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बप ३, करव.]
जैनागर्मि समयमाणमा
उतने कालका एक सूक्ष्म उद्धार पल्योपम होता है। प्रति समय अपहरण करते हुए जितना समय लगे उसे
३ म्यवहार श्रद्धापश्योपमः-उपरोक्त कुएँको सूक्ष्म क्षेत्र पल्योपम कहते हैं। व्यवहारिक उद्धारके उपर्युक्त विधिसे भरकर दबे हुए दश क्रोडाकोड़ी पल्योपमका एक सागरोपम होता है। केशवण्डोम एक एक केशको सौ सौ वर्षों बाद निकाले पल्योपमके ६ भेदोंके अनुसार सागरोपमके भी ६ भेद जाने पर जब कुंश्रा खाली हो जाय तब उतने समयको हो सकते हैं । ऐसे दश कोड़ा फोड़ी सूक्ष्म श्रद्धा सागरोव्यवहारिक श्रद्धापल्यापम कहते हैं ।
पमोकी १ उत्सपिणी या १ अवसर्पिणी होती है । इन ४ सूक्ष्म अद्धापल्योपमः-पूर्वोक्त कुएँको १ दोनोको मिलाने से अर्थात् २० क्रोडाकोड़ी सागरोपमका दिनसे ७ दिन के बढ़े हुए केशोके असख्य टुकड़े करके एक काल चक्र होता है । इससे अधिक समयको अनंत पूर्ववत् विधिस दबा कर भर दिया जाय और फिर सौ काल कहते हैं। सौ वर्ष अनन्तर एक एक केशखंड निकाला जाय। इस प्रकार जैनागमोम वणित समयगणनाका जितने कालम वह कुश्रा खाली हो जाय, उतने काल संक्षेपस निरुपण किया गया है । यह निरुपण अनुयोगद्वार को सूक्ष्म श्रद्धापल्योपन कहते हैं।
सूत्र एव जम्बूदीपप्रज्ञप्ति के आधारस लिखा गया है। ५ व्यवहार क्षेत्र पल्योपम-व्यवहार उद्धार जो फि मूल एव सपांग अथ माने जाते हैं ज्योतिष-करंड पल्योपमके केशोंने जितनं आकाश प्रदेशको स्पर्श पयन्ना और अन्य बाद के ग्रन्थोंमें इस निरुपणसे कुछ किया है, उतने आकाश प्रदेशोमेसे एक एकको प्रति तारतम्य भी पाया जाता है, पर लेख विस्तारके भयसे समयमे अपहरण करने में जितना काल लगे उसे व्यव- उसकी अालोचना यहाँ नहीं की गई। विशेष जाननेके हारिक क्षेत्र पल्योपम कहते हैं ( श्राकाशके प्रदेश केश- इच्छुक जिज्ञासुश्रोको 'लोकप्रकाश' एवं अर्हतदर्शनखण्डोंसे भी अधिक सूक्ष्म हैं।
दीपिकादि ग्रन्थ देखने चाहिये । जैनागमोंमें वर्णित ६ सूचमक्षेत्रपन्योपमः-सूक्ष्म उद्धार पल्योपमके समय गणनाकी बौद्ध एवं वैदिक प्राचीन साहित्यसे केश खण्डोंसे जितने श्राकाश प्रदेशोंका स्पर्श हुश्रा हो तुलना करना आवश्यक है। श्राशा है साहित्यप्रेमी और जिनका स्पर्श न भी हुश्रा हो,उनमेंसे प्रत्येक प्रदेशसे इस ओर प्रयत्नशील होंगे ।