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ऐतिहासिक जैनसम्राट् चन्द्रगुप्त
(लेखक-न्यायतीर्थ पं० ईश्वरलाल जैन स्नातक)
भगवान् महावीरके निर्वाण-पश्चात् भारतको अपनी वीर मैदानमें आया और उसे एक शक्तिशाली राष्ट्र उन्नत अवस्थासे पतित करने वाला एक क्षयरोग निर्माण करनेमें सफलता प्राप्त हुई। वह ऐतिहासिक अपना विस्तार करने लगा-भारत देश अनेक छोटे वीर था सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य । बड़े राज्योंमें विभक्त होगया। छोटेसे छोटा राज्य भी अपनेको सर्वोच्च समझकर अभिमानमें लिप्त एवं
इतिहासलेखकोंने चन्द्रगुप्तके विषयमें एक मत सन्तुष्ट था। वे छोटे बड़े राज्य एक दसरेको हडपजाने होकर यह लिखा है कि भारतीय इतिहासमें यही सर्वकी इच्छा से परस्पर ईर्ष्या और द्वेषकी अग्नि जलाते, प्रथम सम्राट है, जिसने व्यवस्थित और शक्तिशाली फूटके बीज बोते, लड़ते झगड़ते और रह जाते।
ही राष्ट्र कायम ही नहीं किया, बल्कि उसका धीरता, सैन्यबल और शक्ति तो परिमित थी ही, परन्तु उन्हें
वीरता, न्याय और नीतिसे प्रजाको रंजित करते हुए संगठित होनेकी आवश्यकता प्रतीत न हुई । यदि एक
व्यवस्थापूर्वक संचालन किया है । यह सर्वप्रथम
ऐतिहासिक एवं अमर सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य जैनधर्माभी शक्ति शाली राष्ट्र उस समय उनपर आक्रमण करता तो सबको ही आसानीसे हड़प कर सकता था।
वलम्बी ही था, इस पर प्रकाश डालनेसे पूर्व उसकी
संक्षिप्त जीवनीका दिग्दर्शन करा देना अनुचित न कोशल आदि राज्योंने यद्यपि अपनी कुछ उन्नतिकी
होगा। थी, परन्तु वे भी कोई विशाल गष्ट्र न बना सके।
इस अवसरसे लाभ उठानेके लिये सिकन्दरने अनेक ऐतिहासिकोंका मन्तव्य है कि चन्द्रगुप्त, राजा ईस्वी सन् ३२७ पूर्व, भारत पर आक्रमण किया और नन्दके मयूर पालकोंके सरदारकी 'मुरा' नामक लड़की वह छोटे बड़े अनेक राजाओंसे लड़ता झगड़ता का पुत्र था, इस 'मुरा' शब्दसे 'मौर्य' प्रसिद्ध हुआ। पंजाब तक ही पहुंच पाया था कि छोटे-छोटे राजाओं उसी समयकी बात है-अर्थात् ३४७ ई. सन् ने भी उससे डटकर मुकाबला किया, इसी कारण पूर्व गजा नन्दसे अपमानित होने के कारण नीति मार्गके कई अनुभवोंने उसे हताश कर दिया। आगे निपुण 'चाणक्य' उसके समूल नाश करनेकी प्रतिज्ञा न मालूम कितनोंसे युद्ध करना पड़ेगा, इस घबराहट करके जब पाटलीपुत्रको छोड़कर जा रहा था तो मार्ग के कारण वह पंजाबसे ही वापस चला गया। में मयूरपालकोंके सरदारकी गर्मवती लड़की 'मुरा' भारतीय राजाओंकी आंखें खोलने और उन्हें शिक्षा के चन्द्रपानके दोहलेको चाणक्यने इस शर्त पर पूर्ण देनेके लिये इतनी ही ठोकर पर्याप्त थी, उन्हें अपनी किया, कि उससे होने वाला बालक मुझे दे छिन्न भिन्न अवस्था खटकने लगी और अन्तमें एक दिया जाय। ३४७ ई० सन् पूर्व बालकका जन्म