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________________ वर्ष, किरय..] तामिल भाषाका नसाहित्य वार्षिक उत्सव मनाये जाते हैं । यह बात श्रादि-जैनों ध्यानपूर्वक देखता था, कि 'पिंग' (Whigs) लोगोंको के विषयमें तामिल विद्वानोंके दृष्टिकोणको समझने में उससे अधिक लाभ न हो । जबकि तामिल विद्वानोंकी सहायक होगी। इससे यह बात स्पष्ट है, कि वे इस साधारण मनोवृत्ति इस प्रकारकी हो, जब वैज्ञानिक एवं सूचना मात्रका विरोध करते हैं, कि महान् नीतिशास्त्र ऐतिहासिक शोधकी यथार्थ भावना शैशवमें हो, तब जैन विद्वानके द्वारा रचित होगा। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है, कि तामिल साहित्य ___एक परम्पराके आधार पर इस प्रथके लेखक कोई नामकी कोई अर्थवान वस्तु हमारे पास न हो । अतः तिरुवल्लुवर कहे जाते हैं । तिरुवल्लुवरके सम्बन्धकी हम जैनसाहित्यके ऐतिहासिक वर्णनको पेश करने के काल्पनिक कथाके घटक आधुनिक लेखकोंकी कल्पनाके प्रयत्नमें असमर्थ हो जाते हैं। द्वारा जो बताया गया है। उससे अधिक उसके सम्बन्ध इस विषयान्तर बातको छोड़कर ग्रंथका परीक्षण में अज्ञात है । तिरुवल्लवरकी जीवनीके सम्बन्धमें अनेक करते हुए हमें स्वयं पुस्तकमें आई हुई कुछ उपयोगी मिथ्या बातें बताई गई हैं, यथा वह चाण्डालीका पुत्र बातें बतानी हैं । इस पुस्तकमें तीन महान विषय है। था । सभी तामिल लेखकोंका समकालीन एवं बन्धु था। (अरम् ) (धर्म) पोल (अर्थ) इनवम् इस बातका कथनमात्र इसके मिथ्यापनेको घोषित (काम) ये तीनों विषय विस्तारके साथ इस प्रकार समकरता है । किन्तु आधुनिक अधिक उत्साही तामिल झाये गये हैं, जिसके ये मूलभूत अहिंसा सिद्धान्तके विद्वानोंने उसे ईश्वरीय मस्तक तक ऊँचा उठाया साथ सम्बद्ध रहें। अतः ये संज्ञाएँ साधारणतया हिन्दू है, उसके नाम पर मंदिर बनाएँ हैं तथा ऐसे वार्षिक धर्मके ग्रन्थों में वर्णित संज्ञाओंसे थोड़ी भिन्न है, इस उत्सवोंका मनाना प्रारंभ किया है, जैसे हिन्दू देवताश्रों विषय पर ज़ोर देनेकी आवश्यकता नहीं है । हिन्दु धर्म के सम्बन्धमें मनाए जाते हैं। इसका लेखक एक हिन्दू की बादकी धार्मिक पद्धतियोंमें वेद-विहित पशुवलिकी देवता समझा जाता है, और यह रचना उस देवता क्रिया पूर्णरुपेण पृथक नहीं की जासकी कारण वे द्वारा प्रकाशित समझी जाती है । साधारणतया इस वैदिक धर्म-सम्बन्धी क्रियाकाण्ड पर अपलंवित है, प्रकारके क्षेत्रों में ऐतिहासिक अालोचनाके सिद्धान्तोंका इसलिये धर्म शब्दका अर्थ उनके यहां वर्णाश्रम धर्म प्रयोग कोई नहीं सोचेगा । यह बात तो यहाँ तक है, ही होगा, जिसका अाधार वैदिक बलिदान होगा । जैन, कि जब कभी ग्रन्थके प्रमेयके सूक्ष्म परीक्षणके फलस्व- बौद्ध तथा सांख्यदर्शन नामक तीन भारतीय धर्म ही रूप कोई बात सुझाई जाती है, तब वह धार्मिक जोश. वैदिक बलिदानके विरुद्ध थे। पुनरुद्धारके कालमें इन पूर्ण तीव्रताके साथ निषिद्ध की जाती है । अनेक श्रा- तीन दर्शनों के प्रतिनिधि पूर्व तामिल देशमें विद्यमान थे। लोचक नामधारी व्यक्ति, जिन्होंने इस महान् रचनाके ग्रंथके श्रादिमें ग्रंथकार 'धर्म' के अध्याय में अपना मत सम्बन्धमें थोड़ा बहुत लिखा है, इस प्रकारकी विचित्र इस प्रकार व्यक करते हैं, कि सहस्रों यज्ञोंके करनेकी बौद्धिक स्थिति रखने में सावधान रहे है जिस प्रकार अपेक्षा किसी प्राणीका बध न करना और उसे भक्षण 'सेमुअल जानसन' 'हाउस श्राफ कामन्स' की कार्यवाही न करना अधिक अच्छा और श्रेयस्कर है। यह एक ही को लिखते समय सावधान रहा था। वह इस बातको पद्य इस बातको बतानेको पर्याप्त है कि लेखक कभी भी
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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