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________________ ३८६ भनेकान्त [ वर्ष उसकी बहू गेते रोते जान दिए दे रही है। लिवा न मथुगमलकी बातें ब्रह्मगुलालने सुनी और फिर लाओ-जाकर ! तुम्हारी तो मान लेगा।' गंभीर म्वरमै बोला-भाई ' यह वह स्वाँग है, जो ____ 'बहुत कह चुका, कुछ बाकी नहीं रहा । जिही एक बार रख लेने पर बदला नहीं जाता। क्यों व्यर्थ है न ?-हमेशाका ?' मुझे अ-कल्याणकी ओर लेजाना चाहते हो ? देव'फिर भी, एक बार और हो पात्रो हर्ज क्या है? दुर्नभ इस भगवती-दीक्षाको ग्रहण कर त्यागना, क्या शायद अब समझमें भाजाय ।' मनुष्यता है ? मथुगमल चुप रहे-क्षण-भर ! फिर बोले मथुगमलने जैसे आत्म ममर्पण कर दिया ! 'जाता हूं, अगर वह न आया, तो मेरे लौटनकी भी चरणोंमें माथा टेकते हुए बाल-'तो ऐसी देवदुर्लभअाशा न करना।' वस्तु अकेले तुन्हारे ही बॉटमें रहे, यह मुझे बर्दाश्त -और चल दिए। नहीं ! इसलिए कि मैं तुम्हारा दोस्त रहा हूं, मेरा बहुत-कुछ तुम पर अधिकार है।' जीवन-धारा बहनी हे जीवन की धारा ! - मलिन कही पर, विमल कही र ! थाह कहीं, तो अतल कही पर ! कहीं उगाती, कहीं डुबोती दायाँ बायाँ कल-किनाग!! बहती है जीवन की धारा! तैर रहे कुछ, सीख रहे कुछ ! हँसते हैं कुछ, चीख रहे कुछ ! कुछ निर्मम है लदे नाव पर, खेता है नाविक बेचारा !! बहती है जीवन की धारा! माँस साँस पर यकने बाले! पार नहीं जा मकने वाले ! उब-डुब उब-डुब करने वाले, तुम्हें मिलेगा कौन सहारा? बहती है जीवन की धारा! -'यात्री'
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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