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नयामन्दिर देहलीके कुछ हस्तलिखित ग्रन्थोंकी सूची
बीके मुहक्ले धर्मपुरामें 'मया मन्दिर' नामसे एक पराना बादशाही बक्तका बना हुचा साखोकी लागतका
विशाल जैन मन्दिर है, जिसमें हस्तलिखित ग्रंथोंका एक अच्छा बदा भयहार इस शास-भण्डारके प्रबन्धक खा. रतनलालजी भादि अच्छे उदारचेता सज्जन हैं, समयकी गतिविधिको समझते है-उपयोगिता-अनुपयोगिताको परखते।
और इसीसे दूर दरके भी अनेक विद्वान समय-समय पर इस शासभण्डारसे अच्छा लाभ उठाते रहे। भोर भनेक प्रन्याक संशोधन-प्रकाशनादिमें यहांके ग्रंथोंसे काफी सहायता मिलती रही है। मैंने स्वयं इस शासभण्डारसे बहुत कुछ खाभ लिया है और ले रहा है. जिसके लिये सभी प्रबन्धक महाशय मेरे धन्यवानके पात्र हैं। और उनसे भी अधिक धन्यवाद पात्रो बाबू पसालालजी अग्रवाल तथा ला. जौहरीमलजी सर्राफ, जिनकी कृपासे मुझे अंघोंके देखने में यथेष्ट सुविधाएं प्रास होती रही हैं, और जो अनेकवार अपना खर्च तक लगाकर ग्रंथोंको मेरे पास पहुंचाते रहे हैं।
इस भयहारमें मुद्रित ग्रंथोंके अतिरिक्त हस्तलिखित ग्रंथोंकी संख्या सबमिलाकर १०. के करीब है, जिसमें दिगम्बर-श्वेताम्बर जैनों तथा अजैनोंक भी अनेक विषयोंके अन्य शामिल हैं और वे संस्कृत, प्राकृत-अपश तथा हिन्दी पानि भनेक भाषाओंको लिये हुए हैं। अनेक ग्रंथोंकी कई कई प्रतियां भी हैं। इस शाखभयहारकी पहले एक साधारण सूची बनी हुई थी, अब उसे कुछ व्यवस्थितरूप देकर नई सूची तय्यार कराई गई है। यद्यपि यह नई सूची भी बहुत कुछ अधुरी एवं त्रुटिपूर्ण है और इस बातको सूचित करती है कि इसको तय्यार कराने से पहले इस विषय के किसी योग्य विद्वानसे परामर्श नही किया गया, फिर भी यह पहली सूचीसे बहुत कुछ अच्छी बन गई है और इसके अनुरूप ही अलमारियमि ग्रंथोंकी व्यवस्था हो जानेसे उनके निकालने-देखने में कितनी ही मुविधा हो गई है।
हस्तलिखित ग्रन्योंकी इस नई सूचीकी एक पेज-टु-पेज कापी उक्त बापमालालजीने अपने हाथमे उतारकर मुझे इस लिये दी है कि मैं उसे देखकर यह नोट करलू' कि उसमें कौन कौन से हैं जिनको मैंने अभी तक नहीं देखा अथवा जिनका मैं किसी समय अपने लेखादिकमें उपयोग कर सकता है। साथ ही यह अनरोध किया कि यदि
समझा जाय तो इस भंडारके ग्रंथोंका कछ परिचय अनेकान्तक पाटकोंको दिया जाय. जिससे विद्वान लोग तुलनानि के अवसरों पर उन ग्रंथप्रतियोंका उपयोग कर सकें और जहां जो ग्रंथ न हो वहांके भाई उसकी कापी करा सके। नदनुसार इस सूची परसे मैंने संस्कृत-प्राकृतादि ग्रास ग्रास ग्रन्थों की एक संक्षिप्त सूत्री पं० परमानन्द जैन शास्त्री वीरसेगा. मन्दिरसे तय्यार कराई है, जिसे पाठकोंके अवलोकनार्थ नीचे दिया जाता है। भाशा इससे पाठकों को कितनी ही जानने योग्य बातें मिरोंगी और कितनों ही को अपने अपने यहांके भंडारोंके कुछ प्रमुख तथा प्रसिद्ध ग्रंथोंका परिचय निकालने की प्रेरणा भी होगी । यदि हमारे साहित्यप्रेमी भाई अपने अपने यहाँके शासभंडारोंकी सूचियां थोडासा परिश्रम करके प्रकार कर देवें अथवा वीरसेवामन्दिर सरसावाको भेजदेवें तो दिगम्बर प्रन्धोंकी उस विशाल एवं मुकम्मल सूचीका भायोजन सहज ही में हो सकता है, जिसकी बहुत बड़ी मावश्यकता है और जिसका काम दिगम्बर धनिकों की लापर्वाही तथा ऐसे उपयोगी कामोंका महत्व न समझने के कारण वर्षों से पड़ा हुआ है। और इम्मीसे भाई अगरचन्दजी माहटाने, इसी किरया में प्रकाशित 'दिगम्बरजमग्रन्थसूची' नामक अपने लेखमें, इसके लिये दिगम्बर समाजको भारी उलहना लिया है, और यह डीक ही है। दिगम्बर समाजको उस पर ध्यान देकर अपने कर्तव्यको शीघ्र पूरा करना चाहिये । प्रस्तु; इस सूचीमें सटीक, मटिप्पण, सवृत्ति जैसे शब्दोंका प्रयोग संस्कृत टीका-टिप्पणादिको सूचित करने के लिये हैं और 'भाषाटीका' का अभिप्राय हिन्दी भाषा टीकामे है टीकाकारादिका नाम मूबकारके बाद दे दिया है। जहां ग्रन्थका नाम टीका-प्रधान है वहां मूलकार तथा मूलकी भाषाके उस्लेखको छोड़ भी दिया है। और जहां जो बात मूलसूची परसे उपलब्ध नहीं हुई वहां इस सूची में
x यह चिन्ह लगा दिया है। ऐसे स्थल ग्रंथप्रतियों पर जांचने योग्य है-खासकर ग्रंथकारोंक नाम तथा भाषाक विषयमें। ग्रंथोंके नम्बर विभागक्रमादिककी गड़बड़को लिये हुए कुछ विचित्र तथा अधुरे नाम पर--कोई एक अच्छा क्रम नहीं पाया गया-इसमे उन्हें छोड़ दिया गया है, और इस सूची में ग्रंथोंको प्रकारादि क्रमसे दिया। इससे पाठकोंको अभिलषित ग्रंथका नामानिक मालम करने में सुविधा रहेगी।
-सम्पादक