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________________ अनेकान्त काल्गुन वीर-निर्वाह सं० २४१६ विनय पास करली हो। क्योंकि बाति लेखनकबाकी किसी सभ्य जातिके इतिहासमै अपना सम्बंध स्थापित अनमिलता या कानूनको अवहेलना करनेसे नहीं गिरी, न करें, और उसकी मोतिमे अपनी ज्योति प्रज्वलित बल्कि उन सद्गुणों के न होनेमे जो स्वतंत्र जातियोंमें न करें, तो वे प्रलयतक प्रज्ञान और दुर्बलताके शिकार पाये जाते हैं। अतः कोई विजित नाति पूछे कि मेरे बने रहें । अतः इतिहास ही सब गुणोंका दाता है। अपमानका कारण कौन जाति है, तो जवाब दो कि इतिहास सब धोका संग्रह है। इतिहास के द्वारा हम तुम बुद हो, तुम खुद हो । विजयी जाति किमी विजित महात्मा बुद्ध, श्रीशङ्कराचार्य, गुरु नानक प्रादि समस्त नातिकी हारका कारण कमी भुले-भटके ही होती है। धार्मिक और नैतिक मार्ग प्रदर्शकोंके जीवन चरित्रसे क्या गिद्ध जो नाशसे बोटियां नोच-नोचकर अपनी शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं। इतिहासकी मुट्ठीमें सब ज्याफ्रत करता है, उस शल्पकी मौतका कारण होता धर्मोका अनुकरण है। इतिहासमे बचकर कोई कहाँ है? मरता तो भादमी बीमारी या दुर्घटनाम्मे है। गिद्ध जायेगा ? यह तो हाथी है, जिसके पाँवमें सबका पाँव तो केवल इस बातको सब पर प्रकट करता है कि यहाँ है। माश पड़ी है। वह चिन्ह है, सबब नहीं। परिणाम है, इतिहास हमको स्मरण कराता है कि हमारा कारण नहीं। कर्तव्य क्या है। दुनियाँके झगड़ोंमें फंसकर जब हम जातीय इतिहास उन सद्गुणोंको जीवित रखता उच्च विचारों को भूलने लगते हैं, तो बुजुर्गोंकी आवाज़ है जिनपर जातीय अस्तित्वका दारमदार है। चिराग़ सुनाई देती है कि ख़बरदार हमारी भान रखना, हमारा ही से चिराग़ जलता है। महापुरुषोंकी मिसाल ही काम जारी रखना, सपूत रहना, जिस तरह हमने जाति हमको उनका अनुकरण करनेपर तैयार करती है। इस और धर्मके लिए कोशिश की, उसी तरह करते रहना, वास्ते जिस जातिका कोई इतिहास न हो, उसकी ऐसा न हो कि हमारा प्रयत्न योंही नष्ट हो जाय । यह उनतिके लिए जली है कि वह किसी और जातिके शङ्ख जातिको हर समय जगाता रहता है। इतिहास साथ ऐसा सम्बन्ध पैदा करे कि उसके बुजुर्गोंको अपना जातीय मम्ज़िलकी अँधेरी रातमें चौकीदारकी तरह समझने लगे, या ऐसा धर्म ग्रहण करे जिसमे किसी कहता है कि सोना मत; अपने मालकी रक्षा करो। जातिका इतिहास उसके लिए जोश दिलाने वाला पन यह सिद्धान्त कभी नहीं भूलना चाहिए कि नैतिक जावे। उदाहरणार्थ अफरीकाके हब्शी स्वयम उमति उमतिका प्रारम्भिक सोता मनुष्य होता है। जीता. भनेके अयोग्य है, क्योंकि उनके पास कोई प्रादर्श जागता पाँच फुटका कोई भादमी ही जातिको सुधारता नहीं, कोई नाम नहीं है, जो उनको परोपकार, बहा. है। किताबें, मसले, रस्में, बाहरी टीम-राम, कहावते, दुरी, सचाई सिखाये। उन हशियोंकी उमति प्राजकन मीमांसाकी राष्क बातें-ये सब उस भादमीके नौकर मुसलमानी धर्म के द्वारा हो रही है। जब वे मुसलमान है, उसके मालिक नहीं। किताबें केवल रहीका डेरी, बोगोंके नबियों और भौखियाओंके जीवन-चरित्र पढ़ते यदि एक मादमी उनके अनुसार जीवन बसर करके है और उनके कामोंकी तारीफ करते हैं, तो वे सभ्यता नहीं दिखलाता । भजन, प्रार्थना, संस्कारके तरीके, के सिदान्तोंका ज्ञान प्राप्त करते हैं। मगर इस तरह शिक्षाका प्रबन्ध, नियम और उप-नियम, सभा, समान,
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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