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________________ ६१४ अनेकान्त लगभग सूर्योदय के समय हुई थी, इस लिये उसका नाम 'उदयन' रखा गया । उसी विपुलाचल पर एक ब्राह्मण ऋषि ब्रह्मसुन्दर अपनी स्त्री ब्रह्मसुन्दरीके साथ रहता था। मृगावती के पिता चेटक मुनिने अपनी पुत्री और उसके शिशुको ब्राह्मण मुनिके जिम्मे सौंप दिया, जहां पर उनकी देख-रेख अपने कुटुम्बी जनों के समान की जाती थी। इस ब्राह्मण ऋषिका एक पुत्र 'युगी' नामका था। युगी और उदयन बाल्यकाल से ही पक्के मित्र हो गये और उन की मित्रता जीवन पर्यन्त रही । [वर्ष ४ चाहता था । जबकि उदयन वैशाली में शासन कर रहा था तब उसका पिता शांतिक, जो मृगावतीक वियोगके कारण बहुत दुग्बी था, अनेक स्थानों में ग्वाज करता हुआ विपुलाचल पहुंचा, जहां उसे उसकी रानी मिली जो अपने पिता के संरक्षण में थी रानी कं पिताकी आज्ञा से शांतिक उसे कौशाम्बी ले गया । कुछ समय के अनंतर उदयनको अपने पिताका भी राज्य मिला और इस तरह वह कौशाम्बी और वैशाली दोनों का शासक होगया । कुछ समय बाद चेटक मुनिके पुत्रने, जो अपने पिताकं राज्यस्यागके बाद से राज्य शासन कर रहा था, स्वयं राज्यको छोड़कर तपस्वी बनना चाहा । वह अपने भावको प्रगट करनेके लिये अपने पिता के पास पहुंचा, जहाँ से सुन्दर युवक उदयन मिला जिसका परिचय उसके नानाने कराया । जब यह मालूम हुआ कि उदयन उसकी बहनका पुत्र है, तब वह उदयनको उसके नाना राज्यका शासन करनेके लिये अपने नगर में लेगया । उसके साथ में उसने उसके मित्र तथा साथी युगी को भी ले लिया था, जोकि उसके जीवन भर उसका महान सहायक रहा। जबकि उदयन अपने उपपिता ब्रह्मसुन्दर मुनिके पास रहता था, तब उस ब्राह्मण ऋषिने उसे एक बहुमूल्य मंत्र सिखाया था, जिसकी सहायनास अत्यन्त मत्त और भीषण हाथी भी भेड़ के समान शान्त और निरुपद्रव बनाया जा सकता था। उन्हीं ब्रह्म ऋषि पुरस्कार में उसे एक दिव्य-वाद्ययंत्र भी मिला था जिसकी ध्वनिस बड़े बड़े जंगली हाथी पालतू और अधीन बनाये जा सकते थे। इस यंत्र और बाजेकी सहायता से उसने, जबकि वह जंगल के आश्रम में रहता था, एक प्रसिद्ध हाथी को वश में किया, जो पीछे ऐसा दिव्य गजराज जान पड़ा जिसमें अनेक वर्षों तक उसकी भारी सेवा करने की सामर्थ्य थी। जब उदयन अपने नाना के आवासस्थान वैशाली गया, तब उसने अपने मित्र और साथी युगी को ही अपने साथ नहीं लिया, बल्कि इस हाथी को भी साथ में लिया, जो उदयनकुमारकी सेवा करना इसके अनंतर उदयन के सच्चे साहसपूर्ण कार्यों का आरंभ होता है। गुफ़लत से उसका दिव्य हाथ वांजा है। वह अपनी वीणा लेकर हाथीकी खोजम निकलता है, इसी समय उज्जैन के महाराजा प्रचादन अपने सेवकको वत्स तथा कौशाम्बीके नरेशोंम कर वसूल करनेके लिये भेजते हैं। प्रचोदनका मंत्री शालंकायन इस साहसपूर्ण कार्य में हाथ डालने से मना करता हुआ उपयुक्त अनसरकी प्रतीक्षा करनेकी सलाह देता है। जब उदयन जंगलमे घूम रहा था तब प्रच्चादन उसे क़ैद करनेका उपयुक्त अवसर देखकर हाथी के रूप में एक इस प्रकारका यंत्र भेजा जिसके भीतर हथियारबंद सैनिक छिपे हुए थे । ट्रोजन (trojan) के घोड़के समान यह यांत्रिक गजराज उस बनम बेजाया गया जहाँ उदयन अपने खाये हुए हाथीको खोज रहा था । इम यांत्रिक गजगजको जंगली हाथी समझकर उदयन उसके पास पहुंचा ही था कि शीघ्र ही उसके भीतर से सैनिक कूद पड़े और उन्होंने उदयनको क़ैद कर लिया । उदयन कैदी के रूपमें उज्जैन लाया गया। जबकि sea कैदी के रूपमें था तब एक समय उसके मित्र और मंत्री युगीको मालूम हुआ कि महाराज उदयन को उज्जैन के नरेशने कैद कर लिया है; इसलिये उसने इस बानका निश्चय किया कि किसी न किसी तरह उसे कैदमे छुड़ाऊँ और उज्जैन के नरेशको उसकी उद्दंडता के कारण दंडित करूँ । इसलिये वह भेष बनाकर अपने मित्रोंके साथ वहाँ गया और उपयुक्त अवसरकी प्रतीक्षा में उज्जैन के समीप ठहर गया
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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