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________________ किरण ६-७] महाकवि पुष्पदन्त ४१३ के कारण व बान भी देखा करते थे । श्रादिपुगण जो उन्होंने महापगण और यशोधरचरितमें भरत के ममाप्त हो जाने पर किसी कारण उन्हें कुछ और नमकी प्रशंसाम लिखे हैं। व्याकरणकी दृष्टिस अच्छा नहीं लग रहा था, वे निर्विणन हो रहे थे यद्यपि उनमें कुछ खलनायें पाई जाता है, परन्तु वे कि एक दिन उन्हें स्वप्नमें सरम्बनी देवीने दर्शन कवियों की निरंकुशताकी ही यातक है, प्रज्ञानताकी दिया और कहा कि पुग्यवृक्षका सींचने के लिए मंघकं नही। तुल्य और जन्ममरण-गेगके नाश करनेवाले अगहन ४-कविकी प्रन्धरचना भगवानका नमस्कार कगं । यह सुनते ही कविगज महाकवि पुष्पदन्तकं अब तक तीन अन्य प. जाग उठे और यहाँ वहाँ देखते हैं तो कहीं काई लब्ध हुए हैं और सौभाग्य की बात है कि वं ताना नहीं है, और वे अपने घरमें ही हैं। उन्हें बड़ा हा आधुनिक पद्धान न सुसम्पादित होकर प्रकाशित विस्मय हुा । इसके बाद भग्तमंत्रीनं आकर हा चुक है। उन्हें समझाया और तब वे उत्तरपुगणकी रचनामें तिसा?महापुरिमगुणालंकार ( विपष्टि महा. प्रवृत्त हुए। पुरुषगुगणालंकार) या महापुगण । यह धादिपुगण कविकं ग्रंथों मा लम होता है कि वे महान और उत्तरपुगण इन दो खंडोम विभक्त । य दाना विद्वान थे। उनका नमाम दर्शनशास्त्रों पर तो अधि- अलग अलग भी मिलते हैं । इनमें प्रेमठ शलाका कार था ही, जैनमिद्धान्तकी जानकारी भी उनकी पुरुषांक चरित हैं। पहली प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव अमाधारण थी। उस समयकं प्रथकर्ता चाहे वे का और दुमरेम शंप नाम नीर्थकमेंका और उनक किमी भी भाषाके हों, मंस्कृतज्ञ ता होते ही थे। ममयकं अन्य महापुरुषोंका चरित है। उत्तरपुगण में यद्यपि अभी तक पुष्पदन्तका कोई म्वतंत्र संस्कृन पद्मपुगण (गमायण) और हरिवंशपुगण' (महाप्रन्थ उपलब्ध नहीं हुआ है, फिर भी वे संस्कृत भारत ) भी शामिल हैं और ये भी कहीं कहीं पृथक में अच्छी रचना कर सकते थे । इसके प्रमाण- रूपमें मिलते हैं। म्वरूप उनके वे संस्कृत पद्य पेश किये जा मकते हैं अपभ्रंश ग्रंथामें मर्गकी जगह मन्धियाँ हाती * मांण जाएण कि पि श्रमणोज, हैं। आदिपुराणमें ८० और उसपुगणमें ४२ मंधियाँ कइवदियमई केण वि कज्जें। हैं। दानोंका शोकपरिमाण लगभग बीम हजार है। णिविएणउ थिउ जाम महाका, इमकी रचनामें कविको लगभग छह वर्ष लगे थे। ता सिवणरि पन मरामह । यह एक महान प्रन्थ है और जैमा कि कविने भणइ भडारी मुहयउ श्रोह, म्वयं कहा है, इसमें सब कुछ है और जो इसमें नहीं पणमह अरुहं मुइयउमेहं । है वह कहीं नहीं है। इय णिमुणेवि विउद्धउ कदवा, मयलकलायर ण छणमसहरू । १ हरिवंशपराण जर्मनीके एक विद्वान 'पाल्म हर्फ' ने रोमन दिसउ बिहाल कि पिश पेच्छा, लिपिमें जर्मनभाषामें मम्पादित करके प्रकाशित किया है। जा विमित्यमइ हियर अच्छा। २ अत्र प्राकृतलच्चानि मकला नीति: स्थितिच्छन्दसामर्था -महापगण ३८-२ लंकनयो ग्माश्च विविधास्तत्वार्थमिणीतयः । किंचान्य
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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