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________________ नृपतुंगका मत विचार अन्तिम पद्य के अनुसार इम कविताके कर्ता लिखा होगा, उसमें यह श्लोक रहा भी होगा। अमोगवर्षने विवेक राज्य त्याग किया लिखा है, परन्तु समके राज्यत्यागके सम्बन्धमें ठीक आधार पर तिब्बन भाषाके अनुवादमें उमके कर्ताने गज्य प्राप्त होने नक, आगन्तुक किसी श्लोकके ऊपर त्याग किया लिखा हो मो उम बातको पाठक विश्राम रख कर उसे ऐतिहासिक तथ्य समझकर महाशयने कहा नहीं; उप अनुवादमें वैम नहीं स्वीकार करना मुझे ठीक नहीं मालूम पड़ता। लिखा हो तो अमोघवर्ष और अमोघोदय ये दोनों विवेकास्यक्तराज्येन' यह श्लोक ऐतिहासिक तथ्य एक ही व्यक्ति थे ऐमा कहना कैसे ? इन दोनों को कहता है, इस प्रकार निष्प्रमाण स्वीकार करने 'अमोघ' यह पर्व पद रहनेके कारण ये दोनों पर भी इममे नपतुंगनं जैनधर्मका अवलंबन किया एक ही व्यक्ति थे इस प्रकार बिना प्रबल प्राधार यह अर्थ नहीं होता; विवेकसे राज्यमार त्याग के कोई कहे तो उमे स्वीकार नहीं किया जा किया लिखा है, वह विवेकोदय उसे जैनधर्मसे मकता। हुआ यह बात नहीं। ई० स० ८१५ से ७७ तक अतः इम कविताका कर्ता श्वेताम्बर जैन करीब ६२-६३ वर्ष तक राज्यशासन किये हुए इसे गुरु विमल' के मिवाय अन्य कोई नहीं यह नपर्नु- उस वक्त ८०-८२ वर्षसे कम न हुए होंगे, उस गकी कृति नहीं है यह बात मुझे ठीक मालूम पड़ती वृद्धावस्थामें यह राज्यभारसे निवृत्त हुभा हो तो है। इस विमलसूरिन कर्नाटक भापामें क्या काव्य वह विवेक नैर्गिक है। इसके पहिले इसके पितारचना की है ? 'कविराजमार्ग' में कहा हुआ मह ध्रुवराजने राज्य भारमे निवृत होना चाहा था 'विमल' ('विमलोदय, नागार्जुन.....। २९) नाम यह बात पहिले कही जा चुकी है। का व्यक्ति क्या यही होगा ?-इम मम्बन्धमें (ई) कविराजमार्ग विद्वान लोगोंको विचार करना चाहिये। ___ 'विवेकात्त्यक्तराज्येन' * यह श्लोक इम यह एक कर्नाटक अलंकार प्रन्थ है । यह कवितामें प्रक्षिप्त किया गया होगा, इतना ही मैंने नृपतुंगकी स्वयं कृति है या उमके प्रास्थानक कहा है, वह नपतुंगरचित अन्य किसी संस्कृत किसी कविन उसके नामसे रचना की हो, इस मन्थमें नहीं होगा, यह वान मैंने नहीं कही। पर मम्बन्धमें विद्वानोंमें भिन्नाभिप्राय हैं। यदि यह वह स्वयं या जमके सम्बन्धमें और कोई काव्य ग्रन्थ नृपतुंगको स्वयं कृति है तो इसमें इसकी ___®ग्स नृपतुंगका पितामह राज्य भारसे निवृत अवतारिका दो कंद पद्योंमें (अपने इष्ट देवता) विष्णुकी स्तुति की है । इमसे तो यह राजा स्वयं होना चाहता था उस वक्त उसके पुत्रने उसे स्वीकार वैष्णव सिद्ध होता है। भागवत वैष्णव धर्ममें नहीं करते हुये वैसा होने नहीं दिया था, वैसे ही नृप तुंगके राज्य त्याग करना चाहते वक्त उसके पुत्रने अपने . हरि-हर समान हैं यह बान पहिले कही जाचुकी है। पूर्वजोंकी पद्धतिका अनुकरण करते हुये उसे वहीं स्वी. इस काव्यके तृतीय परिच्छेदके ८१,१०, १ कारा होगा, ऐसा मुझे मालूम पड़ता है। 1 0,५४० के पोंका परिशीलन करें।
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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