SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 555
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५१६ अपनी असली हालत में वर्तमान है। "पूर्ण लेख है । इस जनरल कनिघामने पढ़ा था । यह ___ भारतीय पुरातत्व विभागकी भोरसे अब तक लेख संवत् ९१९ का है। यहीं पर एक मन्दिर में यहाँ जो खोज हुई है, उसके फलस्वरूप १५७ शिला- बारहवीं शताब्दिकी लिपिमें एक लेख है, जिसमें एक लेख यहाँ मिले हैं। ये शिला-लेख मन्दिरोंकी दीवारों, दानशालाके बनाये जानेका विवरण है। एक स्तंभों, मूर्तियों के निम्न-भागों पर भक्ति हैं। एक और जैन मन्दिरके शिलालेखसे पता चलता लेख पत्थरकी चौड़ी शिलाओं पर भी खुदे हैं। है कि इस नन्हें सिंघईन संवत् १४९३ ई. में जैन-मन्दिरों में जा शिलालेख हैं उनमें से ६० ऐसे बनवाया था। है, जिनमें समयका उल्लेख मिलता है। ये लेख विक्रम किलेक जिस ओर बेतवा बहती है वहाँ तीन घाट संवत ९१९ से १८७६ के बीचके हैं और भिन्न-भिन्न हैं। इनमेंसे नाहरघाटी पहाड़की ऊँची दीवारको काट समयकी लिपिमें लिखे गये हैं। नागरी अक्षरोंके कर बनाई गई है। यहाँ एक गुफा भीतर एक सूर्य विकासके इतिहासकी दृष्टिसं ये शिलालेख बड़े महत्त्व की मूर्ति, एक शंकरलिंग, और सप्तमातृकाओंकी है। इनके अध्ययनसे संभव है 'जैन धर्मकी पौग- मूर्तियों के कुछ चिह्न हैं। इनके पास ही एक गणेशकी णिक गाथाओं एवं जैन-स्थापत्य पर भी कुछ प्रकाश मूर्ति है। यहीं पर गुप्तवंशी गजाओंके समयका एक पड़े। जैन विद्वानोंको यह कार्य करना चाहिए। लेख है, जिसमें सूर्यवंशी स्वामिभट्टका जिक्र है । यह "जिस मन्दिरमें शान्तिनाथ भगवानकी मूर्ति स्था- शिला-लेख संवत ६०९ का बताया जाता है । परन्तु पित है, उसके उपरी दालानमें एक विचित्र शिलालेख शिलालम्व वह बहुत स्पष्ट नहीं । सीढ़ियोंकी दीवार पर विष्णुकी है। उसमें ज्ञानशिला अंकित है। यह शिला-लेख १८ एक चतुर्भुजी मूर्ति भी यहां है। भाषाभों और लिपियोंमें लिखा बताया जाता है। गुफाके बाहर सं० १३४५ का एक शिला लेख है किंबदन्ती है कि ऋषभदेवकी पुत्री ग्रामीने १ लिपियों जिसमें राजा बीर द्वारा गढ़कुडारकी विजयका का भाविष्कार किया था। इनमें तुर्की, फारसी, नागर्ग, उल्लैग्व है। द्राविड़ी, उरिया प्रादि सम्मिलित थीं। शिलालेखकी। __ दूसरी घाटीमें 'जो गजघाँटीके नामसे प्रसिद्ध है, पहली सात पंक्तियों में सचमुच ही विभिन्न लिपियोंके । चंदलगज महागज कीर्तिवर्मन के समयका एक लेख नमने देखनेको मिलते हैं। मौर्यकालकी माझी है। है, जिसमें उसके मंत्री वत्सगज द्वारा इस स्थानके दाविद भाषाएँ मी उसमें हैं। परन्तु तुर्की भोर फारसी बनवाये जानेका जिक्र है। यह शिला-लेख संवत् के कोई पिहनहीं मिलते '११५४ का है और बहुत स्पष्ट पढ़ा जाता है। इस किलेके पूर्वी-भागमें एक जैन मन्दिर है। उसके .. कि लेखके माधार पर ही हमीरपुर गजेटियरके लेखकने एक सभे पर गजा भोज देवके समयका एक महत्त्व- लिखा किंवत्सराजने इस प्रदेशको अधिकृत करके देखिए, Annual Progress Report of एक दंगै बनवाया और उसका नाम कीसिगिरि the Superintendent Hindu and Buddhist Monument Northern Circle For रक्खा । परन्तु यह ठीक नहीं जान पड़ता क्योंकि the year ending 31st March 1918. देखिए हमीरपुर गजेटियर पृष्ट १०
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy