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वीरसेवामन्दिर सरसावामें ग्रन्थ-सूचीका काम जोरोंपर
REGISTERED No A-731.
२०० से ऊपर शास्त्रभंडारोंकी सूचियां या चुकीं
बीरसेवामन्दिग्ने दिगम्बर जैनग्रन्थोंकी मुकम्मल सूची तय्यार करनेका जो महान् कार्य अपने हाथ में लिया है वह खूब प्रगति कर रहा है। थोड़े ही दिनोंमें उसे २०० से ऊपर शास्त्रभंडारोंकी सूचियाँ प्राप्त हो चुकी हैं और कितने ही स्थानोंसे सूचियाँ जल्द भेजे जानेके वचन भी मिल रहे हैं, यह सब खुशी की बात है । परन्तु शास्त्रभंडार चूंकि हजारों की संख्या में हैं— मन्दिर - मन्दिर में शास्त्रभंडार है— मालूम नहीं कि कौनसा अलभ्यप्रन्थ किस भंडार में गुप्त पड़ा है। ऐसी हालत में मुकम्मल सूची तय्यार करने के लिये सब भंडारों की सूचियोंका आना परमावश्यक है। और इसलिये यह एक महान कार्य है, जिसमें सभी स्थानोंके विद्वानों तथा शास्त्रभंडारोंके अध्यक्षों एवं प्रबन्धकोंके सहयोग की जरूरत है । आशा है इस पुण्य कार्य में सभी बीरसंबामन्दिरका हाथ बटाएँगे और उसे शीघ्र ही अभिलषित सूची तय्यार करके प्रकाशित करनेका शुभ अवसर प्रदान करेंगे ।
इस सूची पर सहज ही में यह मालूम हो सकेगा कि हमारे पास साहित्यकी कितनी पूँजी है, दिग म्वरसाहित्य कितना विशाल है, वह कहाँ-कहाँ बिखरा पड़ा है। और कौन-कौन अलभ्य प्रन्थ अभीतक सुरक्षित है। साथ ही, बहुतों को नये-नये प्रन्थोंका पढ़ने, लिखाकर मँगाने तथा प्रचार करने की प्रेरणा भी मिलेगी, और यह सब एक प्रकार से जिनवाणी माताकी मकची सेवा होगी। अतएव जिस स्थान के सनोंने अभी तक अपने यहाँ के शास्त्रभंडाररकी सूची नहीं भेजी है उन्हें अपना कर्तव्य समझकर शीघ्र ही नीचे के पते पर उसके भेजने का पूरा प्रयत्न करना चाहिये । भेजी जानेवाली सूचीका नमूना इम किरण में दी हुई सूची अनुसार होना चाहिये और उसमें नीचे लिखे दस कोष्ठक रक्खे जाने चाहियें। जो कोक प्रयत्न करनेपर भी भरे न जामकें उन्हें बिन्दु लगाकर वाली छोड़ देना चाहिये :
१ नम्बर, २ प्रन्धनाम, ३ प्रन्थकारनाम, ४ भाषा, ५ विषय, ६ रचनाकाल, ७ श्लोकसंख्या, ८ पत्रसंख्या, ९ लिपिलंबन, १० कैफियत (प्रतिकी जीर्णादि अवस्था तथा पूर्ण - अपूर्णकी सूचनाको लिए हुए)।
नोट- यदि प्रन्थ के साथ में टीका भी लगी हुई है तो टीकाकारका नाम, टीकाकी भाषा और टीका का रचनाकाल भी साथमें दिया जाना चाहिये ।
जुगलकिशोर मुकनार
अभि 'बीग्वामन्दिर' पो० सरसावा (जि० सहारनपुर )
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मृतक प्रकाशक पं. परमानंदशास्त्री वीरमरिया जिए ज्यामलाल श्रीवास्तवद्वारा श्रीवास्तव प्रेम महारनपुर मुि
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