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________________ किरण ८] तपोभूमि ४५३ वजमुष्टिकं वाष्पाकुलित कण्ठस निकला-'मंगी- भिखारिनकी तरह देखती रही सूरसेनकी भोर ! कुमारी।... पलक मारने की सुधि उमं नहीं थी । हृदय, कामके उसने कटीली-बांग्योंसे ताकते हुए स्नेह-पादित नुकीले वाणोंसे पाहत हो चुका था । स्वरमें कहा-'तुम आगए ?' वह जैसे फिर बेहोश होने जारही थी। x x x x और सूरीन मोच रहा था-'मोफ ! वासना आग ? 'छलमय नारी हदय ।' मंगीकी चैतन्यताने सूरसेनको भी कम आनन्दित कि लाजकी हत्याकर, निर्लज-मंगी पैरों पर नहीं किया। यही तो उसकी भी साध थी, कि मंगी गिर पड़ी, और कहने लगी-'प्यारे ! मुझे प्यार पति-प्रेमको समझ सका... कगे। मैं तुम्हारे प्रेममें पागल हुई जा रही हूँ । मैं जंगलकी हरी-हरी घासपर मंगी बैठी पतिकी तुम्हारे बिना न बनूंगी, तुम्हारे रूपने मुझे बेहोश प्रतीक्षा कर रही थी । वजमुष्ठि गया था-साधुः कर दिया है।' अर्चनके लिए, सहस्र दल-कमल लेन। सूरसन अडिग। मंगी अकेली थी। युवक-तेजस संयुक्त ! सहसा सूरसेनके मनमें आया-वजमुष्टिका मोचने लगा- 'जब परीक्षा ली है तो पूरी ही प्रेम तो देम्वा । क्या मंगी भी उसे इतना ही प्यार होनी चाहिए।' करती है ? क्या यह बेसी ही है, जैसा कि वजमुष्टि फिर बोला-'मैं भी तुम्हारे ऊपर मोहित हूँसमझे हुए है ?' सुन्दर ! लेकिन मजबूर हूँ, कि मैं तुम्हें प्रेम नहीं कौतुकने उसके मनमें जिज्ञामा भर दी । वह कर सकता।' बढ़ा, अपने छिपे स्थानसे शंका-समाधान के लिए। ___क्यों ???'-मंगीने पूछा। और जा खड़ा हुआ, अलक्षित - भावसं मंगीके 'इसलिए कि तुम्हाग पति बलवान है, मैं उसे समीप।" ___ अपने लिए खतरा समझता हूं, डरता हूं उमस ।' । ____ मंगीने देखा, और देखने-देखते जैसे वह समा मंगी हँसी । फिर बोली-'उसकी ओरसे तुम गया उसके हृदयमें ! वह चकित, चंचल और उद्विग्न बेफिक रहो। वह तभी तक जिन्दा है, जब तक मैं हो उठी। उठती नम्र, गांग-लुभावक-शरीर, और उधर देखती नहीं।' सुन्दर वष भूषा। सांचा-'हो न हा, राजकुमार है सूग्सन हट गया। भक्ति और हर्षस पूर्ण वजमुष्ठि पत्र-पुष्प और निर्निमेष देखती रही, कुछ देर । मंत्रमुग्धकी सहस्र-दल-कमल लेकर भा पहुंचा था। तरह। सूरसेन अवाक् । मंगीने पति के साथ-साथ गुरुपूजन किया, बंदना मंगीके भीतर जैसे पीड़ा जाग पड़ी वह दीन- की, स्तवन पढ़ा । और जब वह पुष्पांजलि क्षेपण
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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