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________________ किरण १०] वीरनिर्वाण-संवत्की समालोचनापर विचार - पाया जाता है, बल्कि अन्तर १३५ वर्षका प्रमिद्ध है काशी आदि के प्रसिद्ध पंचाजानुसार शक संवत् १८६३ और वह आपके द्वाग उलिग्विन विक्रम तथा शक के प्रारंभ होनेके पूर्व व्यतीत हुए थे, और इस तरह संवनोंकी संख्याओं (१९९९-१८६४ = १३५)स भी चैत्रशुक्ल प्रतिपदाकदिन वीरनिर्वाणका हुए २४६७ वर्ष ठीक जान पड़ता है। बाकी विक्रम संवत् १९९९ तथा ५ महान बतलाते । इससे उन्हें एक भी वर्षका अन्तर शक संवत् १८६४ उम समय तो क्या अभी तक कहनके लिये अवकाश न रहता; क्योंकि ऊपरके पाँच प्रचलित नहीं हुए हैं काशी श्रादिके प्रसिद्ध पंगेंगों महीन चालू वर्षके हैं, जब तक बारह महीने पूरे नहीं में वे क्रमशः १९९८ तथा १८६३ ही निर्दिष्ट किये हाते तब तक उनकी गणना वर्ष में नहीं की जाती । और गये हैं। इस तरह एक वर्षका अन्तर ना यह सहज इस तरह पन्हें यह बात भी अँच जाती कि जैन कालहीमें निकल पाता है । और यदि उधर सुदूर दक्षिण गणनामें वीरनिर्वाण के गत वर्ष ही लिये जाते रहे हैं। देशम इसममय विक्रम संवत् १९९९ तथा शक संवत् इमी बानको दूमरी तरहसे यों भी ममझाया जा सकता १८६४ ही पचालन हो, जिमका अपनका ठीक हाल है कि गत कार्तिकी अमावस्याको शक संवत्कं १८६२ मालूम नहीं, ना उम लेकर शाम्बाजीको उत्तर भाग्नके वर्ष ७ महीन व्यतीत हुए थे, और शक संवत महावीर विद्वानोंके निर्णयपर आपत्ति नहीं करनी चाहिये थी- के निर्वाणम ६०५ वर्ष ५ महीने बाद प्रवर्तित हुआ उन्हें विचार के अवसर पर विक्रम तथा शक संवत्की है। इन दोनों संख्याओं को जोड़नसे पूरे २४६८ वर्ष वही संख्या ग्रहण करनी चाहिये थी जो उन विद्वानों होते हैं । इतने वर्ष महावोगनिर्वाणका हुए गत कार्तिके निर्णयका आधार रही है और उम देशमें प्रच- की अमावस्याको पूरे हाचुके हैं और गत कार्तिक लित है जहाँ वे निवास करते हैं। ऐसा करनपर भी शुक्ला प्रतिपदाम उसका २४६९ वा वर्ष चल रहा है। एक वर्षका अन्तर म्वतः निकल जाता। इसके विपरीत परन्तु इमको चले अभी डंद महीना ही हुआ है और प्रवृत्ति करना विचार नीनिक विरुद्ध है। डेढ़ महीने की गणना एक वर्ष में नहीं की जा सकती, अब रही दूसरे वर्षकै अन्तरकी बात, मैंने और इमलिये यह नहीं कह सकते कि वर्तमानमें वीरनिर्वाण कल्याणविजयजीने अपने अपने उक्त निबन्धोंमें प्रच- को हुए २४६९ वर्ष व्यतीत हुए हैं बल्कि यही कहा लिन निर्वाण संवतकं अंकममूहको गत वर्षों का वाचक जायगा कि २४६८ वर्ष हुए हैं। अतः 'शकराजा' का -ईमवी सन् आदिकी तरह वर्तमान वर्ष शालिवाहन राजा अर्थ करनेवालोंके निर्णयानुसार का द्योतक नहीं बतलाया और वह हिसाबस महीनों वर्तमानमें प्रचलित वीरनिर्वाण सम्वत २४६८ गताब्द की भी गणना साथमें करते हुए ठीक ही है । शास्त्री के रूपमें है और उसमें गणनानुसार दो वर्षका कोई जीने इसपर कोई ध्यान नहीं दिया और ६०५ के अन्तर नहीं है-वह अपने स्वरूपमें यथार्थ है। साथमें शक संवत्को विवादापन संख्या १८६४ को अस्तु । जोड़कर वीरनिर्वाण-संवत्को २४६९ बना डाला है! त्रिलोकसारकी उक्त गाथाको उद्धृत करके और जबकि उन्हें चाहिये था यह कि वे ६०५ वर्ष ५ 'शकराज' शब्दके सम्बन्ध विद्वानोंके दो मतमहीनेमें शालिवाहन शकके १८६२ वर्षोंको जोड़ते जो भेदोंको बतलाकर, शास्त्रीजीने लिखा है कि "इन
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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