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________________ अनेकान्तके सहायक जिन सज्जनोंने अनेकान्तकी टोस सेवाओंके प्रति अपनी अनुकरणीय प्रसन्नता व्यक्त करते हुए, उसे घाटेकी चिन्तासे मुक्त रहकर अनेकान्तकी सहायताके चार भागों से दूसरे मार्गका निराकुलतापूर्वक अपने कार्य में प्रगति करने और अधिकाधिक अवलम्बन लेकर निम्नलिखित सज्जनोंने, अजैन संस्थाओं रूपसे समाजसंवानों में अग्रसर होनेके लिये सहायताका वचन तथा विद्यार्थियोंको, एक साल तक 'अनेकान्त' फ्री तथा अर्ध दिया है और इस प्रकार अनेकान्तकी सहायकश्रेणीमें अपना मूल्यमें भिजवाने के लिये, निम्नलिखित सहायता प्रदान करके जो अनुकरणीय कार्य किया है। उसके लिये वे धन्यवादके नाम लिखाकर अनेकान्तके संचालकोंको प्रोत्साहित किया है पात्र हैं। प्राशा है अनेकान्त प्रेमी अन्य सज्जन भी आपका उनके शुभ नाम सहायताकी रकम-सहित इस प्रकार हैं:- अनुकरण करेंगे: १५) बा० मिट्टनलालजी जैन तीतरों निवामी, श्रोवरसियर १२५) बा० छोटेलालजी जैन रईस, कलकत्ता सरगथल, पुत्र विवाहकी खुशीमें, (१२ विद्यार्थियोंको एक १०१) बा० अजितप्रसादजी जैन, एडवोकेट, लखनऊ । वर्ष तक अनकान्त अर्धमूल्यमें देनेके लिये)। १००) साहू श्रेयांमप्रसादजी जै', लाहौर। १०) ला० फेरूमल चतरसौनजी जैन, वीर स्वदेशी भण्डार, १००) माहू शान्तिप्रसादजी जैन, डालमियानगर । सरधना ज़िला मेरठ, (८ विद्यार्थियोंको एक वर्ष तक 'अनेकान्त' अर्धमूल्य में देनेके लिये)। १००) ला० तनसुखरायजी जैन, न्यू देहली। १०) ला० उदयराम जिनेश्वरदासजी जैन बज़ाज़, सहारनपुर १००) वा. लालचन्दजी जैन, एडवोकेट, रोहतक । (४ संस्थानोंको एक वर्ष तक 'अनेकान्त' फ्री भिजवाने १००) बा. जयभगवानजी वकील श्रादिन पंचान पानीपत। के लिये)। १०) ला० दलीपसिंह काजी और उनकी मार्फत, देहली। १०) ला० रतनलालजी जैन, नईसड़क, देहली (चार संस्थानों२५) पं० नाथूरामजी प्रेमी, बम्बई।। पुस्तकालयों श्रादि-को एक वर्ष तक 'अनेकान्त' फ्री भिजवानेके लिये)। २५) ला० रूड़ामलजी जैन, शामियाने वाले, सहारनपुर । २५) बा० रघुवरदयालजी जैन, एम. ए., करोलबाग़, देहली। २० विद्यार्थियोंको अनेकान्त अर्धमूल्यमें २५) पेठ गुलाबचन्दजी जैन टोंग्या, इन्दौर । प्राप्त हुई सहायताके आधार पर २० विद्यार्थियोंको 'अनेकान्त' एक वर्ष तक अर्धमृत्यमें दिया जाएगा, जिन्हें श्राशा है अनेकान्तके प्रेमी दमो सज्जन भी आपका आवश्यकता हो उन्हें शीघ्र ही ॥) रु. मनीभाईरसे भेजकर अनुकरण करेंगे और शीघ्र ही सहायक स्कीमको सफल ग्राहक होजाना चाहिये। जो विद्यार्थी उपहारकी पुस्तकें समाधितंत्र सटीक और सिद्धिसोपान भी चाहते हों उन्हें बनाने में अपना पूरा सहयोग प्रदान करके यशके भागी बनेंगे। पोप्टेजके लिये चार पाने अधिक भेजने चाहिये। व्यवस्थापक 'अनेकान्त' व्यवस्थापक 'अनेकान्त' वीरसेवामन्दिर, सरमावा ( महारनपुर) वीरसेवामन्दिर, सरसावा (सहारनपुर) प्रचारकोंकी जरूरत-'अनेकान' के लिये प्रारकोंकी ज़रूरत है । जो व्यक्ति इस कार्यको करना चाहें वे 'अनेकान्त' कार्यालय वीरसेवामन्दिर सरसावासे शीघ्र पत्र व्यवहार करें। मुद्रक और प्रकाशक पं० परमानन्द शास्त्री वीर सेवामन्दिर, सरसावाके लिये श्यामसुन्दरलाल श्रीवास्तव के प्रबन्धसे श्रीवास्तव प्रिटिंग प्रेस, सहारनपुर में मुद्रित ।
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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