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[त्र, बीर-विचार
कहीं स्वरादि-संधि-सूचक संकेतचिन्ह, पदोंकी विभि- नहीं है, फिर भी यह प्रति अपने काराजकी स्थिति और बता-सूचक चिन्ह तथा सख्या-सूचक अंक भी बारीक लिखावट आदिपरसे २५०-३०० वर्षसे कमकी लिखी याइपमें (लघुत्राकारमें) अक्षरोंके ऊपर की ओर लगाये हुई मालम नहीं होती। इसे पण्डित रतनलालने कोटग?।
पावदामें लिखा है, जैसा कि इसको निम्न अन्तिम टिप्पणी एक स्थान को छोड़कर और कहीं भी पंक्तिसे प्रकट है:नहीं है, और वह है "त्रिविधा भोगभूमयः" सूत्र "पंडित रतनलालेन लिषितं कोटषावदामध्ये पर “जघन्य १ मध्य २ उत्कृष्ठ ३" के रूपमें, जो प्रायः संपूर्णजातः" प्रतिलिपि करने वालेके ही हाथ की लिखी हुई जान मालम नहीं यह 'कोटषावदा' स्थान कहाँपर स्थित पड़ती है और इस बात को सूचित करती है कि जिस है। परन्तु इस ग्रन्थतिकी प्राप्ति वर्तमानमें कोटा रियाप्रति परसे यह प्रति उतारी गई है संभवतः उसमें भी सतसे हुई है। कोटामें भाई केसरीमलजी एक प्रमुख वह इसी रूप में होगी।
___ खण्डेलवाल जैन तथा सार्वजनिक कार्यकर्ता है, उनके इस प्रतिमें अनुस्वारको कहीं भी पंचमाक्षर नहीं पाम रामपुर जि. सहारनपुर निवासी बाबू कौशलप्रमादकिया गया है। प्रोकार की प्राकृति 'और औकार जीने, जो आजकल महारनपुर में तिलक बीमा कम्पनीके की '' दी है । अंकोंमें ६-६ की प्राकृति क्रमशः '६' चीफ़ एजेंट हैं, यह ग्रन्थ देखा और इसे एक अपूर्व और 'र्ण' दी है।
चीज समझकर उनके पामसे ले आए तथा विशेष जाँच ग्रंथप्रति यद्यपि अधिकांशमें शुद्ध है, फिर भी पड़ताल एवं परिचयादिके लिये मेरे सुपुर्द किया, जिसके उसमें कुछ साधारण तथा महत्त्वकी अशुद्धियां भी पाई लिये मैं उनका बहुत ही प्राभारी हूँ। जाती है । वच का भेद तो बहुत ही कम रक्खा हुआ भाई केसरीमलजीने इस ग्रंथकी प्राप्तिका जो इतिजान पड़ता है-कहीं कहीं तो इन अक्षरोका प्रयोग हाम बा० कौशलप्रसाद जीको बतलाया उमसे मालम ठीक हुआ है, और कहीं वकार की जगह बकार और हुआ कि 'कोटामें भट्टारककी एक गद्दी थी, उस गद्दीपर बकार की जगह वकारका प्रयोग कर दिया गया है दुर्भाग्यस एक ऐमा हो अादमी आगया जिमने वहाँका जैसे विधो, बिधः, द्रव्य, विग्रहा, देन्यः, बर्षाणि, बिधा, सारा शास्त्रभण्डार रद्दोमे बेच दिया ! कुछ दिन पहले चतुर्विशति, वैमानिका, विघ्न, विति, विघ, पंचर्षि- केसरीमलजीने इस प्रकारकी रद्दीकी एक बोरी एक मुस
शति, अष्टाविशति, ज्ञानावरण, विंशति, संवरः और लमान बोहरेके यहाँ देखी और उसे पाठ पानेमें विरचिते (सर्वत्र) इनमें 'व' के स्थान पर 'ब' का प्रयोग खरीद लिया। उसी बोरीमेंसे इस ग्रन्थरत्नकी प्राप्ति हुई हुधा है; और जंव ब्रह्मालया तथा वहु, इन शब्दोंमें है।' ग्रंथ प्राप्तिकी यह छोटीसी घटना बड़ी हो हृदय'ब' के स्थान पर 'व' का प्रयोग हुआ है, जो अशुद्ध द्रावक है और इससे जैनियोंके शास्त्रभण्डागेकी अव्यहै, और यह सब प्रायः लिपिकारकी नित्यकी बोल- वस्था, अपात्रों के हाथमें उनकी सत्ता और साथ ही चालके अभ्याससे सम्बन्ध रखता हुआ जान पड़ता है। अनोखी श्रुतभक्तिपर दो आँसू बहाये बिना नहीं रहा ___ अन्यप्रतिके अन्तमें यद्यपि लिपि-सम्बत् दिया हुआ जाता ! जैनियोंकी इस लापर्वाही और अन्योंकी वेदर