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________________ WWE MHATRI । नीति-विरोध-ध्वंसी लोक-व्यवहार-वर्तकः सम्यक । परमागमस्य बीजं भुवनैकगुरुर्जयत्यनेकान्तः ॥ सम्पादन-स्थान-वीरसेवामन्दिर (समन्तभद्राश्रम), सरसावा, जि. सहारनपुर प्रकाशन-स्थान-कनॉट सर्कस, पो० बो० नं० ४८, न्यदेहली वैशाग्व-पूर्णिमा, वीरनिर्वाण सं० २४६६, विक्रम सं० १९६७ किरण श्रीकुन्दकुन्द-स्मरण वन्द्योविभभवि न कौरह कौण्डकुन्दः कुन्द-प्रभा-प्रणयि-कीर्ति विभूषिताशः । यश्चारुचारण कराम्बुज-चञ्चरीकश्चके श्रुतस्य भरते प्रयतः प्रतिष्ठाम । -श्रवणबेल्गोलशिलालेख नं०५४ जिनकी कुन्द-कुसुमकी प्रभाके समान शुभ एवं प्रिय कातिम दिशाएँ विभूषित है-सब दिशाओं में जिनका उज्ज्वल और मनोमोहक यश फैला हुआ है, जो प्रशस्त चारपोक -चारग द्धिधारक महामुनियोकि -करकमलोंके भ्रमर थे और जिन्होंन भरतक्षेत्रम श्रुतकी-अागम-शास्त्रकी---प्रतिष्ठा की है, वे पवित्रामा म्वामी कुन्दकुन्द इस पृथ्वीपर किनसे वन्दनीय नहीं हैं ?--समीके द्वाग वन्दना किये जानके योग्य हैं। तस्यान्वये भूविदिते बभूव यः पद्मनन्दिप्रथमाभिधानः । श्रीकोण्डकुन्दादि मुनीश्वराख्यस्सत्संयमादुद्गत-चारद्धिः। -श्रवणबेगोल शिलालेख नं० . उन (श्रीचन्द्रगुप्त मुनिराज ) के प्रमिद्ध वंशमं वे श्री कुन्दकुन्दमुनीश्वर हुए हैं जिनका पहला-दीक्षा समयका--नाम 'पद्मनन्दी' था और जिन्हें मत्सयमके प्रमादसे चारण ऋद्विकी--पृथ्वी पर पैर न रखते हुए स्वेच्छामे श्राकाशमं चलने की शक्तिकी-प्राप्ति हई थी। रजोभिरम्पृष्टतमत्वमन्तर्बाह्येपि संव्यञ्जयितु यतीशः ।। रजःपदं भूमितलं विहाय चचार मन्ये चतुरङ्गलं सः॥ -श्रवणबेलगोल शिलालेख नं. १ यतिराज (श्रीकुन्दकुन्द ) रजःस्थान पृथ्वी तलको छोड़कर जो चतुरगुल ऊपर आकाशमै गमन करते थ उसके द्वारा, मैं समझता हूँ, वे इस बातको व्यक्त करते थे कि वे अतरंगके साथ साथ बाह्यमें भी रजसे अत्यंत अस्पष्ट है-अंतरंगमें रागादिकमल जिस प्रकार उनके पास नहीं फटकते उमी प्रकार बाझमें पथ्वीकी धलि भी उन्हें छू नहीं पाती।
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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