SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 619
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विषय-सूची समयमवरतीके कुछ नमूने ..." पराधीनका जीवन कैसा (कविता)काशीरामममा. भारतीयं-संस्कृतिमें जैनसंस्कृतिका स्थान १.पक-पत्नी-वन (कहानी)--[भी 'भगवत् न ६०५ -बा. जयभगवान वकीब ७५ अपना-भव (कविता)-[श्री 'भगवत' म ३चताम्बरों में भी भ. महावीरके अविवाहित होने १२ धर्कट-वंश-(श्री अगरचंद्र नाहटा की मान्यना-.परमानंद जैन शास्त्री ५७१३ तामिख-भाषाका मसाहित्य--प्रो०५० चक्रवर्ती ११३ जैमियोंका अपनश साहित्य-मुनिश्रीकांतिसागर ५८ १४ सयुक्तिक सम्मति' पर लिखे गये उत्तरलेखकी ५ तस्वार्थसूत्रका मन्तः परीक्षण-पं० फूलचंद्र शास्त्री ५८३ निःसारता--[40 रामप्रसाद जैन, शाची ६१० 'ममेकाम्स' पर प्राचार्य धसागर और विद्याधरका अभिमत २८ १५ ईसाईमतके प्रचारसे शिला-पंताराचंद दर्शनशास्त्री १२१ भावार्य जिनसेन और उनका हरिवंश १६ वरांगचरित' दिगम्बरग्रंथ है या बेताम्बर -पं. माथूराम प्रेमी -२० परमानन्द शास्त्री ६२३ 5 श्रीवीर बाबी-विवामनसिदांसमवम महाविद्री की साहित्य परिचय और समालोचन[ परमानन्दशाबी ६२८ कुछ वारपत्रीय ग्रंथों की सूची--[सम्पादक ५१0 १८ सम्पादकीय ६३१ अनेकान्तके सभी ग्राहकोंका चंदा इस किरणके साथ समाप्त है चूंकि चौथा वर्ष इस किरणके साथ समाप्त होता है अतः जिन प्राहकोंने अभी तक अगले वर्षका चंदा नहीं भेजा है उनसे निवेदन है कि वे इस किरणके पहुँचनेपर आगामी वर्षके चंदेके ३) रुपये शीघ्र ही मनीभाईरसे भेजदें। इससे उन्हें।) वी० पी० वर्चको बचत होगी और अनेकान्तका नवर्षा भी प्रकाशित होते ही समयपर मिल जायगा । अन्यथा, वी०पी०म मँगानेपर बहुतोंका नववर्षाव के बहुत देरस पहुंचनेकी भारी संभावना है क्योंकि यहाँ प्रांच पोष्टमाफिस होनेस वी०पी० प्रतिदिन १०-१५ से अधिक संख्या में नहीं लिय जाते। इससे अधिकांश प्राहकोंको बी०पी०करने में एक महीने भी अधिकका समय लग लग सकता है। मनीचारसं मूल्य भेजने में हमारी भी वी०पी० झझटसं मुक्ति हो सकती है। इस तरह इसमें दोनोंका ही लामहै। साथ ही यह भी खयान रहे कि कागजका मूल्य तिगुना होजानेपर भी भनेकान्सका दाबही ३) रखा गया है। ऐसी हालतम पूर्ण भाशा है कि अनेकान्तके प्रेमी पाठक शीमही सपना चंदा भेजनेकी रुपा करेंगे, तथा दूसरोंको भी प्राहक बनाकर उनका चंदा भिजवाएंगे, श्रीरसह अनेकान्सको सपना पूरा सहयोग प्रदान करेंगे। प्रत्येक ग्राहकको भनेकांतके कमसे कम दो पोप्राहकबनानेकी परूर पा करनी चाहिये। व्यवस्थापक-अनेकान्त'
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy