा हो तो उमके लिये मैं हृदयमे जमा-प्रार्थी वेबाबुछोटेलालजी जैन रईस कलकत्ता, तथा श्री दौलत- क्योंकि मेरा लक्ष्य जानबूझकर किसीको भी व्यर्थ कह रामजी मित्र', इंदौर। ये दोनों ही सज्जन खास तौरसे पहुंचानेका नहीं रहा और म सम्पादकीय कर्तव्यसे उपेक्षा धन्यवादके पात्र है। और भी जिन मजनोंने इस दिशामें धारण करना ही मुझे कभी इट रहा है।
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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