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________________ भनेकान्त [वर्ष ४ का नहीं, आराम करनेका होता है। हकीमी, डाक्टरों, वैद्योंको दिखलाता ! रुपया कर्ज ___ प्रभुत्वकं मदन सिन्हा महोदयको आपसे बाहर लाता, कभी बर्तन-भांड बेच कर ! सब कुछ करता कर दिया । सिंहकी तरह दहाड़ते हुए वह उठे, और वह, जा कर सकता ! इलाज में त्रुटि न आने देनाएक ऐसा भरपूर धक्का बेचारे रामदीनको मारा कि जरा भी। आह ! प्रभागा दौड़ती कारसे दस फुट दूर जा गिग। हाते-होते बहनर घन्टोंके अन्दर यानी तीन दिन ___ कहाँ लगी ? कैसी लगी ? कितना खून निकला ? के अल्प ममयमें ही उमन समीपस्थ शहरके सब मग या बचा ?-यह किस मालूम ? कौन देवनं डाक्टरोंम सन्तूकी तशस्त्रीश कराली । वाला था- वहाँ, उसका ? और जरूरत भी थी लेकिन .....? किम ? अन्तमें सहानुभूति रखने वाले पड़ोसियोंने राय _ 'कार' धूल उड़ाती हुई आगे निकल गई ! जैसे दी-'डाक्टर मिन्हा' की दिग्वाश्री ! वह अच्छे कुछ हुआ ही न हो। तजुर्बेकार हैं ! यश भी खूब है उनके हाथमें ! जिम x x x पर हाथ डालते हैं, चंगा करके छोड़ते है-उसे ! वही सन्तूको आगम कर सकते हैं! वग्नः बीमारी पुमका नाम था-मदीन ! जातिका 'मल्हा' तो बढ़ी हुई है ही, कौन जाने भगवानकी क्या था! और यमुना-तट पर थी उसकी झोंपड़ी ! बेचाग मर्जी है ?' रागबोकं बाझम दबा हुआ था। पर, था वह सखी। रामदान ता पुत्र-प्रेममें पागल था-इस वक्त । वह इस लिए कि एक पैमा भी उम पर कर्जका न उस अपने तन-बदनका भी स्वबर न थी ! जो कोई था ! ईमानदार था, और था बात वाला आदमी। कुछ कहना, वह वही कर गुजरता ! बिना कुछ वक्त-बे वक्त सह सौ-सौ रुपये बाजारमं ला सकता! विचार, सोच। घरमें काई था नहीं ! जो कुछ था-धन-दौलत, . वह तो चाहता था-'उसका 'सन्तू उठ खड़ा हा, बम।' इज्जत-श्राबरू-जो कहो बस, 'सन्तू' था। ___ डाक्टर साहबकी कारसे गिरकर और अपनी 'सन्तू' उसका बेटा था-समर्थ-बेटा! और घाटका कुछ भी स्त्रयाल न कर के, वह भागा-शहरकी प्राणोंस भी ज्यादह प्याग ! बुढ़ापेका सहारा जो था! और !: 'जब पहुंचा तो संन्ध्या हो चुकी थी, डाक्टर वंशका नाम चलाने वाला भी तो ? साहब अपने पुत्र सहित सिनमा देखने जारहे थे !... तो अचानक वह पड़ गया-बीमार ! और ऐसा कि जानकं लाले पड़ गए ! घरमें न उसकी माँ था, न स्त्री ! माँ मर चुकी थी-बहुत पहले । और स्त्री 'दादा ! 'दादा !! पानी !!!" थी अपने पीहर ! जो कुछ तीमारदारी थी, बूढ़े एक भर्राई आवाजसे झोपड़ी प्रकम्पित हो उठी ! गमदीन के हाथ !... अन्धेरी गत थी। दस बजेका वक्त होगा। यमुनाकी बेचारा बड़ी मिहनत करता ! बदल-बदल कर उत्ताल-तरंगें कल-कल ध्वनिका सृजन कर रही थीं।
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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