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________________ प, किरण] साहित्य परिचय और समालोचन ३१३ फिर हिन्दीमें अच्छा स्पष्ट अर्थ दिया है। इससे यह लेकर २० वीं शताब्दी तक कापों, गीतों, रास कोश हिन्दी पढ़ने लिखनेवालों के लिये एक बड़ी ही भादिका संग्रह किया गया है। काम्ब पापा हिन्दी कामकी चीज़ होगया है। इसके लिये लेखक और प्रेरक राजस्थानी, गुजराती और अपभ्रंश भाषामें है। दोनों धन्यवादके पात्र है। नमूने संस्कृत और प्राकृतके भी दिये है। काम्पकार भाज-कस हिन्दी भाषामें बहुत करके उर्दू के शब्दों- प्रायः खरतर का और उर्दूकी कवितामोंका प्रयोग होने लगा है- भी हैं । कायों में कितना ही ऐतिहासिक वर्णन है और. हिन्दुस्तानी भाषा दोनों के मिश्रणसे बन रही है और इसलिये ग्रंथका ऐतिहासिक जैन-काम्य-संग्रह' नाम बहुत पसन्द की जा रही है। जो लोग उद नहीं जानते सार्थक जान पड़ता है। उन्हें माधुनिक पत्रों तथा पुस्तकोंके ठीक प्राशयको भाषा-विज्ञानका अध्ययन करने वालों के लिये पर समझनेमें कभी-कभी बढ़ी दिक्त होती है और यदि ग्रंथ बना ही उपयोगी है। इससे ८०० वर्ष तक सुन-सुनाकर वे कभी कोई उर्दूका शब्द बोलते या काम्योंकी रचना-शैली शताब्दीवार सामने भाजाती है लिखते हैं और वह शुद्ध बोला या लिखा नहीं जातातो और उसपर से हिन्दी-भाषाके क्रमविकासका कितना पढ़ने-सुनने वालोंको बुरा मालूम होता है, और कभी- ही पता चल जाता है और अनेक प्रान्तीय भाषाओंका कभी उसके कारण शरमिन्दगी भी उठानी पड़ती है। थोड़ा-बहुत बोध भी हो जाता है । ग्रंथमें काव्योंका ऐसी हालतमें ऐसे कोशका पासमें होना बड़ा जरूरी है सार देते हुप काग्यकारों मादिका अच्छा परिचय दिवा इसमें १०१६० शब्दोंका अच्छा उपयोगी संग्रह है, है, कठिन शब्दांका कोप भी लगाया है, कायों में पाए लेखक अथवा संयोजककी प्रस्तावना भी बड़ी महत्वपर्ण हुए विशेष नामों की सूची भी मजग दी है। और भी कर है. और वह कोशके अनेक विषयों पर अच्छा प्रकाश मूचियाँ दी हैं, माथमें प्रो. हीरालाल जी जैन, एम. ए. डालती है । काग़ज़ तथा बम्बईकी छपाई सनाई पोर अमरावतीका ८ पेजकी प्रस्तावना भी है, इन सबसे गेट-अप सब उत्तम है। जिल्द खूब पुष्ट तथा मनोमोहक इस ग्रंथकी उपयोगिता खूब बढ़ गई है । सम्पादकोंने है। मूल्य भी अधिक नहीं है । पुस्तक सब प्रकारमे इस ग्रन्थकी सामग्री भौर संकलनमें जो परिश्रम किया संग्रह किये जाने और पाममें रखने के योग्य है । है, वह निःसन्देह प्रशंसनीय है और उसके लिये ऐतिहामिक जगत एवं साहित्यिक संमार दोनों हीके द्वारा धन्यवादकं पात्र हैं । ग्रंथकी छपाई-सफाई और जिल्ला (२) ऐतिहासिक जैन काव्य-संग्रह-सम्पादक बंधाई उत्तम है। 16 चित्र भी साथमे लगे हैं, यह सब अगरचन्द नाहटा भीर भंवरलाल नाहटा । प्रकाशक- देखते हुए मुख्य बहन कम जान पड़ता है। और यह शंकरदान शुभैराज नाहटा, नं० ५-६ पारमेनियन स्ट्रीट सम्पादक महोदयों तथा प्रकाशक महानुभावोंक विशिष्ट कलकत्ता । साइज, २०४३०, १६ पेजी, पृष्ठ संख्या साहित्य-प्रेम एवं मेवा-भावका घोतक है । चापका यह सब मिलाकर ६६२ मूल्य सजिन्द ।।) ०। सत्प्रयत्न दिगम्बर समाजके उन धनिकों तथा विद्वानों इस सचित्र अन्धमें विक्रमकी १२वीं शताब्दीसे के लिये अनुकरणीय है, जो अपने इधर-उधर बिखरे
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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