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________________ अनकान्त [ वर्ष ४ महामात्य भरतकी प्रेरणा और प्रार्थनामं यह मंत्रीनं इमीको लक्ष्य करके कहा था कि तुमने इस बनाया गया, इमलिए कविन इमकी प्रत्यक मन्धिकं गजाकी प्रशंसा करके जा मिथ्यात्वभाव उत्पन्न किया अंनम इस 'महाभठवभग्नाणुमण्णिण ' (महाभव्य- है, उसका प्रायश्चित्त करने के लिए महापुगणकी भग्नानुमानित) विशेषण दिया है और इसकी अधि- रचना करो। यह बहुत करके अपभ्रंश भाषाका ही कांश मन्धियोंके प्रारंभम भरतका विविधगुणकीर्तन काव्यग्रंथ होगा और यह उनकी महापुराणम पूर्वकी किया है। रचना होगी+। जैन पुस्तकभण्डागमें इस प्रन्थकी अनेकानेक २णायकुमारचरित ( नागकुमारचरित )-यह प्रनियाँ मिलती हैं और इसपर अनेक टिप्पणग्रन्थ एक खंड काव्य है। इसमें ९ सन्धियाँ हैं और यह लिखे गये हैं, जिनमेमे प्राचार्य प्रभाचंद्र और श्रीचंद्र णण्णणामंकिय (नन्ननामांकित) है। इसमें पंचमीक मुनिक दा टिप्पणग्रन्थ उपलब्ध भी हैं । श्रीचंद्रने उपवामका फल बतलानेवाला नागकुमारका चरित है। अपने टिप्पणम लिग्वा है-'मृलटिप्पणिकां चालाक्य इमकी रचना बहुत ही सुन्दर और प्रौढ़ है। कृनमिदं ममुखटिप्पणं ' इममें मालूम होता है कि यह मान्यग्वेटमें नन्नक मन्दिर (महल) में रहते इम प्रन्थ पर स्वयं प्रन्थकर्नाकी लिम्बी हुई मूल हुए बनाया गया है। प्रारंभी कहा गया है कि महाटिप्पणिका भी थी । जान पड़ता है कि यह ग्रन्थ दधिक गुणवर्म और शोभननामक दो शिष्योंने बहुत लोकप्रिय और प्रसिद्ध रहा है। प्रार्थना की कि श्राप पंचमीफलकी रचना कीजिये, महापुगण की प्रथम सन्धिकं छठे कड़वकमे जो महामात्य नन्नने भी उसे सुनने की इच्छा प्रकट की 'वीर भइरवणरिंदु' शब्द आया है, उस पर प्रभाचंद्र. और फिर नाइल्ल और शीलभट्ट ने भी आग्रह किया। कृत टिप्पण है-" वीरभैग्वः अन्यः कश्चिदुष्टः ३-जमहरचरिउ (यशोधरचरित)-यह भी एक महाराजो वर्तत, कथा-मकरन्दनायको वा कश्चिद्रा- सन्दर खंडकाव्य है और इसमें 'यशोधर' नामक जाम्ति ।" इससे अनुमान होता है कि 'कथा-मकरन्द' पुगणपुरुषका चरित वर्णित है । इसमें चार सन्धियाँ नामका भी कोई ग्रन्थ पुष्पदंतने बनाया होगा जिम हैं। यह कथानक जैन मम्प्रदायमे इतना प्रिय रहा में इस गजाको अपनी श्रीविशेष सुरेन्द्रको जीतने है कि वादिराज, वासवसन, सोमकीर्ति, हरिभद्र. वाला और पर्वतकं ममान धीर बतलाया है। भरत- क्षमाकल्याण प्रादि अनेक दिगम्बर-श्वेताम्बर लेखकों द्यदिहास्ति जैनचरिते नान्यत्र तद्विद्यते। दावेतौ भरते ने इस अपने अपने ढंगस प्राकृत और संस्कृतमे शपुष्पदसनौ मिद्धं ययोरीदृशम् ॥ लिखा है। ३ ये गुणकीर्तनके सम्पूर्ण पद्य महापगणके प्रथम खंडकी। प्रस्तावनामें और जैनमाहित्य-मंशोधक म्बंड २ अंक के ___ यह ग्रंथ भी भग्तके पुत्र और बल्लभनरेन्द्रक मेरे लेख में प्रकाशित हो चुके है। +णियसिरिविसेमणिज्जियसुग्दुि, गिरिधीरुबीरु भइरवणरिदु । ४ प्रभाचन्द्रकृत टिप्पण परमार राजा जयसिंहदेवक राज्य- पई मरिण उ वरिणउ वीरगउ. उप्पएणउ जोमिच्छनभाउ || कालमें और श्रीचन्द्रका भोजदेवके गज्यकाल में लिखा पच्छित तासु जइ करहि अज्जु, ना धडा तुझु परलोयकज्जु । गया है। देखो अनेकाम्न वर्ष ४ अंक १ में मेग लेख । --म०प०६-६-१०, ११. १२
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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