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________________ अनेकान्तके सहायक वीरसेषामन्दिरको सहायता पिछले दिनों निम्न सज्जनोंकी भोरस वीरसेवा. जिन सजनोंने अनेकान्तकी ठोस सेवाओं के प्रति अपनी मन्दिर सरसावाको ३२) रु० की सहायता प्राप्त हुई है, प्रसनता व्यक्त करते हुए, उसे घाटेकी चिन्तासे मुक्त रहकर इसके लिये दातार महाशय धम्यवादके पात्र है:निराकुलतापूर्वक अपने कार्य में प्रगति करने और अधिकाधिक १० ला० मेहरचन्द जी जैन साइकिल डीलर, काकी रूपसे समाजसेवायोंमें अग्रसर होनेके लिये सहायताका वचन - जि०महारनपुर । (चिविश्वेश्वरदयालक विवाह दिया है और इस प्रकार अनेकान्तकी सहायक श्रेणी में अपना की खुशी में। नाम लिखाकर अनेकान्तके संचालकोंको प्रोत्साहित किया है १०१ बा० जयभगवानजी जैन बी०ए०वकील, पानीपत उनके शुभ नाम सहायताकी रकम सहित इस प्रकार है (पुत्री चि० प्रभादेवी विवाहकी खुशी में) .१२५) वा. छोटेलालजी जैन रईस, कलकत्ता। ५) ला० मेहरादजी जैन सरमावा, हाल अब्दुला•१.१)वा. अजितप्रसादजी जैन एडवोकेट, लखनऊ। पुर जि. अम्बाला (पुत्रके विवाहकी खुशी में)। -101) बा. बहादुरसिंहजी सिंघी, कलकत्ता । ५) श्रीमती भगवती देवी धर्मपत्नी ला०रूड़ामलजी १००) साहू श्रेयांसप्रसादजी जैन लाहौर । जैन, (शामियानेवाले) सहारनपुर । -१००) साहू शान्तिप्रसादजी जैन, डालमियानगर । २) ला० कुलवन्तगयजी जैन रईस नकुड जि. •१००) बा० शांतिनाथ सुपुत्र बा० नन्दलालजी जैन, कलकत्ता महारनपुर। -अधिष्ठाता 'वीरसंवामंदिर' १००) ला० तनसुखरायजी जैन, न्यू देहली। अनेकान्तकी सहायताके चार मार्ग १००) सेठ जोग्वीराम बैजनाथजी सरावगी, कलकत्ता । (1)२५), २०), १०.) या इससे अधिक रकम देकर १०.) बा. लाल बन्दजी जैन, एडवोकेट, रोहतक। सहायकों की चार श्रेणियोंमेंसे किसी में अपना नाम खिलाना। .११) रा०प० वा. उलफतरायजी जैन, इन्जिनियर, मेरठ। । (२) अपनी मोरसे असमयोंको तथा बजेग संस्थानों . २०) ला० दलीपसिंह काराजी, चोर उनकी मार्फत, देहली को अनेकान्त फ्री (विना मुख्य ) या अमूल्य में भिजवाना २५) पं. नाथूरामजी प्रेमी, हिन्दी ग्रंथ-रत्नाकर, बम्बई। बइ। और इस तरह दूसरोंको अनेकान्तके पदनेकी सविशेष प्रेरणा . २१) बा. रूनामल जी जैन, शामियानेवाले, सहारनपुर। करनाइस मदमें सहायता देने वालोंकी मोरसे प्रत्येक • २५) बा०रघुवरदयाजजी जैन, पम प.,करोलबाग़ देहली। दस रुपयेकी सहायताके पीछे अनेकान्त चारको फ्री अथवा • २५) सेठ गुलाबनन्दजी जैन टोंग्या, इन्दौर । पाठको अर्धमूल्यमें भेजा जा सकेगा। .२२)बा. बाबूराम अकलंकप्रमादजी जेम, तिस्मा (मु०२०) उत्सव-विवाहादि दानके अवसरों पर अनेकान्तका २१) मुंशी सुमतप्रमारजी जैन, रिटायर्ड अमीन, सहारनपुर बराबर खयाल रखना और उसे अच्छी सहायता भेजना . २१) बा. दीपचन्दजी जैन रईम, नेहरातून । तथा भिजवामा, जिससे अनेकान्त अपने अच्छे विशेषा . २५) बा. प्रद्युम्नकुमारजी अन रईम, सहारनपुर। निकाल सके. उपहार धोंकी योजमा कर सके मोर उत्तम जन मा चापका लेखों पर पुरस्कार भी दे सके । स्वतः अपनी चोर से उपहार अनुकरण करेंगे और शीघ्र ही सहायक स्कीमको सफल बनाने की योजना मिली। में अपना पूरा सहयोग प्रदान करके यशके भागी बनेंगे। (४) अनेकान्तके प्राहक बनना, दूसरोको बनाना चोर नोट--जिन रकमोंके सामने • यह चिन्ह दिया है ये पूरी अनेकान्त के लिये अच्छे अच्छे लेख लिखकर भेजमा, खोकी प्राक्ष होचुकी हैं। व्यवस्थापक 'अनेकान्त' सामग्री जटाना तथा उसमें प्रकाशित होनेके लिये उपयोगी वीर सेवामन्दिर, सरसावा, (सहारनपुर) चित्रोंकी योजना करमा, कराना। 'सम्पादक भनेकान्त' मुद्रक, प्रकाशक परमानंद शास्त्री बीरसेवामम्बिर, सरसावाके लिये श्यामसुन्दरलाल श्रीवास्तव द्वारा श्रीवास्तवप्रेसमें मुद्रित।
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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