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________________ नृपतुंगका मत विचार और 'नागानन्द' नामके ३ नाटक लिखे हैं; जैन होते हुए भी इनमें प्रतिफलित धर्म छन कवियों (३) समुद्रगुप्तके ( ई० स० ३३०-३७५ ) के पोषकों का स्वधर्म है, कवियों का स्वधर्म नहीं अलाहाबाद स्तम्भको प्रशस्तिसे वह 'कविराज' था, इस बातको कौन नहीं जानता ? (२) ई० स० तथा गान्धर्वविद्यामें भी विशारद मालूम पड़ता १२३० में जयसिंह सूरि नामकं श्वेताम्बर कवि है। इतना ही नहीं उसके समयके बहुतमे सिकोंमें रचित 'हम्मीरमदमर्दन' नाटकमें * जिनस्तुति भी उसके सिंहासनमें सुखासीन होते हुये वीणा या जैनधर्म-सम्बन्धी किसी बातका जिक्र किया बजानेका चित्र है। (४) 'भूलोकमल्ल' उपाधि हो नहीं । उसमें उसने लिखा है:यक्त ( ई० स० ११२६-११३८ ) चालुक्य वंशके "स्तंभतीर्थनगरी गरीयो रस्नाकुरस्य त्रिभुवन नरेश तृतीय मोमेश्वरने 'मानमोल्लास' अथवा विभविनम्र-मौलि मुकुटमणि किरण-धोरणी-पौत'अभिलाषितार्थ चितामणि' नामका संस्कृत ग्रंथ चरणारविन्दस्य पृन्दारकपदविक्रमचस्कृतिपरिपाकजुट लिखा है, इत्यादि । कदष्टदनुतनुनविजयभीमीमस्य श्रीभीमेश्वरस्य यात्रा तो भी 'कविराज मार्ग' नृपतुंगकी स्वयं कृति ............श्री वस्तुपालकुखकाननकेलिसिंहेन भीमता नहीं है औ उनके नामसे दूसरे किसीने उसे रचा जयसिंहेन" होगा ऐसा समझा जाय तो उससे हानि क्या? इस नाटकके अन्तमें नायकसे की गई शिव(१) कन्नड कविश्रेष्ठ आदिपंप तथा रमकवि स्तुति साक्षात शैव कवि द्वारा रचित मालूम पड़ती जैन थे इस बातको कौन नहीं जानता। परन्तु है। उस प्रार्थनासे प्रसन्न होकर शिवने प्रत्यक्ष हो पंपके विक्रमार्जुन विजय' नामक 'पंपभारत' को फर नायकके भरत वाक्यको पूर्ति कर दिया लिखा तथा रनक 'गदा युद्ध' को क्या कोई जैन कविकृत है; (३) होयसलवंशी वीरवल्लालका ( ई० स० कह सकता है ? इनमें उन कवियोंने अपने , ११७३-१२२०) आश्रित् कन्नड जैन कवि जन्नने पोषक नरेशोंक स्वधर्मका अनुकरण करते हुए और 'यशोधरचरित' तथा 'अनन्तनाथ पुराण' जैन उसके अनुगुणरूप विष्णुस्तुति, शिवस्तुति काव्य रचने पर भी राजाके लिये रचित चन्नरायइत्यादि से अपना प्रन्थारम्भ करते हुये,उस धर्मको पदणके १७९ वें (ई० स० ११९१ ) ताम्रशामन धोरणामें ही उनकी आद्यन्त रचना करनस ये की अवतारिकामें दिया हुना संस्कृत श्लोक विष्णु समप्र बैष्णव धर्ममय हैं । आप जैन होते हुए भी स्तति सम्बन्धी है, और उत्पलमालामें विष्णुकी उन कवियोंने अपने काव्योंमें अपने धर्मको बात बराहावतारकी स्तति है। वैसे ही इसके द्वारा ली है क्या ? अतः इनके रचयिता कवियोंने स्वतः रचित तरिकरे ४५ वें (ई० स० ११९७ ) शामन S 'Men and thought in ancient India' के आदि पद्यमें 'ममृतेश्वर' नामक शिवकी तथा pp. 171-172, Gaekwad's Oriental Series No. X $ Ibid, pp. 154-155. + E.H. D.P.67. पृ० १ और २६
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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