SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 655
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धर्कट-वंश (ले०-श्री अगरचन्द नाहटा) P - चीन जैन जातियोंका इतिहास अभी तक पर प्रस्तुत 'धाकगढ़' कहां है ? पता नहीं। हमें उपलब्ध प्राय अंधकारमें पड़ा है। इस महत्वपूर्ण कार्य के लिये प्राचीन प्रमाणोंसे ज्ञात होता है कि प्राचीन समयमें धर्कट O अनुसन्धान बहुत ही कम हुआ है एवं सामग्री जानिका निवासस्थान 'श्रीमालनगर' या उसके आसपास ही की भी कमी है। कई जातियोंके तो केवल नाम ही इतिहास था। यथा-- के पन्नों में रह गये हैं, कई जातियोंका रूपान्तर हो चुका है, श्रीश्रीमालपुरीयधर्कटमहावंशः सुपर्वोज्ज्वलः । काल-प्रभाववश कई प्रसिद्ध वंश प्राज अन्यवंशोंके अंतर्भूत (जिनविजय-सम्पादित प्रशस्तिसंग्रह, प्र० नं०६३) हो चुके हैं । अर्थात् कई अप्रसिद्ध वंशोंने पीछेसे कुछ प्रसिद्धि । "श्रीमालाचलमौलिमूलमिलितस्त्रैलोक्यसुश्लाधितः । प्राप्त करली और प्रसिद्ध वंश लोप होगये । पर्वालीकलितः सुवर्णनिलयः प्रामादलब्धालयः । 'दिगम्बरजैन डाइरेक्टरी के पृष्ठ १४२० में धाकद जाति नीना--भ्यकुनः प्रलीनकलुषः शुभ्रातपत्रानुगो। का उस्लेख मिलता है और उनकी जन संख्या इस प्रकार वंशोस्ति प्रकटः सदोषधनिधिः (१) श्रीधर्कटानां पटुः ॥१॥ बतलाई गई है:--मध्यप्रदेशमें मनुष्य संख्या (प्रशस्ति नं०१२) १० एवं बम्बई पहाता (गुजरात, महाराष्ट्र और दक्षिण महाराष्ट्र) में सं० १३६८ की प्रशस्ति नं० ३६ में धर्कटवंश और १६२ अर्थात् कुल १२७२ जनसंख्या है। श्वेताम्बर समाज उपकेश वंश दोनोंका एक ही साथ उरलेख है। संभव है में पाकद नामक जातिका स्वतंत्र अस्तित्व तो अब नहीं रहा उस समय तक धर्कट वंशका प्रभाव कम होकर उपकेश वंश पर पोसवाल जातिकतर्गत 'पाक' मामक एक गोत्र की प्रसिद्धि अधिक होगई हो प्रतः धकट बंश उसके अंतअवश्य । भाकरका संस्कृत प्राचीन नाम 'धर्कट' है, यह भूत होगा। तो निश्चित है पर धर्कट नाम का एवं क्यों पड़ा ? इसके धर्कटवंशकी प्राचीनतानिर्णयका कोई साधन प्राप्त नहीं है। उत्पत्ति-स्थानकी भांति धर्कट वंशका समय भी अनिश्चित धर्कटवंशका उद्गमस्थान है, पर १०वी ११वीं शताब्दीके ग्रन्थों में इस वंशका उल्लेख माहेश्वरी जातिमें भी 'धाकर' नामक शाखा अद्यावधि पाया जाता है, अत: उससे प्राचीन अवश्य है। हमें उपलब्ध विद्यमान है। माहेरवरी जातिके इतिहास पृ०३० में उसके प्रमाणों में सबसे प्राचीन प्रमाण कविधनपाल-रचित भविसयत्तउत्पत्ति स्थानके विषपमें लिखा है कि-"गुजरात प्रान्तके कहा है। यपि उक्त अन्धमें प्रन्थकारने रचना-सम्बत् नहीं भाकगदमें २० खापोंके महेश्वरियोंके परिवार भाकर बस दिया है पर डा. हर्मनजैकोबी वं चिम्मनलाल भाईने उसका गये, जो भागे जाकर पाकर महेश्वरीके नामसे सम्बोधित समय भाषाको दृष्टिसे विचार करकं १०वीं 11 वीं शताब्दी किये जाने लगे। इनमें पाज भी ३२ खा विधमान है।" निश्चित किया है।
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy