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________________ भनेकान्त महोगी जिसमें बाइबिलका अनुबादन हुमा हो। यही १८२० में मद्रासमें, चौथा सन् १८५५ में उत्सरीय भारतमें, कारण है कि संसारकी वर्तमान जनसंख्याका एक बहुत बड़ा पांच सन् १८६३ में पंजाब और षष्टम सन् १८७५ में भाग ईसुमतका अनुयायी पाया जाता है। भारतवर्ष में जबसं बैंगलोरमें स्थापित किया गया। इसके अलावा सन् १८१६ भारेजोंकी सल्तनत कायम हुई है तभीसे इंग्लिस्तान और में बर्मामें भी एक मण्डल कायम किया गया था। अन्य देशोंके ईमाई इस देशक लोगोंको ईमाई बनाने में लगे उपर उधत सातों मण्डलोंने सन् १९४० में करीब हुए हैं। इसके लिये वे अनेक नीतियां अखियार कर रहे हैं। एकसौम भी ज्यादा भारतीय भाषाओं में १३६३३१७ इन लोगोंने इसी सत्यको महेनज़र रखकर मार हिन्दुस्तान में बाइबिलकी प्रतियां प्रकाशित कर प्रचार किया है। ये मंडल चम्पताल और मिशन कायम किये है और इनमें अरबों बाइबिलको हराक पढ़े लिखे मनुष्य के हाथमे देखना चाहते रुपये अब तक खर्च किये गये हैं। यह सब इन्होंने व्यर्थ है। बहुत ज्यादा प्रतियां तो मुफ्तमें बांटी जाती हैं और नहीं किया, इसमें लाखों हिन्दुस्तानियोंको ईमाई बनाया कतिपय लागत मूल्यमे भी कम कीमतमें बेची जाती हैं। है और बना रहे हैं। ईमाई बनाने में मम्मे प्रभावक और मेटिक पाम होनेपर एक छोटी बाइबिल मुफ्त मिलती है जबरदस्त प्रयोग बाइबिलका प्रचार है। इस वर्षकी (सन् और बी०ए० पास होनेपर बड़ी बाइबिल मुफ्त मिल १५४१-४२) की 'दी इपियन इयर बुक' ( The सकती है। Indian Year Book ) नामक पुस्तक ४४३ करीव १३० वर्षसे बाइबिलका इस देशमें प्रगतिके पृष्टपर देखनम बाइबिलक प्रचारके महाप्रयनपर खामा माथ प्रकाशन और प्रभार जारी है। इसके प्रचारका व्योग प्रकाश पड़ता है। इस पर कमें बतलाया है कि बाइबिलके जानने के लिये 'दी इण्डियन इयर बुक' में प्रकाशिन लिस्ट प्रचारके लिये भारतवर्ष में छह मगड (Auxiliaries) को पाठकों के समक्ष उपस्थिन कर रहा हूं जिम्पस पाठक सहज कायम किये गये थे । उनमें सबसे पहले सन् 151 में हीमें जान सकेंगे कि ईमाई लोग अपने उसूलोंका प्रचार कलकत्ता, दूसरा मन १८३ में बम्बईमें, तीसरा सन् कितनी तन्मयताके साथ कर रहे हैं :-- माम मण्डल १.३३ । १६३४ । १६३५ । १३६ ११३७ १९३८ १९३६ १-कलकत्सा | ०३०६५७ १९२०६४ २१२५५८२४४७७० २४४२६२ २३८२४२ २१८३६१ २-बम्बई |२१४५४११. २४३४७४ २१३२७६ . २३०५२E | २३२४६४ | २४८४." ३-मदाम ३०१३१६२८६१२२ । २१४७०० ३५२७१४ । ३३८१२३५६६८६ ४४४८४८ ४-बैंगलोर २३६१२३४०८३ । ३१४१०। ४४७०५ । E२४ ४८३७२ ५-उत्तरीय भारत २३६८०. २२२२१२ २३८३६६ १६६८३४ |८७.०० १८७५६८ / ०१२३२१ ६ पंजाब ६४६०५। ७७७६६ । १७७६०८७६१४१४४६२ १०७८४५ | १०६५७० .-बर्मा १३४३५७ १०६६२३ । १०२०७० | १०४८२, ५२५१ । ११३१२६ । १०४१६. मीज़ान २३८४३६१४०२२-१२३२८११२३५८३४ ।।२५५४४३ १२७.७८८।१३८२०३३ . ईसाई धर्मके इस महाप्रचारपरमे यदि जैनधर्मक अनु- साधारणमें प्रचार किया आय तो इसे जनताका भारी पायी कुछ शिक्षा ग्रहण करें और धर्म प्रचारमें भले प्रकाग्म अभिनन्दन प्राप्त होगाइममें जरा भी संदेह नहीं है। क्यों संलग्न हो जाये तो संमारमें जैनधर्मके माननं बालोंकी कि जनताके चित्तको अपनी मोर माकर्षित करनेकी खूबी कोई कमी म रहेगी। अभी संमार इमक महोपकारक, खर हम धर्ममें मौजन है, जमान महा प्रचारकी और मैत्री प्रसारक, स्याहारमूलक, महिमा और कर्मसिद्धान प्रसारक समाजके उपार व्यवहारकी । पाशा है जैनसमाजकं पादियोंको जानता ही नहीं। जो विद्वान् कुछ जानने उदार महानुभाव इस घोर विशेष ध्यान देंगे घोर लोकहित बगे। वे मुझकंठस जैनधर्मकी प्रशंसा कर मोरे, जिससे कीष्टिसं जैनधर्म तथा उसके साहित्य के प्रचारमें अपना स्पष्ट है कि यदि यह धर्म अधिकांश जमताके परिचयमें करीग्य समझते हए शीघ्र मावधान होंगे। खाया जाय और इसके धर्मग्रन्धोंका बाइबिल के समान सर्व
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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