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________________ परिव २] ऊँच-नीच-गोत्र-विषयक . . (७) अपने पिता प्रपितादिकोंसे भाया हुवा विद्वानों से विनम्र प्रार्थना आचरण अपना गोत्रकर्म नहीं है । इस लेखमें ऊँच-नीच गोत्रकर्मोदय पर जो (८) चारों गतिके जीवों में ऊँच व नीच दोनों कुछ भी लिखा गया है, वह अनेक विद्वानोंके गोत्र गोत्रकर्मों का उदय प्रत्यक्ष सिद्ध व अनुभव कर्मविषयक लेखादिकोंके अध्ययन-मनन परसे बना गोचर है। हुश्रा केवल मेरा अपना विचार है । मैं जिनागमका (९) इस लेख में सिद्ध किये हये प्रत्येक अभ्यासी और जानकार स्वल्प भी नहीं हैं, केवल प्राणीके ऊँच-नीच गोत्रकोदयसे और जिनागममें नाम मात्रको स्वाध्याय कर लेता हूँ, इसलिये दवा वर्णित देवोंमें उच्च मनष्योंमें ऊँच व नीच, व करके विद्वान लोग वात्सल्य भाव पूर्वक बतलावें नारकी तिर्यंचोंमें, नीच गोत्र कर्मोदयसे विरोध कि यह लेख जिनागमसे कितना अनुकूल व कितना नहीं है। प्रतिकूल है, ताकि मैं अपने विचारोंमें सुधार (१०) अपने अपने ऊँचे व नीचे आचर.. कर सकू। णानुमार समय समय प्रति ऊँच व नीच गोत्र विचार-स्वातनयके कारण, इस लेख में मुझसे कर्मका रसानुभव होता रहता है। अत्युक्तियाँ अथवा अन्योक्तियां भी बहुत हुई (११) गोत्रकर्म संसारस्थ आत्माका सापेक्ष अन्योक्तियोंको बतलानका जरूर कष्ट उठायें, इस होंगी, अतः कृपा कर उन मेरी अत्यक्तियों और धर्म है। प्रकार समाजके सभी विद्वानोंसे मेरी विनम्र (१२) गोत्र कर्मोदय स्थायी नहीं है। आदि, प्रार्थना है ।
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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