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निवेदन
इस १२वी किरणके साथ 'अनेकान्त' के कृपालु ग्राहकों द्वारा भेजा हुआ शुल्क समाप्त हो गया है। अब देहली से 'अनेकाँत' का प्रकाशन बंद किया जा रहा है । अतः 'अनेकान्त' के सम्बंधमें अब पत्र व्यवहार उसके सम्पादक पं. जगलकिशोरजी मुख्तार अधिष्ठाता 'वीरमवामंदिर सरसावा जि०सहारनपुर से करना चाहिये । इन दो वर्षों में अनेकांत-व्यवस्था सम्बंधी जो अनेक भूल हुई हैं उनके लिये में क्षमा प्रार्थी हूं।
विनीत--
अ०प्र० गोयलीय
व्यवस्थापक