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जाके लिए गौरव होती है, खुशी होती है !
लेकिन उधर - कुबेरकान्तको अपनी शादी की कितनी खुशी है, यह बतलाना भी नितान्त कठिन है ! उसे यह विशाल आयोजन एक असा बोझ सा जान पड़ रहा है! जैसे वह आयोजन पृथ्वीपर न होकर उसकी छाती पर चढ़ा हो। दम उनका घुट मा रहा है मुँहपरकी उदासी आन्तरिक व्यथाको प्रगट करने में कटिबद्ध तो है, पर छाये हुए संकटको टालने में समर्थ नहीं ।
अनेकान्त
वह बहुत चाहता है कि अपनी मजबूरीको पिताजी के सामने रखकर वेदनाको हल्का करे | पर, हिम्मत जो नहीं पड़ रही । पिताका उत्साह आयो जनकी विशालता जा उसकी वाणीको मूक बनाये दे रही है।
वह किस तरह समझाए कि उसने 'एक पत्नी व्रत' ले रखा है ! इतनी कन्याश्रकी पत्नी रूप में ग्रहण करना उसकी प्रतिज्ञा की हत्या है। जिसे वह खुली आँखों, कभी देवनका तैयार नहीं ।
लेकिन सवाल तो यह है कि वे बज-से शब्द उसे मिलें कहाँ ? जिनके द्वारा पिताका उत्साह श्राहत होकर कराह उठेगा, आनन्द प्रासाद बालूकी दीवार की तरह ढह जाएगा और आशाका आँगन निराशा की अँधेरीमें डूबने लगेगा। यह निर्विवाद अनुमान उन कठोर शब्दों की खोज के लिए उसे कैसे प्रेरित करे ?
काश! कोई दूसरा व्यक्ति इस समस्याको बात्मल्यमयपितृ-हृदय के सामने रखकर सुलझावकी और संकेत कर सकता ?
[ वर्ष ४
अब कुबेरकान्त शादी की खुशी मनाए तो कैसे ? किस बिरतेपर ? खुशी होती है-मनसं । और मन उसका उलझ रहा है काँटोंमें। जिनके खिंचने में पीड़ा और लगे रहने में दुःख !
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लेकिन करे कौन ? - जानता कौन है इस ग् य को ? प्रतिज्ञाके वक्त महर्षि- सुदर्शन थे, जिनकी कल्याण-मय- वाणी प्रभावित होकर, यह परमप्रत जीवन में उतारा था ! तीमग था ही कौन ? और जो था भी, वह आज भी है, कहीं गया नहीं ! पर, है व्यर्थ! क्योंकि वह समझा नहीं सकता, बनला नहीं सकता, विधाताने उसे अक्ल तो दी है, पर मानव बोली नहीं । यों कि वह मनुष्य नहीं, पंछी है !कबूतर !
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(२)
कल शाममं कुबेरमित्र की दशा में तब्दीली होगई है! जबसे उन्होंने 'बर' वा मुंह उदास देखा है ! उन्हें लगा - जैम अचानक उनके सिरपर वजू गिरा है ! चोटने न सिर्फ बेदना सौंपकर आहें भरने के लिए मजबूर किया है, वरन् बढ़ते हुए वैवाहिक उत्माह में बाँध भी लगा दिया है ! जो उन्हें किसी भांति गवारा नहीं ! उत्साह उनका सामयिक और क्षणिक नहीं, वर्षो की साधनाका फल है ! बमुश्किल भविष्य, वर्तमान बना है !
कारण कोई ऐसा उन्हें दिखाई नहीं दे रहा. जिमने कुबेरकान्तकं कोमल मनको दुग्खाया हो, उदासी दी हो ! फिर वह उदाम क्यों ? जबकि उसे ज्यादा-से-ज्यादह खुशी होनी चाहिए ! वह जो नौजवान है ! मुग्धताके बजाय मुँहपर सूनापन, यह क्यों ?
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बहुत सोचा- विचारा, कुबेर मित्रने | पर, पुत्रकी उदासीकी तह तक न पहुंच सके ! कुछ हद तक अनुमान साथ देते, क़यास मही मालूम पड़ना, लेकिन आगे बढ़ते ही, निम्मारता खिलखिलाकर हँसती दिखाई देती ! और यों, हस्योद्घाटन शक्तिसं बाहर की चीज बन रहा था !
air घुमने उनकी स्वस्थताको दबोच दिया ! उस दिन वे पलंग उठे तक नहीं ! जान-मी जो निकल गई थी - गेम-गंगसे ! उनकी इस आकस्मिक रुग्णतासे गहरा प्रभाव पड़ा लोगों पर । आयाजनके कार्यक्रम में शिथिलता आने लगी !
सामने कबूतरका जोड़ा किलकारियाँ भर रहा है ! मस्त ! मुक्तकण्ठसे चिल्ला-चिल्लाकर जैसे कुछ सन्देश दे रहा हो ! मगर इसे कोई समझे तो कैम, कि वह कुछ समझाने के प्रयत्न में हैं ! मानवको