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________________ ५६ भनेकान्त [भावय, वीर निर्वाण सं०२४१६ . तपितृनिजनामकृते ख्याते बंकापुरे पुरेष्वपि शकनृपकालाभ्यन्तरविंशत्यधिकाशतमिताब्दान्ते। यस्य प्रांशुनखांशुजालविसरदारान्तराधिर्भवत् । मंगलमहार्थकारिणि पिंगलनामनि समस्तजनसुखदे ॥३६ पादाम्भोज रजः पिशंगमुकुटप्रत्यारतयुतिः ॥ अर्थात्-राष्ट्रकूट वंशके (नपतुंगके पुत्र) संस्मर्ता स्वयममोघवर्षनृपतिः पूतोहमोत्यलं । अकालवर्ष नामक दुसरे कृष्णके शासन करते वक्त स श्रीमान् जिनसेमपूज्यभगवत्पादो जगन्मंगलम्।।१०॥ ( उसका सामन्त ) 'चल्ल पताक' नामक लोकादित्य इससं अमोघवर्षने जिनसेनको वन्दन करके जैनधर्मकी अभिवृद्धि कर्ता हुआ । 'वनवास + अपनेको अबही (='अद्य' ) धन्य माना यह देश पर शासन करते वक्त (उस वनवास देशमें) उम लोकादित्यके पिताके नाममे निर्मित 'बंकापुर बात मालूम पड़ती है, इसके सिवाय जिनसनसे जैनधर्मावलम्बन किया या स्वधर्म छोड़कर जिन(इस नामकी उमकी राजधानी ) में शक सं०८२० ( ई० स०८९७-८ ) में गुणभद्र ने 'उत्तरपुराण' सेनका शिष्यत्व प्रहण किया है, ऐसा अर्थ निक लता है या नहीं सो मैं नहीं जानता। इसके सिवाय लिखकर समाप्त किया। उसमें 'अद्य' यह शब्द रहनेसे जिनसेन और अमोघवर्षकै बीचमे एक समय परस्पर भेटका क्या नृपतुंग जैन था ? वर्णन मालूम पड़ता है, इससे ज्यादा अर्थ उसमें (अ) जिनमेन, गुणभद्रके काव्योंमें स्थित उल्लेख अनुमान करना ठीक नहीं मालूम होता है। ५. नपतुंगने जैनधर्मको स्वीकार किया, इम अथवा अमोघवर्प जिनसेनसे जैनदीक्षा लेकर बातको मानने वाले उमे जिनसेनद्वारा जिनधर्ममें उसका शिष्य हुआ होगा तो गुणभद्रने उसे दीक्षित हुआ विश्वास करते हैं उनके इस विश्वाम. स्पष्ट क्यों नहीं किया? इमी गुणभद्रन अपने 'उत्तर मंबन्धमे गुणभद्रकं 'उत्तरपुराण' का यह वृत्त पुराण'म बंकापरकं लोकादित्यको 'जैनेन्द्र धर्मवृद्धिही अन्य आधारोंमें प्रवल आधार है । इस विधायी' इम प्रकार नहीं कहा क्या ? अमोघवर्ष बातको भूलना नहीं । वह वृत्त इस प्रकार ने गुणभद्रकं खाम गुरुसे ही जैनधर्मका अवलंबन किया होगा तो उसे वैसे ही उल्लेख क्यों नहीं + बम्बई प्रान्तके उत्तर कन्नर जिलाके वनवासी।। किया ? और अमोघवर्ष अपने गुरुका शिष्य था, (in the Prasasti of the 'Uttar - तो वह अपना सधर्मी होनेसे गुणभद्र ने अपने purana') we are told that he (1. e. Nripatunga or Amoghavarsha 1) be- 'उत्तरपुराण को अपने सधर्मीके पुत्र अकालवर्षके came the disciple of Jinasena the well आस्थानमें या राजधानीमें अथवा उसके राज्यके known Jaina Author, who also bears किसी और स्थानमें न लिखकर उसके सामन्त testimony to the fact in tae Parsabh• राजलोकादित्यकी राजधानीमें क्यों लिखा ? yudaya) 1. A. pp. 216-217 (क. मा. उपो- - दधात प०६) ०सि०मा० १, ३, २०; वि०० मा० पृ० २१. - - - - - -
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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