SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 657
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०६ भनेकान्त [भाषण, बीर निर्वाण सं०२४६ D 'वीरों की प्रतिसा' शीर्षक भाषणकी ओर आकर्षित भाशा है । प्रश्न इस प्रकार हैकरते है (यह भाषण अनेकान्तकी इसी किरण में अन्यत्र १-जैनधर्मके अनुसार अहिंसाकी क्या व्याख्या है ? प्रकाशित ) जिसमें हिंसाकी व्यापक और विशद,पर भापकी रायमें क्या मान जो व्याख्या की जाती है, साथ ही सुगम व्याख्या की गयी है। वह उससे मिल है? आपकी सम्मतिमें अहिंसा पान भारतवर्ष ही नहीं, सारे संसारका ध्यान की पूर्ण म्याख्या क्या है? अहिंसाके सिद्धान्तकी ओर गया है। ऐसे अवसर पर २-क्या यह सम्भव है कि बाहरके आक्रमण या पहिसाको परमधर्म मानने वाले हम जैनोंका एक अन्दरूनी झगड़ों, (जैसे हिन्दु-मुस्लिम दंगे, या विशेष उत्तरदायित्व हो गया है । हजारों वर्षोंसे- लूट मार ) से बिना हथियारों पा फौजके अहिंसापरंपरासे हम अहिंसाधर्मकी घोषणा करते रहें हैं और स्मक ढंगसे देशकी रसा हो सकती है? उसके लिये बहुतसे कष्ट भी सहे हैं । इसलिये आज ३-यदि ऐसा नहीं तो क्या आपकी रायमें अहिंसा जब अहिंसाके सिद्धान्तकी परीक्षाका और उसके विकास जीवनका सर्वव्यापी सिद्धान्त नहीं हो सकता? का समय पाया है, तब हमारा कर्तव्य हो जाता है ४-अहिंसात्मक ढंगसे देशकी रक्षाका प्रश्न हल हो कि हम इसकी प्रतिष्ठामें अपना सहयोग दें और स्पष्ट सकता है, तो किस तरीकैसे और क्यों कर ? तौर पर अपना मत दें। हम समझते हैं कि और कुछ -आपकी जानमें क्या जैनशास्त्रों या साहित्यमें न कर सकें तो अहिंसाकी सैद्धान्तिक चर्चा में तो हम ऐसे कोई उदाहरण हैं जब देश या राज्यकी रक्षाके अधिकारसे बोल ही सकते है। यदि हम आज इस लिये अहिंसात्मक उपाय काममें लाये गये हों। प्रश्नकी चर्चा में संसारके सामने वास्तवमें कुछ स्पष्ट ६ --क्या आपकी जानमें शास्त्रों में ऐसे भी उदाहरण हैं और निखित् राय रख सकें तो अहिंसाधर्मके प्रचारमें जब देश या धमकी रक्षाका प्रश्न उपस्थित होने थोडासा हाय बंटा सकनेके पुण्यके भागी भी हो सकेंगे। पर जैन प्राचार्योंने हिंसासे रक्षा करनेका आदेश इन सब बातोंको ध्यानमें रखकर हम नीचे लिखे दिया हो या भायोजन किया हो। कुछ प्रश्नों पर आपकी स्पष्ट और निश्चित राय चाहते हम आशा करते हैं कि जैसा भी हो, संक्षेपमें या है और आशा करते हैं कि आप हमें जितनी जल्दो हो विस्तारसे आप अपना उत्तर शीघ्र ही भेजनेकी कृपा सके, अपने उत्तरसे कृतार्थ करेंगे। हम यह पत्र सभी करेंगे। हम आपको विश्वास दिलाते हैं कि इस प्रश्नकी जैनसम्प्रदायोंके प्राचार्य, प्रख्यात् साधु, आगेवान चर्चा उठानेमें हमारा एक मात्र उद्देश्य अहिंसाके प्रचार श्रावक तथा जैनपत्रों के सम्पादकोंके पास भेज रहे हैं में तथा उनके प्रयोके बीचमें आई हुई बाधाओं को दूर और चाहते हैं कि पर्युषणपर्व तक सब उत्तरोंका करने में जितना हो सके उतना सहयोग देनेका है। संकलन करके प्रकाशित करें । यदि हमारी जानकारी बिनीत न होनेसे था भबसे किन्हीं महानुभावके पास यह पत्र ४८, इंडियन मिररस्ट्रीट विजयसिह नाहर खास तौरसे न पहुंचे तो भी यह उनकी नजरमें पाने कलकत्ता सिद्धराज ढड्डा वह अपना मत इस पर प्रकट करेंगे, ऐसी हमें भंवरमल सिंधी
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy