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अनेकान्त
[वर्ष २
शक १६EE, क्रिस्त शक १४१, शालिवाहन शक १८६४ तृतीय (मुम्मति, कृष्णराज प्रोडेयर) ने आजसे १११ वर्ष प्रचलित है।
पहले किस्तान्द १८३० में लिखाया है। उसमें निम्न उपयुक्त गाथामें प्रयुक्त हुए 'सगराजो-शकराजः' श्लोक पाए जाते हैं - शन्दका अर्थ कुछ विद्वान विक्रमराज और दूसरे कुछ "नानादेशनृपालमौलिविलसन्माणिक्यरत्नप्रभा- । विद्वान शालिवाहन मानते हैं। उस शब्दका विक्रमराजा भास्वत्यादसरोजयुग्मरुचिरः श्रीकृष्णराजप्रभुः ॥ अर्थ करनेपर इस समय वीर निर्वाणशक २६०४
श्रीकर्णाटकदेशभासुरमहीशूरस्थसिहासनः ।
भीचामक्षितिपालसूनुखनौ जीयात्सहस्त्र समाः ।। (६०१ + १९६६ = २६०४) प्रस्तुत होता है। और
स्वस्ति श्रीवर्द्धमानाख्ये, जिने मुक्ति गते सति ॥ 'शालिवाहन' अर्थ लेनेपर वह २४६६ (६०+१८६४%D
वहिरंध्राब्धिनेत्रश्च (२४१३) वत्सरेषु मितेषु वै॥ २४६६) प्राता है। इन दोनों पक्षोंमें कौनसा ठीक है,
विक्रमाङ्कसमास्विंदुगजसामजहस्निभिः (१८८८) । यही समालोचनीय है। शालिवाहन अर्थ करनेपर भी दो
सतीषु गणनीयासु गणितजै बुधैस्तदा ॥ वर्षका व्यत्यास (विरोधीपन अथवा अन्तर) दिखाई देता है। शालिवाहनवर्षेषु नेत्रबाणनगेंदुभिः (१७५२)॥
यहाँ 'शकराज' शब्दका अर्थ पुरातन विद्वानों द्वारा प्रमितेषु विकृत्यब्दे श्रावणे मासि मंगले ॥” इत्यादिविक्रमराजा ग्रहण किया गया है अतएव वही अर्थ ग्राह्य है, इन श्लोकोंमें उल्लिखित हए महावीर-निर्वाणान्द, यही बात अग्रोल्लिखित प्रमाणोसे सिद्ध होती है:
विक्रमशकाब्द और शालिवाहनशकान्द इस बातको दृढ़ (१) दिगम्बर जैनसंहिताशास्त्रके संकल्पप्रकरणमें करते हैं कि शकराज शब्दका अर्थ विक्रमराजा ही है । विक्रमराजाका ही उल्लेख पाया जाता है, शालिवाइनका महावीर-निर्वाणान्द २४६३ की संख्यामें दानपत्रकी उत्पत्तिनहीं।
कालके १११ वर्षोंको मिला देनेपर इस समय वीरनिर्वाण(२) त्रिलोकसार ग्रन्थकी माधवचन्द्र विद्यदेवकृत
संवत् २६०४ हो जाता है । और विक्रम शकाब्दकी संख्या संस्कृत टीकामें शकराज शन्दका अर्थ विक्रमराजा ही
१८८८ को दानपत्रोत्पत्तिकाल १११ वर्षके साथ जोड़ देने उल्लिखित है।
से इस समय विक्रमशकान्द १९१६ अा जाता है। (३) पं० टोडरमलजी कृत हिन्दी टीकामें इस शब्दका अर्थ इस प्रकार है
(५) चामराजनगरके निवासी पं०ज्ञानेश्वर द्वारा प्रकाशित ____ भी वीरनाथ चौबीसवाँ तीर्थकरको मोक्ष प्राप्त होने जैन पंचागमें भी यही २६०४ वीरनिर्वाणब्द उल्लिखित है। पीछे छसैपांच वर्षे पाँच मास सहित गए विक्रमनाम शकराज
इन उपयुक्त विश्वस्त प्रमाणोसे श्री महावीरका हो है। बहुरि तातै उपरि च्यारि नव तीन इन अङ्कनि करि- निर्वाणसंवत् इस समय २६०. ही यथार्थ सिद्ध होता है, तीनसे चोराणवे वर्ष और सात मास अधिक गए कल्की २४६७ नहीं। साथ ही यह निश्चित होता है कि क्रिस्ताब्द हो है" "०"
( ईसवी सन् ) ६६३ से पूर्व महावीरके निर्वाणान्दका इस उल्लेखसे भी शकराजाका अर्थ विक्रमराजा ही प्रारम्भ हुआ है। सिद्ध होता है।
*इस अनुवादका सम्पादन मूल संस्कृत लेखके आधार (1) मिस्टर राइस-सम्पादित श्रवणबेल्गोलकी शिलाशासन पर किया गया है.जो हिन्दी जैनगजटके इसी वर्षके दीपपुस्तकमें १४१ नं०का एक दानपत्र है, जिससे कृष्णाराज मालिका-अङ्क में मुद्रित हुभ्रा है।
-सम्पादक