________________
६०८
अनेकान्त
के आशका मान करना चाहिए !'
हार जो मान लेते हैं-तुग्न्स | आखिरी और अकाकुबेरकान्नके मामने उलमन है-जटिल, व्य फैसला जो माना जाना है उसका।विवादस्थ ! बम विवश किया जारहा है कि वह गुणवनी, यशोमती, प्रियदत्ता वगैरह सभी प्रतिक्षाको नोड़ दे। अानन्दोत्साहकं साथ एक हजार कन्याओं को बुलाया गया, बहुमूल्य वखालंकारके पाठ कुमारियोंका पाणिग्रहण कर, परिवारको खुशी अलावः एक एक म्वर्णपात्रमें, शर्करामिश्रित सुमें अपनी खुशी मिला दे!
स्वादु ग्वीर देकर कहा गया कि-'सब सुदर्शन - पर, मवाल है-'क्या इसके लिये उसकी सगेवरके तटपर-जहाँ विशाल मण्डप बना हुआ अम्तगत्मा तैयार है ? क्या मह सकेगा, युवक है-जाएँ ! खीरका भोजन करें, वखालंकार धारण तेज प्रतिज्ञाभंग महापाप को?
कर फिर पधारें। एक स्वर्णपात्रमें हीरकालंकार पड़ा कुबेरकान्त अब तक शान्तिसे काम लेग्हा था, हुआ है, जिसके हाथमें वह पाएगा, वहीं कुमारकी पर अब शान्ति बतना उसके वशकी बात न रही!
क वशका बात न रहा! प्राणेश्वरी होगी।' सा भी गंभीरतासं उसने कहा-'महाराज ! जग विचागिए ना, आप मजा अपराधीका नम्रक लिहाज
स्वर्ण-पात्रके भीतर, खीरकं नाचे कन्याओंका में देने हैं, या कानूनके मुनाबिक ? मौत-बूढ़े,
भाग्य, भविष्यका सुख छिपा हुआ है । प्रत्येक कन्या, जवान, बालकका खयाल रखनी है-क्या ? अगर ।
कन्याका पिता या दृमग अभिभावक, जो उसके माथ नहीं, ना बतलाए जवानी में धर्म-पालनम क्या मना
है, उम रहस्य को जान लेने के लिए आतुरतासं प्रतीक्षा करते हैं आप लोग ?..पिताजी ! गलत गस्तेपर न कर रहा है । वस्त्र-श्रालंकारोंकी और किसकी नज़र, ले जाए मझे! प्रतिज्ञाभंग महापापमें न डयाइए' खीरकी पर्वाह किम-सब खीरका धरातल टटाल मैं ऐसा न कर मकँगा, मुझे क्षमा कर दीजिए !' रही है, उँगलियां डाल-डाल कर ।
काश ! सबके हाथों में हीरकालंकार आ सकते । कुबेगमित्र मनपर आज दूमग चिन्ताका बोझ
दुर्भाग्य । 'सब उदास होगई, प्रियदनाक है। या कह लीजिए-चिन्ता वही है, पर, उसका
मिवा । कोमलांगियोंके कमलमुग्व मुरझाकर, बामीदूसग पहलू सामने भागया है ! नर्गका बदल गया है।
फूल-म हा उठे। क्षणभर पहलेकी आशा-उत्कण्ठा काम सहज नहीं है, एक हजार पाठ कन्याओं
इन्द्रधनुष की तरह विलीन होने लगी । वेगके साथ मेंमें एकका दक्षतापूर्ण निर्वान ! जो रूप, गुण
धड़कनेवाली ह्रदयगति जैसे बंद होने जा रही हो। और घग्में सर्वोत्तम हो । घग्सं दो मतलब है
निगशा-निशा इधर म्तब्धताका सृजन कर रही ममृद्धियिशेप और निर्दोष कुल । माथ ही इमपर
है और उधर-7-उधर श्राशाका सूय उदय हारहा ध्यान रखना कि कि.मीकी तबियत न दुखे, बुरा न
है । उमंग किलकारियाँ भर रही है।... लगे; कोई अपमान न समझे अपना। क्योंकि वैमा
प्रतियोगितामें बिजलीकी तरह। हांना शांति भंग कर सकता है।-युद्ध या वेमी ही दःखद घटना घट जाना कठिन नहीं । भागन्तुक
प्रियदत्ताने अपने पितासे कहा-'मेरे हाथमें रत्न समुदाय धनी भोर स्वाभिमानी जो है।
भागया-पिताजी । यह देखाआखिर एक उपाय काममें लाया गया। सबको उसने मुट्ठी खोल दी। पसंद भाया वह । क्योंकि किसीकी नाखुशीका प्रश्न कोमल-हथेलीपर एक हीग चमचमकर मुस्करा उठता था-उसमें। पत्नी-
निर्वाचन भाग्य रहा था। वह नहीं सकते, उस हथेलीपर स्थान पाने (छोड़ दिया गया था। भाग्यके सामने लोग सबब, या अपनी स्वामिनीके सौभाग्य-लाभ पर?