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________________ वर्ष , किरण १०] सामिल भाषाका जैनसाहित्य (४) नश्चीनार्किनियर (५) कल्लादरेकी लिखी हुई बंदरगाह है, यहाँ के लोग मूमध्यसागरके अासपासके हैं इनमें से प्रथम लेखक सब टीकाकारों में प्राचीन है। यूरोपियन राष्ट्रोंके साथ समुन्नत सामुद्रिक व्यापार करते पश्चात्वी लेखकोंने आमतौर पर 'टीका कार' के नाम थे, तामिल भापाने वैदेशिक शब्द भंडारको महत्वपूर्ण से उसका उल्लेख किया है । परम्पराके अनुसार यह शब्द प्रदान किये थे, और तामिल देशके अनेक तामिल भाषाके व्याकरणका महान् ग्रन्थ द्वितीय संगम स्थानोंमें उपलब्ध रोमन देशीय स्वर्ण मुद्राएं रोमन कालका कहा जाता है । हमें विदित है कि विद्यमान साम्राज्य से सम्बन्धको सूचित करती हैं। इसके साथमें सब ही तामिल ग्रन्थ अंतिम तथा तृतीय मगम् कालके मोहन जोदरो, हरप्पाकी हालकी खुदाई और खोज कहे जाते हैं । अतः इस टोलकाप्षियम्को करीब २ आर्योकी पूर्ववर्ती सभ्यताको बनाती है और हमें उस संपूर्ण उपलब्ध तामिल साहित्यका पूर्ववर्ती मानना उच्च कोटिकी गभ्यताका ज्ञान कराती है, जो श्रादिचाहिये। द्रविड़ लोगोने प्राप्त की थी। जब तक हम इस श्रादिइस परंपरा को स्वीकार करना आश्चर्यकी बात द्रविड सस्कृति के पुनर्गठन के सम्बन्धम उचित साक्षी होगी, क्योंकि यह संभव नहीं है कि किमी भाषाके नहीं प्राप्त काले, तब तक नो ये सब बाने कल्पना ही अन्य ग्रन्थों के पूर्वमें उसका व्याकरण शास्त्र हो। रहेंगी। उपलब्ध तामिल साहित्य बहुधा तृतीय सगम वास्तवगे व्याकरण तो भाषाका एक विशान है, जिसमें कालका है, अतः अनेक ग्रन्थ, जिनके सम्बन्धमे हमें साहित्यिक रिवाज ग्रंथित किए जाने हैं; इसलिये वह विचार करना है, इस काल के होने चाहिये । यह समय उम भागामें महान् साहित्य के अस्तित्वको बनाता है। प्रायः ईमाम दो शताब्दी पूर्वम लेकर मातवीं मदी तक तामिल वैयाकरण भी इस बातको स्वीकार करते हैं । वे होगा। चूकि सगम या एकेडेमी एक मदेहापत्र बस्तु है पहिले साहित्यको और बाद में व्याकरणको बताते हैं। इसीलिये सगम शब्द नामिलकि इतिहासक काल विशेष इसलिय यदि हम इस परंपराको स्वीकार करते हैं कि को यातित करने के लिए एक प्रचलित शब्द है। टोलकासियम् सगमकालका मध्यवर्ती है तब हमें उसके श्रीयुत शिवराज पिल्लेके द्वारा सूचिन तामिल पूर्वमे विद्यमान् महान् साहित्यकी कल्पना करनी इंगी, माहित्य के प्राकृतिक, नैतिक और धामिक ऐसे जो किमी काग्णसे अब पूर्ण लुप्त हो गया है । यदि तीन मुगम काल भेद माने जा सकते हैं, हम द्रविड़ सभ्यताकी पूर्व अवस्था पर विचार करें, तो क्योकि ये व्यापकरूपसे तामिल साहित्यको उन्नति के इस प्रकारकी कल्पना बिल्कुल असंभव नहीं होगी। द्योतक हैं । कुरल और नानांदयार जैस नीति ग्रन्यांक अशोक ममय के लगभग तामिल प्रदेशमें चेरचोल और उत्तरवर्तीमाहित्यम बड़ी स्वतत्रताके माथ अवतरण पांड्य नामके तीन विशाल साम्राज्य थे । अशोक इन दिए गए हैं । अतः यह मानना एकदम मिथ्या नहीं साम्राज्योंकी विजयका कोई उल्लेख नहीं करता है। होगा, कि काव्यमादित्यकी अपेक्षा नैतिक माहित्य पर्वअशोक के साम्राज्य के पास पास ये मित्र राज्योकी सूची वर्ती प्रतीत होता है । इस नैतिक साहित्य समूहमे मे बताए गये हैं । इतिहास के विद्यार्थी इन बातोसे भली जैनाचार्योका प्रभाव विशेपर्गतिमे विदित होता है । भाँति परिचित हैं, कि तामिल देशमें बहुत सुन्दर कुरल और नालदियार नामके दो महान ग्रंथ उन
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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