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________________ किरण विश्वसंस्कृतिमें जैनधर्मका स्थान बीचका है। ईसवी सन्मे एक शताब्दी बाद जैनियों में के लिये एक बृहत् सूची बनानेका प्रथल भी नहीं किया। दिगम्बर और श्वेताम्बर जो फ्रि हो गये, उनको एक करने लगभग सन् १८७६-७ में हस्तलिखित जैम प्रन्योंका एक का गौरवपूर्ण प्रयत्न इस महापुरुषने किया था। बना संकलन गर्मिनकी रायन लायब्रेरीके लिये जार्ज बूमर इस महान् साहित्य और इसकी प्राध्यात्मिक सामग्रीकी ने किया था। और जैनसाहित्य के विस्तृत विवरणका भी यत्नपूर्वक रमा करना मात्र दिगम्बरियोंका, श्वेताम्बरियोंका, पहला प्रयत्न सन् १९८३-८५ के पास पास प्रोफेसर ए. स्थानकवासियोंका, तेरा पंथियों या किसी दूसरे सम्प्रदायके वेबरने किया था। सन् 100 और 105 के बीचमें लोगोंका ही कर्तव्य नहीं है, बल्कि यह तो भारतीय संस्कृति पेरिसके विद्वान प्रो.ए.गुरीमा महोदयने अपनी 'studies और ज्ञानके सभी प्रेमियों का कर्तव्य है। on Jaina Bibliography' प्रकाशित की थी। जैनियोंका सैद्धान्तिक साहित्य भाजभी केवल कुछ उसमें उसके बाद कोई परिवर्तन नहीं किया गया, जबकि गत विशेषज्ञों और विभिन सम्प्रदायोंके लोगों तक ही सीमित है। तीस वर्षों में उत्तर और दक्षिण भारतमें मये हस्तलिखित और सिद्धान्त-प्रतिपादनके अलावा जो दूसरा विशाल साहि- जैनग्रंथों और शिलालेखोंके ढेकर मिले हैं। हाल ही में स्य है, उसका भी प्राजतक पूर्ण रीतिसे अध्ययन नहीं किया दक्षिण भारतमें जैनधर्मकी मोर विद्वानों का ध्यान भाकर्षित गया है। हिन्लू-तत्वज्ञानके कितने विद्यार्थी यह जानने की हो रहा है। डा०. एम. एच. कृष्णने 'श्रवण बेल गोलामें परवाह भी करते हैं कि जैनियोंने न्याय और वैशेषिक दर्शनों गोमटेश्वरके मस्तकाभिषेक' पर खोजपूर्ण विवेचन किया है। के विकासमें कितना योग दिया है ? कितने हिन्दु इस बात डा०, बी० ए० सालतोर और श्री एम. एस. रामस्वामी को जानते हैं कि रामायण और महाभारतकी कथानों, एवं प्रायंगरने भी दक्षिण भारतीत अमधर्मके अध्ययन में महत्व. पुराण और कृष्णकी कहानियों पर जैन लेखकोंने भी कितना पूर्ण योगदान किया है । (खो जैन टीक्वेरी, मार्च १६४०)। लिखा है। भारतीय कलाके कितने विद्यार्थी यह जानते हैं इण्डियन म्युजियमकं क्यूरेटर श्री टी. एन. रामचन्द्र ने कि प्राचीन अजन्ता-कालकी चित्रकला और मध्य-युगकी अपनी सुन्दर सचित्र पुस्तक, जिसका नाम "तिरुप्पहत्ती राजपूत-कलाके बीच जैन चित्रकला कितना सुन्दर यौगिक कुरमन, और उसके मन्दिर" में दक्षिण भारणके जैनस्मारकों है। जैन लेखकोंने भारतकी कई प्रमुख भाषाओं जैसे उत्तरमें के बारे में बहत सुन्दर सामग्री दी है। हा०सी० मीमातीने गुजराती, मारवाड़ी और हिन्दी, तथा दक्षिण तामिल, कई जैन गुफाओं और जैनचित्रों का पता लगाया है, जिनमें तेलगु और कबाड़ी आदिको साहित्य सम्पन्न करने में कितनी तीर्थंकरोंके जीवनकी सामग्री है। ग्रासतौरसे पुदुक्कोटा स्टेट सहायता दी है। इन भाषाओंमें प्राज भी जैनधर्म सम्बन्धी अन्तर्गत सित्ता-वासन प्राममें यह खोम हुई है। कितने गम्भीर और विवेचनपूर्ण प्रबन्ध छपते हैं, किन्तु अभी तक किसी भी जैनसंस्थाने इस समस्त सामग्रीकी सर्वसाधारण [पर्युषन-पर्व-व्याख्यानमाला]
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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