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________________ सरह बोगाम्बास इस योगकी साधक एक हठयोगकी क्रिया भी दूसरा अभ्यास वर्णित कर देना हम यहाँ उचित समझते हैं। हठयोग हमेशा राजयोगका सहायक होताहै । वह अकेला कोई प्रेमयोग कार्य सिद्ध नहीं कर सकता तथा राजयोग भी हठयोगके बापट प्रेम संच सो पर बाप मसान। बिना अपर्ण और समयसाध्य तथा अनेकबार असंभव से साबहारकी सांस बेत बिदुभान । हो जाता है। -कबीर किसी समतल स्थानमें चित्त लेट जात्रो तथा नख- प्रेमयोगके विषयमें सबसे पहले प्रेरगडसंहिताका पर्यंत समस्त नाड़ियोंमेंसे प्राणशक्ति-मन-खींच कर निम्न वाक्य जानने योग्य है:नाभिमें,हृदयमें अथवा भूमध्य में धारण करनेकी कोशिश स्वकीयहदये ज्यावेविदेवस्वरूपाम् । करो, तथा ऐसा करने ममय पावके अगठेको स्थिरदृष्टि - चितयेत् प्रेमयोगेन परमालापपूर्वकम् ॥ से देखते रहो। ऐमा करनेसे श्वामोच्छवामकी गति पानवायुपुलकेन पयामावः प्रजायते। धीमी पड़ जायगी तथा हाथपैर हिलाने डुलानेम मुके समाधि संभवतेव संभवेव मनोमनी । समान दिखेंगे-डोलेंगे तथा धीरे धीरे एक मीठी निद्रासी इसमें बतलाया है कि अपने हृदयमें इरादेवके श्रा जावेगी। इस निद्राका नाम 'योगनिद्रा' या 'मनो- स्वरूपका ध्यान करके परम आहादपूर्वक प्रेमयोगसे न्मनी' है और करीब १ माहके अभ्याससे सिद्ध हो उसका चितवन करे । ऐसा करनेसे इस सारे शरीरमें जाती है । यह बच्चोंको सबसे जल्दी, जवानोंको देरसे रोमांच हो पाता है, आँखोंसे पानंदके प्रभु गिरने और बढ़ोंको बहुत देरसे मिद्ध होती है । हम अभ्या- लगते हैं और कभी कभी समाधि लग जाती है तथा सके करने के पहले शवासनका अभ्यास करना चाहिए। मनोन्मनी (योगनिद्रा) भी संभव होती है। इस श्रासनमें हाथ-पैर आदि श्रग इ 'ने ढीले छोड़ने वास्तवमें आत्माका अात्माके प्रति जो आकर्षण पड़ते हैं कि वे मुर्दे के अंगोंके समान हो जाते हैं। किसी है उसका नाम प्रेम है । प्रेम वह आगो जो न जाने मित्रसे हाथ-पैर हिलवा-डुलवाकर इस श्रामनकी परीक्षा कितने कालम और न जाने किसके लिये मनुष्यमात्रको करवा लेनी चाहिये। विकल कर रही है। कभी कभी यह प्राग किसीके संगसे, किसीके स्पर्शम कुछ समय के लिये ठंडी दुईसी इस अभ्यासके सिद्ध होने पर तुम देखोगे कि मालम होती है परन्तु फिर वह उससे कहीं तीन गतिसे जितनी विभाँति और लोग दस घंटेकी नींदसे भी नहीं प्रज्वलित हो उठती है। कवियों में वह काव्यरूपमें, तपपाते उतनी विश्रान्ति तुम दो घंटेकी नींदसे ही प्राप्त कर स्वियोंमें तपरूपमें, योगियोंमें ध्यानरूपमें, पक्षियोंमें सकोगे । नेपोलियनको यह निद्रा सिद्ध थी, वह २४-२४ गानरूपमें तथा मिदोंमें मैत्री, करुणा, दमा और छघंटेकी थकावट घोड़े पर चढ़े चढ़े २०-२५ मिनिटकी हिंसारूपमें फट पड़ती है। नींदसे निकाल लेता था । सुनते हैं कि महात्मा गाँधीको विश्वमें प्रेमके सिवाय एक और भी बाकर्षण भी यह निद्रा सिद्ध है; योगियोंमें यह साधारण वस्तु है। जो लोकमें कमी कभी मूलसे मेमके नामसे पुकारा
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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