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वरिशासन-जयन्ती-उत्सव
इस वर्ष वीर-मेवामंदिरमें श्रावण कृष्णा भाषण बहुत ही प्रभावक एवं महत्वके हुए हैं। प्रतिपदा सा० २० जुलाई सन १९४० शनिवारको इन भाषणोंमें धीर-शासनके महत्वका दिग्दर्शन वीरशामन-जयन्तीका उत्मव गत वर्षसे भी अधिक कराने के साथ साथ उनके पवित्रतम शासन पर ममारोहके साथ मनाया गया । नियमानुसार अमल करने की ओर विशंप लक्ष दिया गया है । प्रभात फेरी निकली, झंडाभिवादन हुश्रा, मध्यान्ह वीर भगवान्के अहिंसा मादि खास सिद्धान्तोंका के समय गाजे बाजे के साथ जलस निकला और इस हंगमे विवेचन किया गया कि उससे उपफिर ठीक दो बजे पं० श्री. मवखनलालजी स्थित जनता बड़ी ही प्रभावित हुई । और सभीके अधिष्ठाता ऋषभ ब्रह्मचर्याश्रम चौरामी-मथुगके दिलों पर यह गहरा प्रभाव पड़ा कि हम वीरमभापमित्वमे जल्सेका प्रारम्भ हुआ और वह ५॥ शासनकी वास्तविक चर्यासे बहुत दूर हैं और बजे तक रहा । जल्ममें बाहरम सहारनपुर मुज उमे अपने जीवन में ठीक ठीक न उनार सकने के परनगर, देहली. मथग नकुड़ कैराना अभदुल्ला कारण ही इतनी अवनत दशाको पहुँच गये हैं। पुर, जगाधरी और नानौता आदि स्थानोंम अनेक अब कि वीरकी अहिमा और सत्य के एक अंशका सजन पधारे थे।
पालन करनसे गांधीजी महात्मा हो गये और मंगलाचरण, निथि-महत्व और श्रागन पत्रों सारे संसारकी दृष्टिमें प्रतिष्ठाको प्राप्त हुए, तब का मार सुनानका अनन्तर सभामं भाषणादिका बीरके उन अहिमा और सत्य आदि मिद्धान्नोंका कार्य प्रारम्भ हुआ, जिसमें निम्न सज्जनोंने पूर्णतया पालन करके उन्हें अपने जीवनमें उतार भाग लिया---
कर अथवा वीरके नक्शे कदम पर चल करकेला. नाहरसिंहजी सम्पादक जैन प्रचारक संसारका ऐसा कौनसा प्रतिष्ठित पद है जिम हम सरमावा, चि. भारतचन्द्र, ओमप्रकाश, माल प्राप्त न कर सके । फिर भी हम वीरशामनके रामानन्दजी मायानाचार्य, प्रो धर्मचन्द्रजी, बा० रहस्यको भूले हुए हैं ---उनके अनेकान्न और स्याकौशलप्रमादजी,ला. हुलाशचन्दजी,"पं० रामनाथ- द्वाद सिद्धान्तसं अपरिचित हैं--इसी कारण इम जी वैद्य, पं० राजेन्द्रकुमारजी कुमरेश, पं० जगल- बीर-शामनका स्वयं आचरण नहीं करने और न किशोरजी मुख्नार, सौ० इन्द्रकुमारी हिन्दीरत्न' दूसरोंको ही करने देते हैं; मात्र उम अपनी बपौती शारदादेवी और सभाध्यक्ष पं० मक्खनलालजी। समझ कर ही प्रमन्न हो रहने हैं ! जो शामन
भापणोंमें प्रो० धर्मचन्दजी, बाकौशलप्रमाद- संसारके ममस्त धाँसे श्रेपनम, अवाधित एवं जी, मुख्नार साहब और सभापति महोदयके सुखशान्तिका मूल है, जिससे दुनयाके सभी